गजल
हम पतझड़ के वीराने हैं।
अपनों से हम बेगाने हैं।
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यारों हमको रोना होगा,
पत्थर दिल पर दीवाने हैं ।
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मत पूछो इतिहास हमारा,
केवल गम के अफसाने हैं।
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मन उनकी यादों में गुम है,
वह हर गम से अनजाने हैं ।
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तोड़े से यह ना टूटेंगे,
रिश्तो के ताने बाने हैं ।
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मन मरुथल में प्यास जगी है,
हर दिन आंसू बरसाने हैं ।
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मुझे “दिवाकर” तन्हा कर दो,
गम के गीत मुझे गाने हैं ।
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© दिवाकर दत्त त्रिपाठी।