कविता

अब हम कैशलेस बन जाएं

अब हम कैशलेस बन जाएं

अपनी चाहतों पे आओ थोड़ा विराम लगाएं
चलो हम-तुम अब कैशलेस बन जाएं ।
जरूरतों को जो पूरा करना है
चांद सी दुल्हन को साजन के लिए संवरना है ।
पैट्रोल-डीजल जो अब टंकी में भरना है
चाय की चुस्की संग अखबार जो पढ़ना है ।
सभी भुगतानों में नगदी का झमेला ही हटाएं
चलो हम-तुम अब कैशलेस बन जाएं ।
जो फसलों के लिए बीज लेना है
बीमा के लिए धन देना है ।
आओ कार्ड से ही अब जरूरी बिल चुकाएं
चलो हम-तुम अब कैशलेस बन जाएं ।
सफर के लिए अब ओनलाइन से ही टिकट बनाएं
बिन नगदी के भुगतान से जंगल-पेड़ बचाएं
सरकारी बाबुओं के चढ़ावों पे भी ग्रहण लगाएं
चलो हम-तुम अब कैशलेस बन जाएं ।
कालाधन का खेल अब जड़ से खतम करना है
देश को प्रगति के पथ पे ले चलना है ।
हमसब मिलकर चलो ‘उनका’ साथ निभाएं
‘मुकेश’ चलो अब हम भी कैशलेस बन जाएं ।

मुकेश सिंह
सिलापथार,असम

मुकेश सिंह

परिचय: अपनी पसंद को लेखनी बनाने वाले मुकेश सिंह असम के सिलापथार में बसे हुए हैंl आपका जन्म १९८८ में हुआ हैl शिक्षा स्नातक(राजनीति विज्ञान) है और अब तक विभिन्न राष्ट्रीय-प्रादेशिक पत्र-पत्रिकाओं में अस्सी से अधिक कविताएं व अनेक लेख प्रकाशित हुए हैंl तीन ई-बुक्स भी प्रकाशित हुई हैं। आप अलग-अलग मुद्दों पर कलम चलाते रहते हैंl