*सूरज दादा कहाँ गए तुम*
सूरज दादा कहाँ गए तुम,
काह ईद का चाँद भए तुम।
घना अँधेरा, काला – काला,
दिन निकला पर नहीं उजाला।
कोहरे ने कोहराम मचाया,
पारा गिर कर नीचे आया।
काले बादल जिया डराते,
हॉरर-शो सा दृश्य दिखाते।
बर्षा रानी आँख दिखाती,
झम झम झम पानी बरसाती।
काले – काले बादल आते,
उमढ़-घुमड़ कर शोर मचाते।
नन्हीं – नन्हीं बूँद कभी तो,
कभी ज़ोर की बारिश लाते।
सर्द हवाऐं, शीत लहर है,
बे-मौसम बरसात, कहर है।
टच मी नॉट कहे अब पानी,
बाहर ना जा कहती है नानी।
कट – कट दाँत बजाते बाजा,
मौसम अपना बैण्ड बजाता।
सड़क, गली, कूँचे, चौबारे,
सब सूने हैं ठंड के मारे।
फुट – पाथी, बेघर, बेचारे,
इन सबके तो तुम्हीं सहारे।
अब तो सुन लो, सूरज दादा,
कल आने का दे दो वादा।
…आनन्द विश्वास