असर होता है क्या
चलो देखें नई-नई
सुबूह को गज़़र कहता है क्या?
स्वर्णिम घटा फैलाएगी
पहली किरण सूरज की जब
अँगड़ाइयाँ लेंगे विहग
स्वच्छंद होके उड़ेंगे तब
आलोक से भागेगा तम
गगन को असर होता है क्या?
दुपहर की धूप गुनगुनी सी
सुबूह है सर्द मखमली
फिसलती शाम रेशमी सी
तपन है घरों में मलमली
हवा व धूप की ज़िरह से
वतन को असर होता है क्या?
हवा कर रुख बदले-बदले
मौसम को रास आया है
लगा तक़दीर बदलेगी
ऐसा संगतराश आया है
दहशत में बाग़ अब तलक
चमन को असर होता है क्या?
ख़्वाहिशों औ उम्मीदों के महल
वक़्त की साजिश तमाम
सोचने में न होगा अगर
तरक़्क़ी का कोई पयाम
लिख सके इक तारीख़ लिख
क़लम को असर होता है क्या?