ईश्वर की छाया में आकर सभी मनीषी पूर्ण मनीषी होते हैं
ओ३म्
पं. चमूपति आर्यसमाज के शीर्ष विद्वान थे। आपने सामवेद के चुने हुए मन्त्रों पर ‘‘सोम सरोवर” नाम से भक्ति भाव पूर्ण से सिक्त रचना की है। महाशय कृष्ण ने इस रचना के विषय में कहा था कि यह एक ऐसी रचना है जिसे नोबेल पुरस्कार दिया जाने चाहिये था। परन्तु वेदों के प्रति पक्षपातपूर्ण मत इसमें मुख्य रूप से बाधक रहा। इसी पुस्तक से एक मन्त्र स्वाध्याय, चिन्तन एवं मनन हेतु प्रस्तुत कर रहे हैं। मन्त्र हैः
इषे पवस्व धारया मृज्यमानो मनीषिभिः।
इन्दो रुचाभि गा इहि।
वेद व्याख्यान
ऐ मेरे मन ! तेरा ज्ञान बहुत थोड़ा है। तू जान सकता ही कितना है? तू ज्ञानी नहीं, ज्ञान का पात्र है। तुझ में प्रकाश है पर बहुत कम। तू चांद है, सूर्य नहीं। तेरा प्रकाश अपना नहीं, किसी का है। तो तू प्रकाश वाले के सम्मुख क्यों नहीं होता? ज्ञानियों की संगति में बैठ। उन का नियन्त्रण अपने ऊपर ले। ये तुझे मांज देंगे। कोई कलंक, पाप-ताप का कोई लेश तेरी आत्मा पर रहने न देंगे। तेरी बुद्धि का जंग उतार देंगे। तेरी मनन-शक्ति को निर्मल कर देंगे। तेरी प्रज्ञा की धार को तेज कर देंगे। उन्हें क्या करना है? उन के पास बैठने से तू अपने आप मंजता जायगा।
यह प्रक्रिया एक दिन नहीं, निरन्तर बहती रहे। तभी तो ज्ञान की सेवा-शुश्रुषा की अविरल धारा निरन्तर बहती रहे। तभी तो ज्ञान की खेती लहलहा उठती है। उस में हरियावल आती है। मन के लिए अन्न पैदा होता है-मानसिक अन्न अर्थात् ज्ञान।
मनीषी महानुभावों के नित्य के सत्संग से ही प्रज्ञा में प्रकाश बढ़ता है। द्वितीया के चांद में जितनी अधिक सूर्य की छाया पड़ेगी, उस में उतनी ही प्रकाश की कला बढ़ती जायगी। एक दिन आयगा जब उस की प्रज्ञा की पूर्णिमा होगी।
मेरे मन ! तू मनीषी होना चाहता है, तो मनीषियों के हाथ में पड़ जा। ये तुझे ऐसा स्वच्छ करेंगे जैसे गौ बछ़ड़े को। गौ बछड़े को चूमती है, चाटती है, अपनी पवित्र जीभ से उस का संपूर्ण मल हर लेती है। उपदेश-उपदेश में ही इन की जीभ वह काम कर जायगी जो गौ की जबान बछड़े के शरीर पर करती है।
फिर सब मनीषियों का एक मनीषी तो पूर्ण-प्रज्ञ परमेश्वर है। तू उस के सम्मुख हो। उस की कला से कलावान् हो। फिर तेरी ज्ञान-प्रभा के क्या कहने हैं। वास्तविक ज्ञान-भानु वही है। उसी की छाया में आ कर सभी मनीषी पूर्ण मनीषी होते हैं।
हम आशा करते हैं कि पाठक इस मन्त्र व्याख्यान को पसन्द करेंगे और इसमें निहित शिक्षा का लाभ उठायेंगे। ओ३म् शम्।
–मनमोहन कुमार आर्य