गीत
जिंदगी हर जगह बेहाल लिखूँ ।
या गरीबों को खस्ताहाल लिखूँ ।
नहीं ये बिल्कुल बेइमानी होगी,
भला क्यों कर मैं नया साल लिखूँ ?
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हर जगह धुंध है कुहासा है ,
झुग्गियों में भरी निराशा है ,
कहीं भूखा ही सो गया बच्चा,
काटते कुत्ते कहीं माल लिखूँ ।
भला क्यों कर मैं नया ………..
ठंड से व्याकुल अधनंगा बच्चा ।
सड़क पर एक भिखमंगा बच्चा ।
योजनाएँ सब ठंडे बस्तों में
बजाते नेता सिर्फ गाल लिंखूँ ।
भला क्यों कर ………………
(क्रमशः )
© दिवाकर दत्त त्रिपाठी