ग़ज़ल : साहिल पर बैठकर…
साहिल पर बैठकर लहरों का मजा लेते हैं,
हम तो किनारे पर ही खुद को डुबा देते हैं।
हमसे गलतियां हो जाती हैं अकेले में,
और वो सरेआम हमको सज़ा देते हैं।
गैरों से डरने की जरूरत नही यारो,
अक्सर अपने ही तो लोग दग़ा देते हैं।
वो ये क्यूँ नही कहते कि वहाँ ठिकाने नही,
वो लोग जो हमें आसमानों का पता देते हैं।
चलो अब यही सोचकर सुना दो अपनी भी,
कि हम भी तो अपनी हर बात बता देते हैं।
— जी आर वशिष्ठ