गीत
मनुज तुम्हारे इतने चेहरे !
तूने छीने कई निवाले ,
कुछ इतिहास बनाए काले।
तूने प्यास बुझाई गहकर-
बंदूकें तलवारें भाले ।
क्या बादल यह छँट पाएंगे,
मानवता पर काले गहरे ?
मनुज तुम्हारे………..
मजहब हित मानव भी काटे ,
देश कई सरहद से बांटे ।
मानवता के गालों पर भी-
मारे धन दौलत के चांटे।
औरंगजेब बना तू लेकर-
दारा के कुछ स्वप्न सुनहरे ।
मनुज तुम्हारे……………
कितनों के है वतन उजाड़े,
परचम जीत के जब-जब गाड़े।
शोणित की धाराएं देकर –
प्रेम के तूने पंथ बिगाड़े ।
मानवता पर तूने मानव !
हर युग में बैठाए पहरे ।
मनुज तुम्हारे………….
© दिवाकर दत्त त्रिपाठी