चालीस वर्षीय जाने – माने समाज सुधारक कमल ‘पुष्प’ जी सामने बैठे श्रोताओं को बता रहे थे, “माता – पिता की सेवा करना सबसे बड़ा धर्म है। जो माता-पिता की सेवा नहीं करता है, उसे ईश्वर कभी क्षमा नहीं करेगा। माँ-बाप चाहे जो भी कहें, उसे हमें आशीर्वाद के रूप में लेना चाहिए। उनकी कड़वी बातों में भी भलाई छुपी रहती है। श्रवण कुमार की कथा तो…।” अभी पुष्प जी अपनी बात पूरी करते कि श्रोताओं में मौजूद एक जिज्ञासु ने कहा, “मेरी बड़ी इच्छा है कि मैं आपके माता-पिता के दर्शन करूँ।”
यह सुनते ही बातों के धनी ‘पुष्प’ जी बोले, “मैं तो खुद भी उनके दर्शन करना चाहता हूँ लेकिन वे पिछले बीस वर्षों से विदेश में मेरी बड़ी बहन के साथ रहते हैं।”
— सुभाष चन्द्र लखेड़ा