उपन्यास अंश

पतंग वाला

पाखी के बंगले से तीन बंगले छोड़ कर ही तो है चौथा  बंगला, बंगला नम्बर तेरह। सेठ भगवान दास जी का आलीशान भव्य चार-मंजिला वैभव-शाली बंगला। इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट का काम होता है सेठ जी के यहाँ। बहुत पहुँचे हुऐ आदमी हैं सेठ भगवान दास जी। सभी राजनैतिक पार्टियों के बड़े-बड़े नेताओं से ही नहीं बल्कि देश की जानी-मानी हस्तियों और उद्योगपतियों से अच्छे सम्बन्ध हैं इनके।

सेठ भगवान दास जी का एक लड़का भी है गोपाल सेठ, उम्र लगभग उन्नीस-बीस साल। कॉलेज के प्रथम बर्ष का स्टूडेन्ट। काफी मोटा होने के कारण लोग उसे गोलू नाम से ही बुलाते हैं। असली नाम से तो उसके कॉलेज के लोग भी शायद ही उसे जानते हों।

उसका असली नाम सेठ गोपाल दास तो जैसे कॉलेज के रजिस्टरों के पन्नों और सर्टीफिकेटस् तक ही सिमट कर रह गया हो। घर में, सोसायटी में, कॉलेज में और उसके आस-पास के सभी लोग तो उसे गोलू नाम से ही पुकारते हैं।

गोलू, मस्त-मौला, जैसा नाम वैसा ही उसका काम। गोल-मटोल गबलू जैसा गोल-गोल गोलू। खाने-पीने का शौकीन और वह भी नम्बर वन का, शैतानी में भी नम्बर वन का। पढ़ने-लिखने को छोड़ कर बाकी सभी कामों में नम्बर वन। शायद वह भी तो इस बात को जानता है कि बड़े होकर तो उसे पापा के बिज़नेस को ही सम्हालना है तो फिर दो-चार चोपड़ी कम-ज्यादा पढ़ भी लीं तो उससे क्या फर्क पड़ने वाला है उस पर, उसके व्यापार पर।

एक लड़की भी है सेठ भगवान दास जी की, श्रेया सेठ। गुणों में और कार्य-कलाप में अपने गोलू भैया से बिलकुल अलग-थलग और बिलकुल उसके विपरीत। शान्त, सौम्य, सुशील, गम्भीर, मित-भाषी, पढ़ने-लिखने में अब्बल नम्बर और मानवीय भावनाओं से ओत-प्रोत। अपने भविष्य के प्रति चिन्तित। इसीलिये तो अपनी पढ़ाई के प्रति सजग और गम्भीर है श्रेया।

यूँ तो श्रेया सेठ भी उसी स्कूल में पढ़ती है जिस स्कूल में कि पाखी और पलक पढ़ते हैं। पर श्रेया सेठ की पाखी और पलक के साथ कोई ऐसी विशेष मित्रता तो नहीं थी, बस कभी-कभार हॉय-हलो हो गई तो बात अलग है और परिचय भी मात्र हॉय-हलो तक ही सीमित था। वह भी मात्र पड़ोसी होने के कारण और एक ही स्कूल में पढ़ने के कारण।

उत्तरायण का मंगल-मय मन-भावन पावन-पर्व था उस दिन। सभी लोग अपने-अपने टैरस पर भगवान भास्कर के कोमल प्रकाश की उर्जा-युक्त किरणों को अपने रोम-रोम में आत्मसात् करने का प्रयास कर रहे थे। तो कुछ लोग अपनी-अपनी पतंग को ऊँचे से ऊँचा उड़ाने और दूसरों की पतंगों को काटने का कीर्तिमान स्थापित करने में व्यस्त थे।

और जब बात पतंग उड़ाने की हो और मौज-मस्ती करने की हो तो फिर भला गोलू जी कैसे पीछे रह सकते थे। साथ ही जब गोलू जी पतंग उड़ायें और उनकी पतंग कट जाये, ये बात तो गोलू जी को कतई बर्दास्त हो ही नहीं सकती थी।

वैसे भी गोलू जी ही क्यों, अपनी पतंग का कटना तो किसी को भी पसन्द नहीं आ सकता है तो फिर गोलू जी को ही इसका अपवाद क्यों माना जाय। आखिर पतंग कटे और बुरा न लगे, ऐसा तो हो ही नहीं सकता, किसी के लिये भी।

यह तो मानव गुण जो ठहरा। अपना अपमान तो पशु-पक्षी भी सहन नहीं कर पाते हैं तो फिर आदमी की तो बात ही कुछ और है। वह तो स्वभिमानी और खुद्दार भी होता है।

और यदि ऐसे में पतंग काटने वाला ढोल बजा-बजा कर आपकी खिल्ली उड़ाये, आपकी हँसी उड़ाये और हो..हो..करके वो काटा…, वो काटा… और वो काटा… कह कर चिल्लाये। साथ ही जब खिल्ली उड़ाने का उद्देश्य आपको नीचा दिखाना हो, आपको अपमानित करना हो तब तो बुरा लगना स्वाभाविक ही होता है।

कुछ ऐसा ही हुआ गोलू जी के साथ भी। पतंग कटने पर मन मसोस कर रह गया गोलू। पर मन में तरह-तरह के विचारों का आना-जाना तो शुरू हो ही गया था। किस प्रकार पतंगों के कटने का बदला लिया जा सकता है। किस प्रकार पड़ोसियों की उड़ती हुई पतंगों को काटा जा सकता है। उसने हर सम्भावना पर विचार किया गया।

और अन्त में गोलू जी ने ऐसा प्लान बनाया कि हर हाल में पतंग कटे तो सामने वाले की ही और अपनी तो कभी भी नहीं। इसके लिये गोलू के मन में विचार आया कि यदि पतंग को उड़ाने के लिये विदेशी स्टील कोटेड तार का उपयोग किया जाय तो फिर अपनी पतंग के कटने का प्रश्न ही नहीं उठता और सामने वाली पतंग के कटने की शत-प्रतिशत गारन्टी।

गोलू की पतंग उड़ी और खूब उड़ी। आस-पास का सारा मैदान साफ करने में गोलू को ज्यादा समय नहीं लगा। देखते ही देखते आस-पास की सारी पतंगों को गोलू ने काट डाला।

बड़ा मजा आया गोलू जी को। अब तो एक-छत्र साम्राज्य था, गोलू का और गोलू जी की पतंग का। जिसने भी अपनी पतंग को उड़ाने का प्रयास किया, उसे अपनी पतंग से हाथ धोना ही पड़ा।

और जब गोलू जी उड़ती पतंगों को काट-काट कर अपार खुशी का अनुभव कर रहे थे तभी गोलू की पतंग के तेज धागे से एक चिड़िया उलझ कर रह गई। उसका एक पंख पतंग के धागे में फँसकर रह गया। इधर गोलू ने पतंग के धागे को खींचा और ऊधर बेचारी चिड़िया का धागे में फँसा हुआ एक पंख पतंग के तेज धागे से कट गया।

कटा हुआ पंख हवा के साथ उड़ता हुआ कहाँ गिरा होगा, यह तो पता नहीं। पर, पंख कटी हुई बेचारी रक्त-रंजित चिड़िया को धरती की ओर गिरते हुये तो गोलू ने भी देखा था उसकी मेड-सर्वेन्ट परी ने भी। मेड-सर्वेन्ट परी, जो उस समय गोलू का हुचका पकड़े हुई थी।

एक चींख-सी निकल कर रह गई थी गोलू के मुँह से। बड़ा दुःख भी हुआ था गोलू को और अफसोस भी। गोलू और परी, अपना हुचका, डोरी और पतंग सब कुछ छोड़कर, टैरस से नीचे उतर कर चिड़िया को ढूँढने के लिये गये भी थे।

काफी देर तक वे ढूँढते भी रहे थे घायल चिड़िया को, पर कुछ भी तो पता न चल सका था उनको। पता चलता भी तो कैसे, घायल चिड़िया तो गिरी थी पाखी के घर की टैरस के ऊपर।

गोलू और परी को *घायल-चिड़िया* न मिल सकी थी और इधर पाखी और पलक को वह निष्ठुर व्यक्ति नहीं मिल सका था, जिसने निर्दोष चिड़िया का पंख काटकर उसके जीवन को नर्क बना दिया था।

पंख कटने की जानकारी थी तो बस गोलू को थी और उसकी मेड-सर्वेन्ट परी को। शायद इनके अलावा किसी और को नहीं थी। शोर और समय के गर्त में सब कुछ विलुप्त हो गया था। और यह घटना, मात्र एक घटना बन कर ही रह गई थी।

शायद विदेशी स्टील कोटेड तार से गोलू के पतंग उड़ाने का रहस्य और बेचारी *पर-कटी चिड़िया* के पर कट जाने का रहस्य, केवल रहस्य ही बनकर रह गया होता अगर उस दिन गोलू की तबियत अचानक खराब न हुई होती। उसे डिहाइड्रेशन न हुआ होता, तेज बुखार न आया होता और उसे डॉक्टर गौरांग पटेल के दवाखाने में ऐडमिट न करवाना पड़ा होता।

बात असल में यह हुई कि…

उस दिन, रात का समय था और तेज बारिश भी हो रही थी। तभी गोलू की तबियत अचानक खराब हो गई। उसे ठंड लगकर तेज बुखार आया और साथ में डिहाइड्रेशन की शिकायत भी थी। बिगड़ती हालत के कारण, गोलू को पड़ोस में ही डॉक्टर गौरांग पटेल के दवाखाने में ऐडमिट करवाना पड़ा। डॉक्टर गौरांग पटेल एवं नर्स-स्टाफ द्वारा उचित उपचार किया गया। ग्लूकोज़ आदि की बोतल चढ़ाने के बाद तबियत में थोड़ा-बहुत सुधार हो गया पर तेज बुखार तो अभी भी था ही।

दूसरे दिन सुबह जब श्रेया अपनी मेड-सर्वेन्ट परी के साथ गोलू भैया के लिये चाय-नाश्ता लेकर दवाखाने पहुँची तो वहाँ के वातावरण को देखकर प्रभावित हुये बगैर न रह सकी। बड़ा ही अच्छा लगा वहाँ का सुबह का मन-भावन वातावरण उसे।

पाखी और पलक से हाय-हलो भी हुई, श्रेया की। एक दूसरे से कुछ सम्वाद भी हुये। कुछ स्कूल के, कुछ सोसायटी के और  कुछ व्यक्तिगत भी।

श्रेया ने गोलू भैया की तबियत के विषय में जब पाखी और पलक को बताया तो सभी लोग मिल कर गोलू भैया के हाल-चाल जानने के लिये उनके स्पेशल रूम में भी गये।

पाखी, पलक आदि को अपने बीच में पाकर गोलू भैया को बहुत अच्छा लगा। वैसे भी हालत में पहले से तो काफी सुधार था, पर बुखार तो अभी भी था।

इसके बाद पाखी और पलक अपने शेष काम को शीघ्रता के साथ पूरा करने में व्यस्त हो गये। इधर श्रेया और उसकी मेड-सर्वेन्ट परी ने कुछ समय के लिये और रुकना उचित समझा, मन-भावन मनोरम वातावरण में।

पाखी और पलक को निःस्वार्थ भाव से भोले पक्षियों को दाना-पानी देते हुये, विशेष-कर पिंजरे में *पर-कटी चिड़िया* की सेवा करते हुये देख कर श्रेया को बड़ा ही अच्छा लगा।

पाखी का *पर-कटी चिड़िया* को अपने हाथों से उठाकर पिंजरे से बाहर निकालना, पलक का पिंजरे को साफ कर दूसरा गुदगुदा कपड़ा बिछाना और फिर दूसरे बर्तनों में दाना-पानी रखकर *पर-कटी चिड़िया* को फिर से पिंजरे में बैठाकर उसे बन्द कर देने आदि की सभी क्रियाओं को श्रेया अपलक मुग्ध-भाव से निहारती रही। उसे यह दृश्य बड़ा ही रोमांचक लगा।

पाखी और पलक के इस निःस्वार्थ भाव से किये जाने वाले सेवा-कार्य को देखकर उसे राजा दिलीप की नन्दिनी की गौ-सेवा की याद आ गई। राजा दिलीप का तो स्वार्थ था, पर पाखी और पलक तो क्या स्वार्थ।

निःस्वार्थ भाव से चिड़िया की सेवा करते देखकर श्रेया का मन भर आया। उसका भावुक मन पाखी और पलक इस कृत्य के सामने नत-मस्तक हो गया था। ऐसे दैवीय सेवा-कार्य में वह भी सहभागी बनना चाहती थी। वह चाहती थी कि अपने हाथ से वह भी पक्षियों को दाना खिलाये। पर, पता नहीं, न जाने क्यूँ, वह ऐसा न कर सकी।

पर अपनी उत्सुकता को श्रेया और अधिक देर तक न रोक सकी और आतुरतावश पाखी से पूछ ही बैठी, “पाखी, क्या यहाँ की ये सब व्यवस्था और पक्षियों की देख-भाल का काम आप खुद ही करतीं हैं।”

“हाँ श्रेया, स्कूल जाने से पहले सुबह में, हम दोनों ही मिलकर यहाँ पर सभी पक्षियों को दाना डालते हैं, पानी के बर्तनों में पानी भरते हैं और फिर अपनी *पर-कटी चिड़िया* की पूरी व्यवस्था करके ही स्कूल जाते हैं। यह हमारा रोज़ का नियम है।” पाखी ने श्रेया को बताया।

*पर-कटी चिड़िया* शब्द को सुनकर पहले तो श्रेया कुछ चौंकी, उसे कुछ अजीव सा लगा और फिर वह पाखी से पूछ ही बैठी,“चिड़िया, पर-कटी चिड़िया, क्या इसका पर कटा हुआ है या आपने इसका नाम *पर-कटी चिड़िया* वैसे ही रख दिया है। कुछ समझ में नहीं आया।” श्रेया ने पूछा।

“हाँ श्रेया, इसकी भी एक दुःखद कहानी है। इसका एक पर कटा हुआ ही है।” पाखी ने गहरी साँस लेते हुये कहा।

“क्यों, ऐसा क्या हुआ, इसके साथ।” श्रेया ने पूछा।

पाखी ने बताया, “श्रेया, बात इसी उत्तरायण की है। जब अपने स्कूल के प्रिलिम ऐग्ज़ामस् चालू होने वाले ही थे और मैं अपना माइन्ड फ्रैश करके टैरस से नीचे उतर ही रही थी कि मेरे पीछे *थप्प* की एक जोरदार आवाज हुई। मैं तो चौंक ही गई थी। मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो ये चिड़िया खून से लथपथ गिरी पड़ी थी। इसका एक पंख कटा हुआ था और खून का तेज रिसाब हो रहा था। मैंने तुरन्त ही इसे उठाया और यहाँ पर ले आई। और अब डॉक्टर अंकल के इलाज के बाद यह जीवित है। लेकिन बिना पंख के ये उड़ने से विवश और लाचार है। अब इसकी देख-भाल की पूरी जबावदारी हम सब पर ही है। डॉक्टर अंकल, अस्पताल का स्टाफ, पलक और मैं इसका पूरा ध्यान रखते हैं। इसे किसी भी प्रकार का कोई कष्ट नहीं होने देते हैं।”

पाखी की बात को सुनकर सम्वेदनशील श्रेया भावुक हो गई, उसका मानव-मन चीत्कार कर उठा और आँखों से बरवश आँसू ढुलक ही पड़े।

उसने पूछ ही लिया,“कैसे कट गया था इसका एक पंख पाखी। क्या कुछ पता चल सका, कौन है इसकी ऐसी दशा करने वाला हत्यारा।”

“शायद पतंग के तेज धागे से या फिर आकाश में किसी पक्षी से आहत होकर, कट गया होगा इसका एक पंख। पर निश्चित रूप से तो कुछ भी नहीं कहा जा सकता। क्योंकि इस घटना को मैं देख नहीं सकी थी। मेरी नजर तो इस पर तब पड़ी, जब यह मेरे पीछे आकाश से आकर गिर पड़ी थी और तड़फ रही थी। और इसके आस-पास बिखरा पड़ा था खून ही खून।” पाखी ने कहा।

तभी श्रेया की मेड-सर्वेन्ट परी ने पाखी से पूछा,“पाखी दीदी, यह घटना उत्तरायण के दिन की कितने बजे की है। यदि आपको समय का कुछ अन्दाज़ रहा हो तो।”

“लगभग दिन के तीन बजे के आस-पास का समय रहा होगा और तेज हवा चल रही थी। पर, परी तू समय क्यों पूछ रही है। क्या तुझे इस घटना के विषय में कुछ मालूम है। यदि हाँ, तो बता न, कैसे कटा इसका पंख। क्या तूने इसके पंख काटने वाले को देखा है। यदि हाँ, तो बता न परी जल्दी से बता। कौन है वो हत्यारा, जिसने इस निर्दोष का पंख काट दिया।” पाखी और पलक ने तो परी के ऊपर प्रश्नों की बौछार ही कर दी।

और श्रेया कभी पाखी और पलक की ओर देखती तो कभी अपनी मेड-सर्वेन्ट परी की ओर।

“हाँ, पाखी दीदी मैं बताती हूँ। मुझे सब कुछ मालूम है इसका एक पंख कैसे कट गया था।” परी का इतना कहना था कि पाखी, पलक और श्रेया ने परी को चारों तरफ से घेर लिया।

“पाखी दीदी, उत्तरायण के दिन जब गोलू भैया टैरस पर अपनी पतंग उड़ा रहे थे तब इस चिड़िया का पंख उनकी पतंग के विदेशी स्टील कोटेड तार से कट गया था।” परी ने डरते-डरते बताया।

“गोलू भैया…ऐं…गोलू भैया…।” पाखी, पलक और श्रेया के मुँह से एक साथ, एक ही स्वर निकला।

“नहीं…नहीं, परी तू झूँठ बोल रही है। ऐसा कैसे हो सकता है।” एक स्वर फिर उभरा।

“पर दीदी, सच तो यही है।” परी ने दृढ़ता के साथ कहा।

क्योंकि वह और गोलू भैया दोनों ही प्रत्यक्षदर्शी थे। दोनों में से एक दोषी था और एक घटना का गवाह।

“सच-सच बता और पूरी बात बता, परी। कब, क्या और कैसे हुआ ये सब कुछ।” तीनों सहेलियों का एक ही स्वर था और साथ में थी उत्तर सुनने की व्याकुलता भी।

परी ने बताया, “उत्तरायण के दिन लगभग सुबह के दस बजे के आस-पास का समय रहा होगा, मैं और गोलू भैया दोनों पतंग उड़ाने के लिये टैरस पर गये हुये थे। गोलू भैया पतंग उड़ा रहे थे और मैं हुचका पकड़े हुई थी। ग्यारह नम्बर वाले अंकल ने गोलू भैया की पतंग से पेच करके से उसे काट दिया। पतंग के कटते ही उनकी टैरस के सभी लोग जोर-जोर से वो काटा.., वो काटा.. और वो काटा.. चिल्लाने लगे। गोलू भैया ने फिर दूसरी पतंग उड़ाई। वह भी कट गई और इस प्रकार दो-तीन पतंगें और भी कट गईं। इस पर अड़ौस-पड़ौस के सभी लोग गोलू भैया को चिड़ाने लगे और खिल्ली उड़ाने लगे। गोलू भैया को बहुत बुरा लगा और मुझे भी। हम लोग कुछ कर भी तो नहीं सकते थे अतः निराश होकर हम टैरस से नीचे उतर आये।”

“फिर क्या हुआ, परी। चिड़िया का पंख कैसे कट गया, ये तो बता।” सभी का एक ही प्रश्न था।

“हाँ, हाँ बताती हूँ, बताती हूँ, दीदी।” परी ने कहा।

“जल्दी बता न।” श्रेया ने झुंझलाते हुये कहा।

“टैरस से नीचे उतरकर गोलू भैया सीधे बाज़ार चले गये। और जब बाजार से वापस लौटे तो उनके हाथों में धागे का एक हुचका था। शायद वे धागा खरीदने के लिये ही बाज़ार गये थे।” परी ने बताया।

लगभग दो-ढ़ाई बजे का समय रहा होगा, टैरस पर सभी लोग पतंग उड़ा रहे थे तभी गोलू भैया ने मुझसे कहा, “परी चल, ऊपर चलकर पतंग उड़ाते हैं।”

मैंने मना भी किया और कहा भी कि भैया रहने भी दो अपनी पतंग कट जायेगी और फिर अड़ोस-पड़ोस के सभी लोग अपनी हँसी उड़ायेंगे। और वैसे भी मेरा मन अभी ऊपर जाने का नहीं हो रहा है।

पर उन्होंने ऊपर चलकर हुचका पकड़ने के लिये जिद की तो मैं उनके साथ ऊपर चली गई। मैं हुचका पकड़े हुई थी और गोलू भैया पतंग उड़ा रहे थे।

गोलू भैया बोले,“परी, अब देखना, अब मैं एक-एक करके इन सबकी पतंग काटकर रख दूँगा और अब मिलेगी इन सबको मेरी हँसी उड़ाने और खिल्ली उड़ाने की सजा।”

इस बार गोलू भैया जो धागा लेकर आये थे वो धागा बहुत मजबूत था उसे हाथों से तो तोड़ा ही नहीं जा सकता था, बस कैंची या ब्लेड से ही काटा जा सकता था। शायद विदेशी स्टील कोटेड तार था या फिर प्लास्टिक का थ्रेड। पर था बहुत मजबूत। गोलू भैया अपने साथ छोटी कैंची लेकर ही ऊपर गये थे, धागा काटने के लिये।

बस फिर क्या था भैया ने पतंग उड़ाई और देखते ही देखते आस-पास में उड़ने वाली सभी पतंगों को धड़ाधड़ काट डाला। फिर क्या था मैदान साफ होते देर न लगी।

भैया की हँसी उड़ाने वाले पड़ोसियों के मुँह पर तो जैसे ताला ही लग गया था। उनकी हँसी गायब हो चुकी थी। सभी लोग आश्चर्यचकित थे, हैरान थे और परेशान भी थे। अपनी पतंगों के कटने पर। पर रहस्य तो रहस्य ही था, विदेशी स्टील कोटेड तार का रहस्य। किसी को भी पता न चल सका था पतंग कटने का रहस्य।

और तभी गोलू भैया की पतंग के तार से एक चिड़िया उलझ कर रह गई थी, फड़फड़ाई भी थी वह। उलझी हुई चिड़िया ने सुलझने की लाख कोशिश भी की थी, पर असफल रही वह और सुलझ न सकी। गोलू भैया ने भी उसे निकालने का प्रयास किया, पर वे भी उसे न निकाल सके।

और जैसे ही गोलू भैया ने पतंग की डोर को अपनी ओर खींचा, चिड़िया का एक पंख कटकर हवा में उड़ता हुआ चला गया, साथ ही बेदम पर-कटी हुई चिड़िया, पता नहीं, धरती पर जाने कहाँ जाकर गिर पड़ी थी।

हम लोग चिड़िया को ढूँढने और उसका हाल जानने के उद्देश्य से नीचे भी आये थे। इधर-उधर सभी जगह तो ढूँढा था उसको हमने, पर हमें चिड़िया कहीं भी न मिल सकी थी। आस-पास के लोगों से पूछने पर भी कुछ न पता चल सका था उसका हमें। अन्त में निराश होकर हम अपने घर वापस आ गये।

उस दिन हमें चिड़िया के आहत होने का बहुत दुःख भी हुआ था और अफसोस भी। उस दिन के बाद से तो गोलू भैया ने पतंग उड़ाना ही बन्द कर दिया था।

मैंने उनसे जब कभी भी पतंग उड़ाने को कहा तो उन्होंने हमेशा यही जबाब दिया,“नही परी, अब मैं कभी भी पतंग नहीं उड़ाऊँगा। अब मेरा मन नहीं करता, पतंग उड़ाने को। अब मुझे पतंग उड़ाने से घृणा हो गई है। मेरे पतंग उड़ाने की हठ के कारण ही किसी निर्दोष जीव का जीवन संकट में पड़ चुका है। पता नहीं वह चिड़िया कहाँ पर होगी और किस हाल में होगी। मैं उस दिन की घटना से बहुत दुःखी हूँ।”

वे कहने लगे, “जब भी मैं पतंग उड़ाने की सोचता हूँ तो उस चिड़िया का दृश्य मेरी आँखों के सामने घूमने लगता है और मेरा मन विचलित होने लगता है।”

परी ने बताया कि उस दिन के बाद से गोलू भैया ने ना तो कभी पतंग को हाथ लगाया और न ही धागे को। और उस स्टील कोटेड तार वाले हुचके को तो उन्होंने जलाकर राख कर दिया।

परी से पूरी बात सुनने के बाद, पाखी, पलक और श्रेया यह निश्चय नहीं कर पा रहे थे कि आखिरकार पर-कटी चिड़िया की इस दयनीय दशा के लिये कौन जिम्बेदार है।

आखिर किसको दोषी ठहराया जाय, गोलू भैया को या फिर उसके अड़ोस-पड़ोस के लोगों को या फिर समाज में प्रचलित दोष-युक्त परम्पराओं को।

पर क्या गोलू को पूर्णरूप से दोष-मुक्त मान लिया जाय। क्या वह भी बराबर का दोषी नहीं है। क्या उसके द्वारा किये गये विदेशी स्टील कोटेड तार का उपयोग सही था।

“कुछ भी हो, पर विदेशी स्टील कोटेड तार से पतंग का उड़ाना तो किसी भी दृष्टि से सही और उपयुक्त नही ही माना जा सकता है।” श्रेया का तर्क था।

“हाँ श्रेया, पतंग उड़ाते समय यदि यह स्टील कोटेड तार गली या सड़क के इलेक्ट्रिक वायर या बिजली के खम्बे से छू जाये तो करेंन्ट लगने से मृत्यु तक हो सकती है। इसका उपयोग दूसरों के लिये ही नहीं अपितु अपने लिये भी तो प्राणघातक सिद्ध हो सकता है।” पलक ने श्रेया की बात का समर्थन करते हुये कहा।

“कितना गलत काम किया है गोलू भैया ने। उसे ऐसा नहीं करना चाहिये था।” श्रेया ने भी पलक की हाँ में हाँ मिलाई और बात को उचित ठहराया।

पाखी ने बताया, “पलक, विदेशी स्टील कोटेड तार और चाइनीज माँझे के उपयोग की बजह से तो उत्तरायण के दिनों में बिजली कम्पनियों के लिये बड़ी मुश्किलें ही खड़ी हो जाती हैं। अनेक स्थानों पर तो विदेशी स्टील कोटेड तार और चाइनीज माँझे के कारण ही बिजली की लाइनों में खराबी आ जाती है। और इतना ही नहीं विद्युत प्रसारण निगम के लोगों को चेतावनी भी देनी पड़ती है कि विदेशी स्टील कोटेड तार और चाइनीज माँझे का उपयोग न करें और बिजली के तारों से दूर रहें।”

“इतना ही नहीं, विदेशी स्टील कोटेड तार और चाइनीज माँझे के कारण ही अनेकों पक्षियों के घायल होने की घटनायें भी सामने आती हैं विभिन्न सामाजिक संस्थाओं और संगठनों की ओर से तो पक्षियों को बचाने के लिये अनेक अभियान भी चलाने पड़ते हैं।” पाखी ने पलक की बात का समर्थन करते हुये कहा।

“भोले-भाले पशु-पक्षियों को, वातावरण को और प्रकृति को बचाना हमारी नैतिक जिम्मेदारी ही नहीं वल्कि अपना कर्तव्य भी है।” श्रेया ने कहा।

“सच ही तो है श्रेया, तभी तो मैं, पलक और अपने स्कूल के बहुत सारे फ्रेन्डस्, मिलकर फेसबुक, वाट्स-एप, एस.एम.एस और ई-मेल इत्यादि के माध्यम से पक्षियों को बचाने की मुहिम भी चलाते हैं, विशेषकर उत्तरायण के दिनों में तो हमें इस अभियान में काफी समय भी देना पड़ता है। इसमें हमें काफी हद तक सफलता भी मिलती है।” पाखी ने श्रेया और परी को बताया।

पलक ने बताया, “पिछली बार तो पीपल फॉर एनीमल्स संस्था की ओर से, अपने शहर में ‘पक्षी बचाओ अभियान’ की प्रभात फेरी भी निकाली गई थी। जिसमें हम सब लोग भी गये थे। और यह प्रभात-फेरी तो देश के दूसरे शहरों में भी निकाली गई थी। अनेक समाज-सेवी संस्थाओं ने भी ‘पक्षी बचाओ अभियान’ में बड़े जोर-शोर से भाग  लिया था।”

“श्रेया, सही मायने में पशु-पक्षी ही तो हमारे पर्यावरण के सच्चे और सटीक माप-दण्ड होते हैं, वे थर्मामीटर होते हैं प्रकृति की प्रसन्नता के। उनके चहचहाने की मधुर आवाज, उनके गुटुर-गूँ की आवाज, उनके कूँहु-कुँहु की प्यारी आवाज और बाग-बगीचों में मोरों की नृत्य-लीला आदि यह बताती है कि हमारी धरती कितनी प्रसन्न है। और जब हमारी धरती का मन प्रसन्न होगा तभी तो उस पर निवास करने वाले, हम सब लोग भी प्रसन्न रह सकेंगे। और इसीलिये यदि हम प्रसन्न रहना चाहते हैं तो हमें प्रकृति को प्रसन्न रखना ही होगा।” पाखी ने कहा।

“इतना ही नहीं श्रेया, अपने धर्म में भी जितने देवी-देवता हैं, उन सभी के पास कोई न कोई उनका वाध्य-यंत्र तो होता ही है। भगवान शंकर के पास डमरू है तो माँ सरस्वती के पास वीणा। भगवान विष्णु के पास शंख है तो राम-भक्त हनुमान जी के पास खड़ताल।

बाँसुरी की सुरीली तान किसे मोहित नहीं कर लेती है। चंग-मृदंग, ढोलक की थाप और तबले की ताक-धिना-धिन-धिन की ध्वनि से तो उँगुलियाँ अपने आप फड़फड़ाने लगती हैं और पाँव अपने आप थिरकने लगते हैं।

गीत-संगीत तो हम सबके रोम-रोम में रचा-पचा है। जड़-चेतन सभी के ऊपर इसका अमिट प्रभाव होता है। और तो और अपने देवी-देवताओं के वाहन भी तो पशु-पक्षी ही हैं। किसी का हँस है तो किसी का मोर, किसी का उल्लू है तो किसी का गरुण।

हाथी सम्पन्नता का प्रतीक है तो सूर्य-देव के रथ को खींचते हुये सप्त-अश्व स्फूर्ति और शक्ति के प्रतीक। और तो और मोर तो अपना राष्ट्रीय-पक्षी भी है। ये सब तो अपनी धार्मिक आस्था का प्रतीक भी हैं और अपने देश की अनमोल धरोहर भी। सच में, इन सबकी रक्षा करना और इन्हें सहेज कर रखना भी तो अपना ही नैतिक कर्तव्य है।” पाखी ने बताया।

“पाखी, सभी लोग पक्षियों को और पर्यावरण को बचाने के लिये अपनी-अपनी तरह से, अपने-अपने स्तर पर काम कर रहे हैं, क्यों न हम भी इन अबोले भोले पक्षियों को बचाने के लिये कुछ काम करें तो कितना अच्छा रहेगा।” श्रेया ने पाखी से अपने मन की बात कही।

 पाखी को श्रेया की बात पसन्द आई। उसने श्रेया से कहा, “श्रेया, क्यों न हम पक्षियों को बचाने के लिये एक संस्थान का गठन करें और पीपल फॉर एनीमल्स संस्था के साथ मिलकर इस काम को और आगे बढ़ायें।”

पलक को यह बात पसन्द आई। पलक ने अपना सुझाव देते हुये कहा, “इसके विषय में अभी हम और अधिक जानकारी प्राप्त कर लें तभी पीपल फॉर एनीमल्स संस्था से सम्पर्क करेंगे।”

“अच्छा रहेगा, यदि इस विषय पर हम डॉक्टर अंकल और मम्मी से भी उनकी राय ले लें। वे भी इस विषय में हमें अपना मार्ग-दर्शन दे सकेंगे।” पाखी का ऐसा विचार था।

और इसी बीच, श्रेया की मेड-सर्वेन्ट परी ने गोलू भैया के पास जाकर *पर-कटी चिड़िया* के विषय में सब कुछ बता दिया। उसने गोलू भैया को बताया कि जिस चिड़िया का पंख उत्तरायण के दिन अपनी पतंग के विदेशी स्टील कोटेड तार से कट गया था वह चिड़िया अभी भी जीवित है और उसकी देख-भाल पाखी दीदी और पलक दीदी, दोनों मिलकर ही करते हैं। वह इसी अस्पताल में ही है।

उन्होंने उसे यहाँ पर पक्षियों के पिंजरे में बड़े ही सुरक्षित ढंग से रखा हुआ है। उसके लिये उन्होंने दाना-पानी की भी अच्छी व्यवस्था कर रखी है। बड़ी प्यारी लगती है वह छोटी-सी प्यारी गौरेया चिड़िया। पर, पंख कट जाने के कारण अब वह उड़ नहीं सकती है।

चिड़िया के विषय में यह जानकर कि वह अभी यहीं पर है और जीवित है। गोलू के मन में खुशी भी हुई और उसकी वर्तमान स्थिति के विषय में सुनकर उसकी आँखों से आँसू छलक पड़े और मन उदास हो गया।

आज उसकी आँखों के सामने उत्तरायण का वह सम्पूर्ण हृदय-द्रावक दृश्य उभर आया जब कि उसके विदेशी स्टील कोटेड तार में उलझकर उस चिड़िया का एक पंख कट गया था और चिड़िया फड़फड़ाती हुई धरती पर कहीं जा गिरी थी। और उस घायल चिड़िया को ढूँढने की लाख कोशिश के बावजूद भी वह न मिल सकी थी।

उसी घायल चिड़िया की दशा को देखने के लिये, उसके पास जाने के लिये गोलू का मन व्याकुल होने लगा। उसने बड़े ही अधीर मन से परी से कहा,“परी, मैं उस घायल चिड़िया के पास अभी ही जाना चाहता हूँ। मैं उसे देखना चाहता हूँ।”

“पर, भैया अभी कैसे, अभी तो आपकी खुद की तबियत ही ठीक नहीं है। और अभी तो आपको कमजोरी भी बहुत है। अभी तो आप वहाँ तक कैसे जा सकोगे।” परी ने कहा।

“नहीं, परी नहीं, मैं उसे देखने के लिये कहीं और कभी भी जा सकता हूँ। तुम मेरी चिन्ता मत करो, मुझे कुछ भी नहीं होने वाला है। मैं बिलकुल ठीक हूँ।” गोलू ने परी को अपनी इच्छा-शक्ति का भरोसा दिलाया।

और पता नहीं गोलू में कहाँ से इतनी शक्ति आ गई कि वह अपने विस्तर से ऐसे उठ खड़ा हुआ जैसे उसे कुछ हुआ ही न हो। उसका तेज बुखार तो जाने कहाँ गायब हो गया था।

वह परी से बोला, “चलो परी, मुझे उस चिड़िया के पास चलो।”

परी गोलू भैया के आदेश का अधिक विरोध न कर सकी। और थोड़ी ही देर के अन्तराल में ही गोलू और परी, दोनों अपने स्पेशल रूम से निकलकर *पर-कटी चिड़िया* के पिंजरे के पास पहुँच चुके थे।

और उसके कुछ ही दूर पर खड़े थे पाखी, पलक और उसकी छोटी बहन श्रेया। जो कि अभी भी *पर-कटी चिड़िया*, गोलू और विदेशी स्टील कोटेड तार से पतंग उड़ाने के विषय में ही चर्चा कर रहे थे।

चिड़िया को बन्द पिंजरे में देखकर गोलू की आँखों से अश्रु-धारा बह निकली। एक पल के लिये तो गोलू ठिठक कर ही रह गया था और दूसरे क्षण ही उसने पिंजरे को अपनी दोनों बाहों में भर लिया और बच्चों की तरह से फूट-फूट कर रोने लगा। वह अपने कृत्य से बहुत अधिक दुःखी था।

पिंजरे के अन्दर बर्तन में रखा हुआ पानी बिखर कर अविरल गति से बहने लगा था और गोलू की आँखों से खारे पानी की अविरल अश्रु-धारा। अस्पताल के फर्श पर गंगा और जमुना मिलकर वह निकलीं थीं।

उसे अपनी गलती का एहसास हो रहा था और उससे भी अधिक क्रोध उसे अपने उन सभी पड़ोसियों के ऊपर आ रहा था, जिनके कारण उसे ऐसा करने के लिये मजबूर होना पड़ा।

यदि उसके पड़ोसी उसे न चिड़ाते और ना ही उसकी हँसी और खिल्ली उड़ाते तो शायद यह परिस्थिति ही उत्पन्न न हुई होती। शायद ऐसा कुछ भी न हुआ होता और मानव सभ्यता पर कलंक भी न लगा होता।

क्रोध गोलू को भी आ रहा था और क्रोध तो पाखी को भी आ रहा था। और दोनों का क्रोध भी अपने-अपने चरम पर ही था। गोलू को क्रोध अपने पड़ोसियों पर आ रहा था और पाखी को क्रोध गोलू के ऊपर।

पर सत्य तो यह था कि गोलू की पतंग के तेज धागे से ही एक निर्दोष चिड़िया आहत हुई थी और उसका जीवन नर्क बन गया था। जिसे तो किसी भी हालत में नकारा नहीं जा सकता था।

गोलू ने *पर-कटी चिड़िया* का सामना करने का साहस तो कर लिया, अपने मन की सम्वेदनाओं को व्यक्त भी कर दिया और अपनी गलती को स्वीकार कर माफी भी माँग ली।

पर पाखी और पलक का सामना करने का साहस वह अपने मन में नहीं जुटा पा रहा था। उसे नही मालूम था कि उसके बारे में पाखी की क्या प्रतिक्रिया होगी, पलक की क्या प्रतिक्रिया होगी। और उसकी छोटी बहन श्रेया उसके बारे में और उसके कृत्य के बारे में क्या सोच रही होगी।

फिर भी मौन तोड़ते हुये विनम्र भाव से गोलू ने पाखी से कहा,“पाखी, आई एम वैरी सॉरी।” और सॉरी शब्द के कहते-कहते तो उसकी आँखें भर आईं और मन ग्लानि से भर गया।

पाखी कुछ भी न बोली और बस खड़ी ही रही। इधर पलक, श्रेया और परी को लग रहा था कि कहीं कोई अप्रत्याशित घटना ही न घट जाये। कहीं पाखी का क्रोध फूट निकला तो क्या होगा। उसके प्रतिशोध के ज्वालामुखी का लावा फूट निकला तो क्या होगा। कहीं कोई अनहोनी घटना न घट जाये। पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।

गोलू ने फिर कहा, “पाखी, ये सब कुछ अन्जाने में ही हो गया था, ऐसा करने का मेरा कोई प्रयोजित उद्देश्य नहीं था और ना ही मैं इस निर्दोष चिड़िया को कोई हाँनि ही पहुँचाना चाहता था। यदि मेरे पड़ोस के लोग मेरी हँसी न उड़ाते और ना ही मेरी खिल्ली उड़ाते तो मैं ऐसा कभी भी नहीं कर सकता था।”

मूक श्रोता बनी पाखी सब कुछ सुनती रही और सिर्फ सुनती ही रही। गोलू बोले चला जा रहा था। वह अपने मन की हर बात को पाखी के सामने उढ़ेल कर रख देना चाहता था और अपने पक्ष को स्पष्ट कर, यह सिद्ध कर देना चाहता था कि वह निर्दोष है, उसका मन निर्दोष है।

उसने पाखी से कहा, “पाखी, चिड़िया की घटना के लिये मैं बहुत शर्मिन्दा हूँ। बदला लेने की भावना ने तो मुझे अन्धा बना दिया था। उस समय मेरे मन में केवल एक ही बात थी और वह थी कि मुझे अपने अड़ोस-पड़ोस के सभी लोगों की पतंग काटकर उन्हें नीचा दिखाना है। पर यह मेरी बहुत बड़ी भूल थी।”

पाखी ने एक बार अपनी *पर-कटी चिड़िया* की ओर देखा और फिर गोलू की ओर। उसके मन के अन्तर्द्वन्द को स्पष्ट रूप से पढ़ा जा सकता था।

लेकिन वह *पर-कटी चिड़िया* और गोलू के मन को पढ़ने का प्रयास कर रही थी। उसका मन कह रहा था कि सच्चे मन से किया गया प्रयश्चित तो सारे पापों को निर्मल बना देता है। शायद गोलू का मन निर्मल हो चुका था।

गोलू की भोली-भावना और निश्छल स्पष्ट-बयानी को सुन कर पाखी के मन का अडिग बज्र-सा हिमालय पिघल कर पानी-पानी हो गया था। उसके क्रोध और प्रतिशोध का दावानल, शीतल, शान्त, सलिल हो गया था।

और फिर पाखी भी तो आखिर नारी ही थी। त्याग और क्षमा की साक्षात् प्रतिमा नारी। बड़े से बड़े अपराध को भी क्षमा कर देने की अदम्य शक्ति होती है नारी में। और वैसे भी अपराध और अनजाने में हुये अपराध में फर्क तो होता ही है।

पाखी ने गोलू को क्षमा कर दिया था और शायद उसकी *पर-कटी चिड़िया* ने भी। क्योंकि पाखी और *पर-कटी चिड़िया* दोनों एक-दूसरे के प्रतिविम्ब ही तो थे। और वैसे भी पाखी से अधिक और कौन समझ सकता था *पर-कटी चिड़िया* को। उसके मन को, उसके दर्द को, उसकी वेदना को और उसकी भावनाओं को। *पर-कटी* के मन को पढ़ लिया था पाखी ने।

“गोलू, अब तुम भी हम सब लोगों के साथ मिलकर काम कर सकते हो। यदि तुम्हारी इच्छा हो। *पर-कटी* को तुमसे कोई शिकायत या शिकवा नहीं है।” पाखी का निर्णय था।

पाखी के इस निर्णय से पलक, श्रेया और परी को बहुत अच्छा लगा। सभी ने पाखी के निणय को सही ठहराया। सभी प्रसन्न थे और सबसे अधिक प्रसन्नता तो गोलू को थी। गोलू के सिर से तो जैसे एक बहुत बड़ा बोझ ही उतर गया था। उसका बुखार तो जैसे उड़न-छू ही हो गया था।

और जब श्रेया ने अपने पक्षी बचाओ अभियान के विषय में गोलू को बताया तो गोलू को बहुत अच्छा लगा। वह इस अभियान में अपना हर तरह का सहयोग देने के लिये तैयार हो गया। इतना ही नहीं, वह इस अभियान का एक सक्रिय हिस्सा भी बनना चाहता था।

“हम सब खुद ही मिलकर एक ऐसी संस्था का गठन करेंगे जो पक्षियों और पर्यावरण के हित के लिये कार्य करेगी।” गोलू ने सभी के समक्ष अपना प्रस्ताव रखा।

“पर कैसे भैया, एक संस्था का गठन करना, कोई बच्चों का खेल नहीं होता है। ऐसा कर पाना तो निश्चय ही भागीरथ-प्रयास होगा। पर क्या हम सब मिलकर इतना बड़ा काम अकेले कर सकेंगे।” श्रेया ने अपनी शंका व्यक्त की।

“हाँ, हाँ क्यों नहीं। जब एक अकेले भागीरथ अपने प्रयास से गंगा जी को धरती पर अवतरित करने में सफल हो सकते हैं तो फिर हम लोग तो कितने सारे भागीरथ एक साथ हैं। हमारा भागीरथ-प्रयास भी निश्चय ही सफलता के शिखर को अवश्य ही चूमेगा।” गोलू के आश्वासन में दृढ़ता और आत्म-विश्वास था।

“इसके लिये हमें क्या करना होगा, गोलू।” जिज्ञासू पलक ने गोलू से पूछा।

“पलक, हम अपने बंगले में रोड-साइड के आगे वाले दोनों रूमस् में इस संस्था का मुख्य-कार्यालय बनायेंगे और यहीं से *पक्षी बचाओ-पर्यावरण बचाओ* अभियान का संचालन करेंगे।” गोलू ने अपना विचार स्पष्ट किया।

“हाँ भैया, अपने घर के आगे वाले दोनों रूम इस संस्था के ऑफिस के लिये बिलकुल उपयुक्त रहेंगे। इसमें आने-जाने वाले लोगों को भी कोई असुविधा नहीं रहेगी।” श्रेया और परी ने इस प्रस्ताव का अनुमोदन किया।

“मैं अपने सभी मित्रों से इस अभियान में जुड़ने के लिये कह दूँगा। वे सब भी अपने साथ इस अभियान में जुड़ेंगे। हम सब लोग अपनी-अपनी पॉकेट-मनी का कुछ भाग इस संस्था में डोनेट भी करके छोटे-मोटे सामान के लाने की व्यवस्था कर लेंगे। और फिर दो-चार दिनों में तो अपने पास बहुत-सा फंड एकत्रित हो जायेगा। तब पैसे की कोई समस्या नहीं रहेगी।” गोलू ने विश्वास के साथ कहा।

पलक, परी और श्रेया को यह प्रस्ताव पसन्द आया। पाखी ने भी इसे सही कदम बताया और उसे प्रसन्नता भी हुई।

दूसरे दिन तो गोलू के बहुत से मित्र इस अभियान में जुड़ चुके थे। काफी पैसा भी इकट्ठा हो चुका था। इतना ही नहीं गोलू के पापा सेठ भगवान दास जी ने इस संस्था को आर्थिक सहयोग भी दिया और सभी बच्चों के द्वारा किये गये इस भागीरथ-प्रयास की सराहना भी की।

गोलू के चार-मंजिला भव्य बंगले की टैरस के ऊपर, जहाँ पर कभी गोलू पतंग उड़ाया करता था, आज वहाँ पर पक्षियों के बैठने के लिये चारों कोनों पर एक-एक छतरी लगी हुई थी। इतना ही नहीं उनके लिये छायादार स्थान और दाना-पानी आदि की सभी व्यवस्था भी कर दी गई थी।

साथ ही बाजार से पक्षियों के लिये छतरियाँ, पानी के लिये पेड़ों पर टाँगने वाले मिट्टी के बर्तन और बड़ी मात्रा में पक्षियों के खाने के लिये ज्वार, बाजरा आदि के दाने मँगवा लिये गये थे।

छतरियाँ तथा पेड़ों पर या ऊँचे स्थान पर मिट्टी के बर्तनों को उपयुक्त स्थानों पर रखने की व्यवस्था का कार्य गोलू और उसके साथियों द्वारा बड़े ही जोर-शोर से प्रारम्भ कर दिया गया था और उसके सन्तोष-जनक परिणाम भी देखने को मिल रहे थे।

ऑफिस की सभी जबावदारी पाखी, पलक, श्रेया और परी ने सम्हाल ली थी। *पाखी हित-रक्षक समिति* की वेव-साइट भी  बना दी गई थी और सोशल नेट-वर्किग साइट की पूरी जबावदारी पाखी, पलक और श्रेया ने सम्हाल ली थी। साथ ही घायल पक्षियों की देख-भाल और दवा आदि की व्यवस्था की पूरी जवाबदारी परी और गोलू के अन्य मित्रों ने सम्हाल ली थी।

और जब *पाखी हित-रक्षक समिति* के गठन के विषय में पाखी के स्कूल में पता चला तो उसके स्कूल के सभी टीचर्स तथा प्रिन्सीपल मेडम ने इसकी खूब-खूब सराहना की और हर प्रकार की सहायता का आश्वासन भी दिया। साथ ही इस संगठन में जुड़ने के लिये दूसरे विद्यार्थियों को भी प्रेरित किया।

गोलू, पाखी, पलक, श्रेया और परी के अदम्य-साहस और सहयोग से पक्षी बचाओ अभियान गतिवान हो गया था और *पाखी हित-रक्षक समिति* की चर्चा जन-जन के मन में अपना स्थान बना चुकी थी।

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यह कहानी मेरे बाल-उपन्यास *पर-कटी पाखी* से ली गई है।

…आनन्द विश्वास

आनन्द विश्वास

जन्म की तारीख- 01/07/1949 जन्म एवं शिक्षा- शिकोहाबाद (उत्तर प्रदेश) अध्यापन- अहमदाबाद (गुजरात) और अब- स्वतंत्र लेखन (नई दिल्ली) भाषाज्ञान- हिन्दी, अंग्रेजी, गुजराती। प्रकाशित कृतियाँ- 1. *देवम* (बाल-उपन्यास) (वर्ष-2012) डायमंड बुक्स दिल्ली। 2. *मिटने वाली रात नहीं* (कविता संकलन) (वर्ष-2012) डायमंड बुक्स दिल्ली। 3. *पर-कटी पाखी* (बाल-उपन्यास) (वर्ष-2014) डायमंड बुक्स दिल्ली। 4. *बहादुर बेटी* (बाल-उपन्यास) (वर्ष-2015) उत्कर्ष प्रकाशन मेरठ। PRATILIPI.COM पर सम्पूर्ण बाल-उपन्यास पठनीय। 5. *मेरे पापा सबसे अच्छे* (बाल-कविताएँ) (वर्ष-2016) उत्कर्ष प्रकाशन मेरठ। PRATILIPI.COM पर सम्पूर्ण बाल-कविताएँ पठनीय। प्रबंधन- फेसबुक पर बाल साहित्य के बृहत् समूह *बाल-जगत* एवं *बाल-साहित्य* समूह का संचालन। ब्लागस्- 1. anandvishvas.blogspot.com 2. anandvishwas.blogspot.com संपर्क का पता : सी/85 ईस्ट एण्ड एपार्टमेन्ट्स, न्यू अशोक नगर मेट्रो स्टेशन के पास, मयूर विहार फेज़-1 नई दिल्ली-110096 मोबाइल नम्बर- 9898529244, 7042859040 ई-मेलः [email protected]