धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

“ईश्वर का अस्तित्व”

जय श्रीकृष्ण:

“ईश्वर का अस्तित्व”      

 12-01-2017

धर्म या अध्यात्म की साधना में, अक्सर लोगों के मन में सबसे पहला सवाल उठता है, वो ये है कि क्या सच में ईश्वर का अस्तित्व है ? कैसे मिलेगा इसका उत्तर ?
अब अगर मैं किसी ऐसी चीज़ के बारे में बात करूँ जो आपने वर्तमान में अनुभव नहीं की है, तो आप उसे समझ नही पाएंगे.
जैसे मैंने किसी ऐसे पकवान का नाम लिया जिसे आपने अभी तक न उसका नाम सुना है ,न ही उसको देखा है और न ही उसको खाया है तो आप मेरी बात का विश्वास नही करेंगे , लेकिन जिन्होंने उस पकवान को खाया है वे इस बात को पूर्णत: स्वीकार करेंगे की हाँ यह पकवान होता है .ऐसे ही ईश्वर के अस्तित्व की बात है जिन्होंने ईश्वर को अनुभव किया है वे ईश्वर का अस्तित्व मानते है और जिन्होंने अनुभव नही किया वे नही मानते .अब कईयों को लगता है की जब ईश्वर है तो हमारी मदद क्यों नही करता ?
ईश्वर है ये सत्य है लेकिन जब लोग ईश्वर पर विश्वास ही नहीं करते तो ईश्वर उनकी मदद कैसे करेंगे. विश्वास ही सत्य है. अगर ईश्वर पर विश्वास करते है तो हमें हर पल उनकी अनुभूति होती है और अगर हम विश्वास नहीं करते तो हमारे लिए उनका कोई अस्तित्व नहीं.
क्‍या ईश्‍वर इस दुनिया में है ? हम अक्‍सर इस सवाल पर विचार करते है, कोई इसे सच मानते है,कोई इसे झूठ मानते है और कोई सिर्फ एक भ्रम मान लेते है.लेकिन ऐसा क्‍या है जो हम इस बारे में बार-बार सोचते है, इस विषय पर सोचने के लिए दिमाग मजबूर हो जाता है. आखिर कभी भी ईश्‍वर की शक्ति को क्‍यूं नहीं समझ पाते है.
एक ही रूप
‘जो सर्वप्रथम ईश्वर को इहलोक और परलोक में अलग-अलग रूपों में देखता है, वह मृत्यु से मृत्यु को प्राप्त होता है अर्थात उसे बारम्बार जन्म-मरण के चक्र में फँसना पड़ता है।’-कठोपनिषद-।।10।।
ॐ जिनका स्वरूप है,ॐ जिसका नाम है उस ब्रह्म को ही ईश्‍वर, परमेश्वर, परमात्मा, प्रभु, सच्चिदानंद, विश्‍वात्मा, सर्व‍शक्तिमान, सर्वव्यापक, भर्ता, प्रभविष्‍णु और शिव आदि नामों से जाना जाता है, वही इंद्र में, ब्रह्मा में, विष्‍णु में और रुद्रों में है. वहीं सर्वप्रथम प्रार्थनीय और जप योग्य है अन्य कोई नहीं.
गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं- ‘हे पार्थ! यह नियम है कि परमेश्वर के ध्यान के अभ्यासरूप से युक्त, दूसरी ओर न जाने वाले चित्त से निरंतर चिंतन करता हुआ मनुष्‍य परम प्रकाशरूप उस दिव्य पुरुष को अर्थात परमेश्वर को ही प्राप्त होता है।’
इन सबका अर्थ यही है की ईश्वर है ,उसका अस्तित्व है,उसका अनुभव भी आता है .लेकिन जब तक स्वयं को उसके साथ जोड़ोगे नही तब तक वो आपको अनुभव नही होने देता .ये बात भी सत्य है .

प्रतिभा देशमुख

श्रीमती प्रतिभा देशमुख W / O स्वर्गीय डॉ. पी. आर. देशमुख . (वैज्ञानिक सीरी पिलानी ,राजस्थान.) जन्म दिनांक : 12-07-1953 पेंशनर हूँ. दो बेटे दो बहुए तथा पोती है . अध्यात्म , ज्योतिष तथा वास्तु परामर्श का कार्य घर से ही करती हूँ . वडोदरा गुज. मे स्थायी निवास है .