सर्दी
पड़ रही फिर इस बरस कड़ाके की सर्दी
पहन कर फिर से आई फिर ठण्ड भी वर्दी
सर्द भरे मौसम का आनंद भी होता अनूठा
गुलाबी ठंड और रज़ाई में होता सन्नाठा
सूरज की सूहानी गर्मी में हम गर्माहट पाते
तब जाकर हम कोई काम काज कर आते
कोहोरे से ढकी मेरे चाँदनी की प्यारी चमक
जुदाई का अहेसास होता मेरे अश्रु से छलक
सर्द भरी रातों में तड़प उठी दिल की जुदाई
बुझी नहीं दिल की आग जो तुमने ही लगाई
आज भी जब सर्द भरी हवा छूती मेरे रूह को
आ जीती फिर से याद तेरी मेरे इस दिल को
लौट आओ यारा नही बिता सर्द भरा मौसम
न होंगे कभी जुदा खाए एक दूसरे की क़सम
कश्मीर के पहाड़ों पर अभी भी है बर्फ जमी
सब कुछ होकर भी है आज सिर्फ़ तेरी कमी
✍? राज मालपाणी
शोरापुर – कर्नाटक