कथा साहित्यलघुकथा

बदलाव-

 

“चलो सुमीss! चलो भई!!”
“…….”
“अरे कहाँ खो गयी, चलो घर नहीं चलना क्या?”
“मैं कौन?
“अरे सुमी, तुम मेरी पत्नी, इन बच्चों की माँ और कौन?”
“नहीं मैं रावण हूँ” सुमी ने आँखे बड़ी करते हुए बोला|
“कैसा मजाक है सुमी| रावण का पुतला तुम्हारे ही सामने खड़ा है !!”
“मजाक नहीं कर रही हूँ , मैं रावण हूँ| देखो रावण के दस नहीं, नौ सिर है..|”
“वह गलती से बना दिया होगा, बनाने वाले ने |”
“नहीं …, वह दसवाँ सिर मैं हूँ|”

“तुम रावण ! फिर मैं कौन हूँ?”मज़ाक जान के बात को आगे बढ़ाते हुए बोला|
“तुम राम हो, हमेशा से मैं तुम्हारें द्वारा और तुम्हारें ही कारण मरती आई हूँ | परन्तु अब नहीं, मैं अब जीना चाहती हूँ| अपने छोटी छोटी गलतियों की ऐसी भयानक सजा बार बार नहीं भुगतना चाहती हूँ !!” आवेग में आकर सुमी बोलने लगी |

“मैंने तो तुमसे कभी तेज आव़ाज में बात भी नहीं की सुमी|” लोगों की भीड़ को देख सहमता हुआ बोला |
“तुम बिना वजह सीता की परीक्षा लिए| निर्दोष होते हुए भी वनवास का फरमान सुना दिए | फिर भी मर्यादा पुरुष रूप में तुम्हारी पूजा होती हैं| और मैं, मैंने तो कुछ भी न किया| मैं मर्यादित होकर भी इस तरह से कई युगों से अपमान सहती रहीं हूँ |”
“पागल हो गयी है! जाकर किसी मनोचिकित्सक को दिखाइए इन्हें !” पुरे पंडाल में कुछ ऐसे ही शब्दों का शोर उठने लगा|
अपने पक्ष में शोर सुनते ही राहुल का सीना चौड़ा हो गया।

रावण का पुतला जलने लगा था, सब भयभीत हो पीछे हटने लगे थे| उधर सुमी का ललाट दीप्तिमान हो उठा था| क्योंकि कई स्त्रियाँ भीड़ से निकलकर उसके समर्थन में खड़ी हों गयीं थीं| सब की आवाज दबने लगी । आगे-आगे चलने वाले पति अब अपनी-अपनी पत्नियों के हमकदम हों वहां से जाने लगें थे|sm

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|