हास्य व्यंग्य : शराबबंदी का नशा
साहब ने तीन करोड़ लोगो के साथ मानव श्रृंखला का वर्ल्ड रिकार्ड कायम किया है।बिहार मे शराबबंदी जैसे सराहनीय व साकारात्मक निर्णय को बिहार के समस्त बुद्धिजीवीवर्ग, महिला वर्ग, छात्र व युवा वर्ग सहित सुप्रीम कोर्ट ने भी समाज-सम्मत व न्यायोचित कदम बताते हुए जब अपना सहमति रूपि 24 कैरेट का हालमार्क चिन्ह लगा दिया हो तो क्या ये उचित है कि मानव स्वास्थ्य व समाज हित मे लिए गए शराबबंदी के साकारात्मक फैसले पर महाराज द्वारा बार बार ढिंढोरा पीटने व भोंपू बजाने का।पौने साल होने को है बिहार मे शराबबंदी को पर हमारे साहब पर अन्य समस्या या विकास कार्य पर ध्यान देने की बजाय बोतलबंदी का खुमारी परवान चढा हुआ है।
“मुझको यारो माफ करना मै नशे मे हू” कभी ये जुमला पियक्कड़ गैंग के लिए रक्षा कवच की भांति कार्य करती थी जब वे औकात से अधिक मदिरा पान कर आउट आफ कंट्रोल होते थे।किंतु इसके विपरीत आजकल हमारे हाकिम पर बिना पिए ही शराब बंदी का नशा परवान चढ़ा हुआ है। साहेब पर शराबबंदी का नशा इस कदर हावी हो चुका है कि सोते जागते चलते भटकते हर जगह शराबबंदी पर ही इनका फोकस रहता है।आए दिन शराबबंदी को लेकर नए नए स्टेटमेंट चिपका दिए जाते है या फिर सजा हेतु नए नए कानून पर रिसर्च किया जाता है।
संभवतःमंगल ग्रह पर पानी मिलने या बुद्ध की छवि प्राप्त होने पर जितने उत्साहित नासा के वैज्ञानिक नही हुए होंगे उससे कई गुना ज्यादा उत्साह हमारे साहेब मे शराबबंदी को लेकर देखने को मिल रही है।ऐसा प्रतीत होता है कि हाकिम के हार्ड डिस्क मे यह बात फीड हो चुकी है कि केवल पूर्ण शराबबंदी से ही राज्य का विकास चरमोत्कर्ष पर पहुँच जाएगा, अपराध व अपराधियों का नामोनिशान मिट जाएगा तथा चहूंओर सुख व शांति आ जाएगी।संभवतः इस विकास को देखकर संयुक्त राष्ट्र संघ मे भारत को स्थाई सदस्यता मिल जाए साथ ही चीन भी एनएसजी ग्रुप मे भारत के शामिल किए जाने का समर्थन करना शुरू कर दे या फिर पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे पर राग अलापना छोड़ दे और हमारे केजरी बाबू “मोदी मोदी” का उच्चारण करना भूल जाएँ!
तभी तो साहेब विकास, क्राईम, करप्शन को भूलकर शराब पर “बको ध्यानम” एवं शराबबंदी पर “काग चेष्टा” से समर्पित है। बिहार मे जितने ब्रांड की शराब नही बिकती थी उससे कई ज्यादा शराबबंदी कानून लागू किये जा चुके है।साहेब का सारा ध्यान शराब पर ही टिका हुआ है।लागू किए जाने वाले कानून भी एमआरएफ टायर की तरह मजबूत है।बिहार मे पियक्कड़ समूह के लिए इन्होंने व्यक्तिगत जेल गमण से लेकर सामूहिक कारावास तक का पैकेज उपलब्ध करा रखा है।शराब संचय, स्पर्श, दर्शन हो या सेवन तक प्रत्येक स्थिति के लिए अलग अलग सजा का प्रावधान मुकर्रर किया गया है।
पीने वाले को जेल, पिलाने वाले को जेल, किराएदार ने पी लिया तो मकान मालिक को जेल, घर के अंदर मदिरा मिली तो सपरिवार जेल भ्रमण का फैमिली पैकेज प्रावधान, पंचायत मे यदि गमहारी द्रव्य मिला तो मुखिया जी के सरकारी खातिरदारी की उत्तम व्यवस्था, यदि शराब नही खोज सके तो दारोगा बाबू की नौकरी जाएगी टोकरी मे।कुल मिलाकर खेत खाने पर गधा के साथ साथ जुलाहा के मार खाने का भी उत्तम प्रबंध कर दिया है साहेब ने। शराबबंदी का खौफ उपभोक्ताओं पर इस कदर हावी है कि केस्टो मुखर्जी टाइप महापुरुष शराब छूना, चखना तो दूर स्वप्न मे भी मधुशाला या बीयर बार तक पहूंचने की हिमाकत नही कर सकते।
हालात ऐसे है कि यदि किसी के पास से हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला जब्त हो जाय या फिर पंकज उधास की नशा एलबम मिल जाय तो उसे भी अपराधी की श्रेणी मे ही रखा जाएगा।साहेब ने तो राज्य की छवि ही बदल दी है।संभवतः बेजान दारूवाला ने साहेब के दारू बंद करवाने के बाद प्रधानमंत्री बनने की भविष्यवाणी कर रखी है।इसलिए साहेब नहा धोकर लग गए है शराब और शराबियों के पीछे। साहेब का महज एक ही एजेंडा रह गया है कि राज्य मे भले लूट, हत्या, बलात्कार, अपहरण जैसे अपराध चाहे कितनी भी बढ जाए पर पियक्कड़ो का मनोबल नही बढ़ना चाहिए। दिल्ली, यूपी हो या अमेरिका या फिर सुदूर ग्रह पर साहेब का कोई भी आयोजन हो शराबबंदी का ढोल पीटने मे जनाब जरा भी चूक नही करते ।
विदित हो कि अपने शासन के शुरुआती वर्षों मे साहेब ने सर्वहारा वर्ग से कुलीन वर्गों तक के सुख दुःख सेलिब्रेशन के साथी “सोमरस” को राज्य के ऐसे गांव व गली तक पहुँचा दिया था जहाँ पर बिजली व सड़क तथा विकास की किरण तक नही पहुँच पाई थी।राज्य के आय का सबसे बड़ा स्त्रोत मध उत्पाद बन गया था।अब पूर्ण शराबबंदी की स्थिति “बना के क्यों बिगाड़ा रे” को चरितार्थ करती नजर आती है।सोमपुरूष विजय माल्या के भारत से भागने के पीछे कहीं न कहीं साहेब के पूर्ण शराबबंदी का निर्णय भी जिम्मेदार है।आप ही बताइए जब इतना बड़ा शराब उपभोक्ता राज्य शराब पर ही प्रतिबंध लगा दे तो शराब निर्माता माल्या साहब देश ना छोड़ेगे तो क्या बिहार मे कद्दु की खेती करेंगे।
बहरहाल शराब सेवन का नशा इतना प्रभावी नही होता जितना आजकल शराबबंदी का खुमारी साहेब पर हावी हो चुका है।राज्य,जनता, विकास आदि की सुधि लेने की बजाय हाकिम शराबबंदी मे बेसुध हो चुके है। है।
— विनोद कुमार विक्की