ग़ज़ल -वह ज़नाज़े में कुवांरा जाएगा
चाँद को जब भी सवाँरा जाएगा ।
टूट कर कोई सितारा जाएगा ।।
है कोई साजिश रकीबों की यहाँ ।
जख़्म दिल का फिर उभारा जाएगा ।।
सिर्फ मतलब के लिए मिलते हैं लोग ।
वह नज़र से अब उतारा जाएगा ।।
कुछ अदाएं हैं तेरी कातिल बहुत ।
यह हुनर शायद निखारा जाएगा ।।
रिंद है मासूम उसको क्या खबर ।
जाम से बे मौत मारा जाएगा ।।
उम्र गुजरी है वफादारी में सब ।
बेवफा कहकर पुकारा जाएगा ।।
टूट जायेंगी वो दिल की बस्तियां ।
गर तुम्हारा इक इशारा जाएगा ।।
मुंतज़िर वह आरज़ू मायूस है ।
वस्ल का तनहा सहारा जाएगा ।।
ज़ार मिट्टी का है मत इतरा के चल ।
हर गुमां इक दिन तुम्हारा जाएगा ।।
हिज्र में कुछ ज़िद का आलम देखिए ।
वह ज़नाज़े में कुँवारा जाएगा ।।
ठोकरों के बाद भी दीवानगी ।
मैकदों में वह दोबारा जाएगा ।।
ख्वाब में शब् भर रही तुम साथ में ।
दिन भला कैसे गुज़ारा जाएगा ।।
क्या हुआ गर चाँद में कुछ दाग है ।
ईद की ख़ातिर निहारा जाएगा ।।
— नवीन मणि त्रिपाठी