गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

वो बात ही कुछ ऐसी कर गए होंगे
कि ख्वाब पलकों से फ़िसल गये होंगे ।।

यूँ तो बेदर्द नही था वो कभी इतना
वक्त अपनी करवट बदल गए होंगे ।।

धूल चेहरे पे उड़ाते रहे कि पहचान न हो
अश्क भी बहने से मुकर गए होंगे ।।

शहर में चर्चा गर्म था अपनी आशनाई का
दिल, दिलजलों के जल गए होंगे ।।

हवाओं ने ख़बर ये आस्मां तक उड़ा डाली
तब बादल कई घर से मचल गये होंगे।।

अब वो मुड़ मुड़ के देखते हैं परछाइयाँ मेरी
धूप के पहरे कुछ बदल गए होंगे ।।

प्रियंवदा अवस्थी

प्रियंवदा अवस्थी

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से साहित्य विषय में स्नातक, सामान्य गृहणी, निवास किदवई नगर कानपुर उत्तर प्रदेश ,पठन तथा लेखन में युवाकाल से ही रूचि , कई समाचार पत्र तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित , श्रृंगार रस रुचिकर विधा ,तुकांत अतुकांत काव्य, गीत ग़ज़ल लेख कहानी लिखना शौक है। जीवन दर्शन तथा प्रकृति प्रिय विषय । स्वयं का काव्य संग्रह रत्नाकर प्रकाशन बेदौली इलाहाबाद से 2014 में प्रकाशित ।