आजादी के महानायक –नेता जी सुभाष चंद्र बोस
23 जनवरी जन्मदिन पर विशेष
आजादी के महायक –नेता जी सुभाष चंद्र बोस
लाल बिहारी लाल
नई दिल्ली। सुभाष चंद्र बोस का जन्म मशहूर वकील जानकीनाथ बोस के घर 23 जनवरी 1897 को उड़िसा के कटक शहर में हुआ था।इनकी माता का नाम प्रभावती था।जानकीनाथ के कुल 14 संतान
थे।6 बेटियाँ औऱ 8 बेटे थे। सुभाष उनकी 5वें बेटे और 9वीं संतान थे। सुभाष का अपने सभी भाइयों में सबसे ज्यादा लगाव शरद चंद्र से था । शरद बाबू जानकीनाथ के दूसरे बेटे थे।
सुभाष की प्रारंभिक शिक्षा कटक के प्रोस्टेण्ट यूरोपियन स्कूल से प्राप्त कर 1909 में रेवेनशा कालेजियट स्कूल में दाखिला लिया। कालेज के प्रिंसपल बेनीमाधव दास के ब्यक्तित्व का सूभाष के मन पर काफी गहरा प्रभाव पड़ा। सुभाष मात्र पन्द्रह वर्ष की आयु में विवेकानंद साहित्य का पूर्ण अध्ययन कर लिया।1915 में इंटरमीडियेट की परीक्षा द्वीतीय श्रेणी से पास कर ली। 1916 में बी.ए. दर्शनशास्त्र(आनर्स) प्रेसीडेंसी कालेज में दाखिला लिया। इसी बीच प्रेसीडेंसी कालेज में छात्र और शिक्षकों के बीच झगड़ा हो गया इन्होने छात्रों की ओर से मोर्चा संभाला नतीजा एक साल के लिए कालेज से निकाल दिया गया और परीक्षा देने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया। वे सेना में जाना चाहते थे पर आंखे खराब होने के कारण नही जा सके तो फिर उन्होने टेरीटोरीयल आर्मी की परीक्षा दी और फोर्ट विलियम सेनालय में रंगरुट के रुप में प्रवेश पा गये।सुभाष ने खूब मन लगाकर पढ़ाई की औऱ 1919 में बी.ए. आनर्स की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास की और इनका कलकता विश्वविद्यालय में दूसरा स्थान रहा।
इनके पिता की इच्छा थी कि सुभाष आई.सी.एस. बने किन्तु आयु के हिसाब से मात्र एक ही चांस था फिर भी पिता की वात मानकर 15 सितंबर1919 में इंगलैंड चले गये। और 1920 में आई.सी.एस. की परीक्षा पास कर ली इनका परीयता क्रम में 4था स्थान था। परन्तु इनकेविचारों में स्वामी विवेकानंद औऱ महर्षी अकविंद ने कब्जा जमा रखा थाअतः इन्होने अंग्रजों के गुलामी करने के बजाये देशहित में काम करने को सोंचा औऱ 22 अप्रैल 1921 को भारत सचिवआ.एस. मानटेग्यू को आई.सी.एस. से त्यागपत्र देने को पत्र लिखा।
कोलकाता के स्वतंत्रता सेनानी देशबंधु चितरंजन दास के कार्य से प्रभावित होकर उनके साथ काम करना चाहते थे इशलिए एख पत्र न्हें भी लिखा।भारत आने पर रवीन्द्र नाथ टैगोर के सलाह पर सबसे पहले मुम्बई गये और महात्मा गाँघी जी से मिले। गांधी मुम्बई में मणी भवन में रहते थे। 20 जुलाई 1921 को गांधी और सुभाष की पहली मुलाकात हुई।गांधी जी ने कोलकता जाकर दासबाबू के साथ काम करने की सलाह दी ।इसके बाद सुभाष कोलकाता आकर दासबाबू से मिले। उन दिनों गांधी जी ने अंग्रैजो के खिलाफ असहयोग आंदोलन चला रखा था। दासबाबू इस आंदोलन का बंगाल में नेतृत्व कर रहे थे।इनके साथ सुभाष सहभागी हो गये।1922 में दासबाबू नें काग्रेस के अन्तर्गत स्वराज पार्टी की स्थापना की। विधानसभा के अंदर से अग्रैज सरकार का विरोध करने के लिए कोलकाता महापालिका का चुनाव स्वराज पार्टी ने लड़कर जीता औऱ दासबाबू कोलकाता के महापौर बने।उन्होने सुभाष को मुख्य कार्य़कारी अधिकारी बनाया।सुभाष ने अपने कार्यकाल में महापालिका का पूरा ढाँचा ही बदल दिया। सभी रास्तों के अंग्रैजी नाम बदलकर भारतीय नाम दिया।बहुत जल्दी ही सुभाष देश के एक महत्वपूर्ण युवा नेता बन गये। सुभाष नें जवाहर लाल नेहरु के साथ कांग्रेस के अन्तर्गत युवकों की इण्डिपेंण्डेंस लीग की स्थापना की ।1928 में जब साइमन कमीशन भारत आया तो काग्रेस ने काले झेडे दिखाया। सुभाष ने इस आंदोलन का कोलकाता में नेतृत्व किया। साइमन कमीशन को जबाब देने के लिए कांग्रेस नें भावी संविधान बनाने का काम 8 लोगों को सौंपा जिसके अध्यक्ष मोती लाल नेहरू तथा एक सदस्य सुभाष भी थे। 1928 को कोलकाता धिवेशन में सुभाष ने खाकी गणवेश धारण कर सैन्य तरीके से सलामी दी। गांधी जी उन दीनों पूर्ण स्वराज्या की मांग से सहमत नहीं थे पर नेहरु और सुभाष पूर्ण स्वराज्य चाहते थे। फिर तय हुआ कि सरकार को एक साल का डोमिनीयन स्ट्टस के लिए समय दिया जाता है। पर सरकार ने इनकी वातें नहीं मानी। 1930 में में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन जवाहर लाल नेहरु की अध्यक्षता में हुआ तब तय हुआ कि 26 जनवरी का दिन स्वतंत्रता दिवस के रुप में मनाया जायेगा।
26 जनवरी 1931 को कोलकाता में सुभाष राष्ट्रध्वज फहराकर एख विसाल मोर्चा का नेतृत्व कर रहे थे तभी पुलिस ने उनपर लाठी चलाई और गिफ्तार कर लिया। सरकार से गांधी जी का समझोता हुआ और सभी कैदियों के रिहा कर दिया गया पर सरकार ने भगत सिंह औऱ उनके साथियों को छोड़ने पर राजी नहीं हुई।।सुभाष ने गांधी जी पर समझौता तोड़ने का दबाव बनाने लगे पर गांधी जी ने नहीं माना। इश घटना से सुभाश काफी नराज हो गये।और उनका मानना ता कि गांधी जी चाहते तो भगत सिंह की फासी टल सकती थी।
सुभाष 1933 से 1936 तक यूरोप रहे और वही से आजादी के समर्थन में अपना योगदान देते रहे।1938 के हरीपुरा कांग्रेस के 51 वें अधीवेशन में गांधी जी ने इन्हें अध्यक्ष बनाया पर अके कार्यशैली से संतुष्ट नही हुए फिर 1939 के कांग्रेस अधिवेशन में पी. सीतारमैया को चुना गया। 3 मई 1939 को सुभाश ने काग्रेस के अंदर ही फाऱवार्ड ब्लाँक की स्थापना की।कुछ दिन बाद सिभाष को कांग्रेस से ही निकाल दिया गया।बाद में फारवार्ड ब्लाएक एख स्वतंत्र पार्टी बन गई। दिवीतीय विश्वयुद्ध के दौरान अगऐजौं के खिलाफ जापान के साथ मिलकर आजाद हिन्द फोज का गठन किया।इनके द्वारा दिया गयानारा जय हिन्द आजादी का नारा बन गया।तुम मुझे खून दो मैं तुमहें आजादी दूंगा नारा भी काफी लोकप्रिय हुआ। जर्मनी प्रवास के दौरान जर्मनी के सर्वोच्च नेता अडाँल्फ हिटलर ने इन्हें नेता जी की उपाधी दी। 5 जुलाई 1943 को सिंगापुर के अपने संबोधन में कहा था दिल्ली तलो का नारा दिया। जपानी सेना के सहयोग से प्रिटीश सेना से भर्मा सहित इम्पाल औऱ कोहिमा में एख साथ जमकर लोहा लिया।
21 अक्टूबर 1943 में नेता जी ने आर्जी –हुकुमते आजाद –हिन्द( स्वाधीन बारत की अंतरीम सरकार) की स्तापना की। वे इस सरकार के कुध राष्टट्रपतु,प्रधानमंत्री औऱ युद्धमंत्री बने। इश सरकार को कुल 9 देशओं ने मान्यता दी।नेता जी आजाद हिन्द फौज के प्रधान सेनापति भी बने। 18 अहस्त 1945 के दिन नेता जी कहां लापता हो गये औऱ उका आगे क्या हुआ यह भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा अनुतरित रहस्य बन गया है।