दिल्लगी
हम उनसे दिल लगा बैठे
और उन्हें हमारी बातें
दिल्लगी लगती हैं
हमारी मोहब्बत झूठी
और दुनिया क्यूँ सगी लगती है
अब कैसे समझाएं उन्हें
हमारा प्यार प्यार था
कोई सौदा नही
फिर क्यूँ दुनिया की बातें सच्ची
और हमारी मोहब्बत
ठगी लगती है
हम उनसे दिल लगा बैठे
और उन्हें हमारी बातें
दिल्लगी लगती हैं
हर पल सोचते रहे
सिर्फ उनके लिए
खुद की ख्वाहिशों को नोचते रहे
सिर्फ उनके लिए
अपनी खुशियों को खोकर
मंज़िलें खोजते रहे
सिर्फ उनके लिए
और वो हैं
जिन्हें हमारी कोशिशें रूखी लगती हैं
क्यों
आखिर क्यों दिल लगा बैठे
उन्हें तो हमारी बातें
दिल्लगी लगती हैं