नदी का किनारा
चहुँ दिशि दूर तलक फैला है,अंधकार का मेला ।
उसी निशा में टिमटिम करता दीपक एक अकेला ।
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एक अकेली नाव ,नदी के लम्बे दूर किनारे ।
बिन चंदा के आसमान में आये अनगिन तारे।
एक अकेला पथिक समेटे कंधे पर इक झोली ।
नीरवता को तोड़ टिटहरी कहीं खेत मे बोली ।
सांय सांय करता आया पुरवइया का एक रेला ।
टिम टिम ……………………………………..
नदिया के तट से टकराकर लहरें करें ठिठोली ।
चकवा पास नही है,चकवी नदी पार से बोली ।
अर्धरात्रि मल्लाह उठे,खाँसे,बीड़ी सुलगाये ।
हवा शांत सोती नदिया के तन को छूकर जाये ।
मिलकर गले रातरानी से महक उठा है बेला ।
टिम टिम करता……….
———–© दिवाकर दत्त त्रिपाठी