आया मधुमास
पीत वसन धारा मधुमासा।
पुलकित उर जागी बहु आसा ।।
सुरभित सरसों हिय मदमाती।
देख तिन्हें अवनि हरषाती।।
वन-उपवन में छाई बहार।
शारदे! आ जाओ इक बार।।
स्वर्ण कलश ऊषा छिटकाई।
पीत चुनर खेतन लहराई।।
हिम कणिका से माँग सजाई।
कर सिंगार धरा मुस्काई।।
पूजती रजनी बारंबार।
शारदे! आ जाओ इक बार।।
— डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”