आजादी भाग –२७
राहुल को घर छोड़ कर भागे हुए आज पांचवां दिन था । विनोद अपने बाबूजी के साथ आज फिर पुलिस चौकी आ पहुंचा था ।
पिछले चार दिनों से दोनों लगातार किसी अपराधी की तरह से पुलिस चौकी पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए विवश थे । रोज आते और कुछ समय के इंतजार के बाद हवलदार के दो सांत्वना के शब्द सुनकर और ‘ राहुल को हम जल्द ही ढूंड निकालेंटीगे ‘ जैसा आसान सा आश्वासन पाकर दोनों वापस अपने घर चले जाते । घर पर कुछ नए समाचार की उम्मीद में कल्पना और उसकी सास ईश्वर से गुहार लगाती रहतीं । दोनों पिता पुत्र के लटके हुए चेहरे देखकर ही सास बहु को खबर का अंदाजा लग जाता लेकिन फिर भी उनका कुछ पूछे बिना दिल ही नहीं मानता था । कल्पना अधीर सा होकर पुछ बैठती ” क्या कहा दरोगाजी ने ? राहुल जा कुछ पता चला ? ”
और बुझे हुए मन से विवश विनोद रोज वही पुलिस से मिले आश्वासनों का पुलिंदा अपनी माँ और पत्नी के सामने रख देता । उसकी माँ अपने स्वभाव के अनुसार विनोद को ही राहुल की गुमशुदगी के लिए जिम्मेदार मानते हुए दो चार खरी खोटी सुनाये बिना नहीं रहती । थोड़ी देर मौन रहकर उसके बाबूजी भी अपनी पत्नी का साथ देने लगते । दोनों की जुगलबंदी से विनोद मन ही मन आहत होते हुए भी मौके की नजाकत और अपने संस्कारों की वजह से अपने माताजी व बाबूजी की कड़ी फटकार को भी आशीर्वचन तुल्य मानते हुए विनम्र और खामोश रहता । उसके बाद विनोद और कल्पना का पुरा समय उनकी तीमारदारी में बीत जाता । गाहे बगाहे पड़ोस के लोग भी आ धमकते । शर्माजी तो उनके घर के सदस्य सदृश्य ही हो गए थे । हमदर्दी जताने के लिए अक्सर विनोद के घर पहुंचते रहते और कल्पना के लिए तीमारदारी करवाने वालों की संख्या में इजाफा करते रहते । पुत्र वियोग के गम का बोझ उठाती कल्पना को अपने सास और ससुर के संग इन मुलाकातियों की मेजबानी नागवार गुजर रही थी लेकिन मजबुर थी अपने परिवार के आदर्शवादी उसूलों से जिनका मानना था कि ‘ अतिथि देवोभव ‘ ।
बड़ी देर तक बैठने के बाद विनोद के बाबूजी अब हवलदार को कुछ कहने ही जा रहे थे कि तभी हवलदार ने स्वयं ही उन्हें इशारे से अपने पास बुलाया । अपने बाबूजी के साथ विनोद भी जाकर उस हवलदार के सामने रखी कुर्सियों पर बैठ गया । फाइलों से सर बाहर निकालते हुए हवलदार ने पूछा ” क्या नाम था तुम्हारे लडके का ? ”
अभी विनोद कुछ जवाब देता उससे पहले ही उसके बाबूजी उस हवालदार पर भड़क गए ” नाम था नहीं बेटे नाम है और नाम हमेशा रहता है । समझे ? ”
हवलदार अब उस बुजुर्ग आदमी को भला क्या कहता ? क्षमा मांगते हुए वह विनोद से मुखातिब हुआ । विनोद ने बताया ” राहुल ! राहुल नाम है मेरे बेटे का । आज पांचवां दिन है साहब ! कुछ पता नहीं चल रहा है । हमारी चिंता बढ़ती जा रही है । ”
हवलदार ने ध्यान से उसकी बात सुनते हुए जवाब दिया ” अच्छा हुआ आप आज आये । हम तुम्हें फोन करके बताने वाले ही थे । आज सुबह ही सुरेन्द्र नगर थाने से खबर आई थी । वहां के थाने से सम्बंधित मुखबिर ने सुचना दी है कि आपका बेटा राहुल अभी तीन दिन पहले सुरेन्द्र नगर रेलवे स्टेशन परिसर में देखा गया था । अंतिम बार वह रेलवे स्टेशन के सामने किसी ढाबे पर देखा गया था । सुरेन्द्र नगर पुलिस ने उस ढाबेवाले से भी पुछताछ की है । उसका कहना है कि राहुल एक दिन उसके यहाँ रहा था और अगले दिन शाम ढाबे से जाने के बाद लौट कर नहीं आया था । हमारे मुखबिर अभी और पता लगा रहे हैं कि ढाबे से निकल कर वह कहाँ गया । विनोद जी ! आप फ़िक्र नहीं करिए । आपका लड़का तो अब मिल ही जायेगा क्योंकि हमें उसके स्थिति के बारे में कुछ कुछ जानकारी मिल गयी है । हमें अफसोस है हम अभी तक डॉक्टर राजीव के बेटे बंटी की कोई जानकारी नहीं मिली है । अब आप लोग घर जाइये ! कल शायद कोई और जानकारी मिले । जैसे ही हमें कोई जानकारी मिलेगी आपको फोन करके बता देंगे । ”
विनोद ने दोनों हाथ जोड़ते हुए उससे विनती की ” आपकी बहुत बहुत मेहरबानी होगी साहब ! कल मैं फिर आऊंगा । नमस्ते ! ”
कहकर विनोद ने बाबूजी का हाथ थामा और पुलिस स्टेशन से बाहर आ गया । घर पर कल्पना बड़ी बेसब्री से उनका इंतजार कर रही थी । विनोद को देखते ही सोची दौड़ कर उसके पास पहुँच जाऊं और अपने लाल के बारे में उससे पुछे लेकिन बाबुजी की उपस्थिति का उसे भली भांति भान था । वैसे भी विनोद के लटके हुए चेहरे को देखकर उसे विनोद के जवाब का अंदाज लग गया था लेकिन फिर भी पुछे बिना कैसे रह सकती थी ? थके कदमों से विनोद ने कमरे में प्रवेश किया और सोफे पर गीर कर निढाल हो गया । उसके बाबुजी भी एक सोफे पर बैठ गए थे । कल्पना ने पानी का गिलास बाबुजी को देने के बाद विनोद को पानी का गिलास थमाते हुए पुछ ही लिया ” क्या कहा पुलिस ने ? ”
पानी पीने के बाद सोफे पर पहलू बदलते हुए विनोद ने शांत स्वर में उसे हवालदार ने जो भी बताया था सब बता दिया । पुरी बात सुनकर विनोद के विपरीत कल्पना ने संतोष जताया । उसने विनोद को बताया ” भगवान की बड़ी मेहरबानी है । उसकी ही कृपा है कि हमें पुलीस कुछ करती हुयी दिख रही है । सुराग मिल जाने पर पुलिस अवश्य राहुल तक पहुँच जाएगी । अब हमें उम्मीद करनी चाहिए शीघ्र ही हमारा बेटा हमारे साथ होगा । ”
विनोद ने उससे सहमति जताते हुए बताया ” भगवान करें तुम्हारा आकलन सच साबित हो ! तुमने सच ही कहा है भगवान हमारे साथ है और उम्मीद पे तो दुनिया कायम है । हम भी उम्मीद करते हैं हमारा बेटा शीघ्र ही हमारे साथ होगा । ”
विनोद के हाथ से खाली पानी का गिलास रसोई नें रखकर कल्पना अपने कमरे में जाकर पलंग पर तकिये में मुंह छिपाकर फफक पड़ी । विनोद के सामने सामान्य सी दिखनेवाली कल्पना अपने पुत्र वियोग में विक्षिप्त सी हो गयी थी । बड़ी मुश्किल से उसने अपने आपको संभाला हुआ था । विनोद के सामने रो धो कर वह उसे कमजोर नहीं करना चाहती थी । वह जानती थी यदि विनोद ने यदि धैर्य छोड़ दिया तो फिर राहुल की खोजखबर कौन ले सकेगा । अगर कहीं कुछ पता चला तो फिर दौडभाग कौन करेगा ?
इधर राहुल मनोज का सवाल सुनकर मुस्कुराया और बोल पड़ा ” धीरज रखो ! अभी हमें कोई जल्दी नहीं है । हमें पता है अब रात होने के पहले यहाँ कोई आनेवाला नहीं है और अभी दोपहर भी नहीं हुयी है । हाँ ! तो तुम लोग पुछ रहे थे इस शीशी का हमारी रिहाई से क्या सम्बन्ध है ? तो सुनो ! उससे पहले यह जान लो कि आगे क्या होनेवाला है ? तभी तुम्हें इस शीशी की उपयोगिता समझ में आएगी और तुम समझ पाओगे कि इस शीशी का हमारी रिहाई से क्या सम्बन्ध है ! ”
सभी बच्चे ध्यान से उसकी बात सुन रहे थे ।