याचना: देशगीत
हमरे देशवा की संस्कृतिया का बचाय लेतु राम
जगह जगह पर लूट-पाट औ अत्यचार डकैती,
राग,द्वेष सब भरिगा मन मा नाही रही मिठौती,
आयके जल्दी सबके मनमा प्यार जगाय देतू राम।।
छोड़के अपनी मानवता को पशु प्रवृति को धावै,
पाश्चात्य संस्कृति अपना कर नंगे बदन देखावै,
इनका लाज न ,नाक अपनी तुम बचाय लेतू राम।।
माय बाप के पैर न छूते कहते उनको टाटा,
बैठिके जब भी भोजन करते पहिने पैर मे बाटा,
टाटा,बाटा केरे अंतर का समझाय देतू राम।।
कोई नही है मालिक घर का संस्कृति कौन बचावै,
चोर बने हैं राजा अपने नोच नोच के खावै ,
चमरगीद्ध,चील ,कउवो से बचाय लेतू राम।।
यहाँ दलालों की मंडी है मंत्री दलाली खाते,
देशवा मे जब चोरी करके जेल पकड़ कर जाते,
जेल मे विस्तर मलमल गद्दा औ मलाई मिले राम।।
शिक्षा का तो नाम नही है मृतक हुई मानवता,
साछर बनिकै घर मे अपने फैलाइन दानवता,
मानव दानव केरे अंतर का समझाय देतू राम।।
पीछे मुड़ कर देखें जिसको चलते उसके पीछे,
बढ़ते नही कभी भी आगे चलते पीछेक पीछे,
जरा से आयके उनकी बुद्धि का जगाय देतू राम।।
“प्रकाशबन्धु” 9984540372
(2)
हमका देशवा केर बुराई,नाही नीक लागै राम।
नाही नीक लागै राम ; नाही नीक लागै राम;
हमका देशवा केर बुराई,नाही नीक लागै राम।।
फूलों की घाटी को जो तू,कुचल रहा है कसाई;
शरम हया न तुझको कुछ भी,तू हो गया बेहयाई।
बलि का बकरा द्याब बनाई।
हमका छयाड़व् न भैय्या जौ,आपन चाहौ भलाई;
हम मेहनत का अपना खाते,परधन कसम धराई।
ज्यादा ब्वालव न टर्राई।
जब जब तूने क्रोध किया,तो मैंने शांति सिखाई;
भूमण्डल पर आदि सभ्य है,सुन गंवार हरजाई।
याहिस तुमका बख्सौ भाई।
ज्ञान का दीपक हमने लेके,सबको राह बताई;
आज हमी को करै चुनौती,घेरि कै रार बढ़ाई।
तुमका छवाड़व तौ अब भाई।नाही नीक…
ठहर ठहर ओ देश के दुश्मन,कहाँ को भागा जाई;
तूने आँख दिखाना चाहा,लेंगे आँख निकराइ।
तुमका गहिरेंम द्याब गड़ाई।
इस धरती पर जनम लिया,खेलेव कूदेव खाई;
पाल पोष के बड़ा जो कीन्हा,वो है धरती माई।
तुम जौ माँ की करौ बुराई।
माँ का बदला लेके रहेगे,आओ सब मिलि भाई;
माता का अपमान सहन न,कहत”प्रकाश”बुझाई।
तुम जौ देशवक करौ बुराई।
“प्रकशबन्धु”9984540372