बसन्त….
मन में फिर से प्यास जगाया
पिया मिलन की आस जगाया
खेतों मे कुछ फूल हैं पीले
हर्षित मन है दिल हैं खिले
प्रकृति भी गजब इठराई
कली – कली ले रही अगड़ाई
मौसम जैसे पास बुलाता
धूप के संग जाड़ा दिखलाता
आओ हम भी खो जाते हैं
अब की इनके हो जाते हैं
जीवन के अब रंग चलेगें
फगुआ के संग भंग चलेगें
इस बहाने उस बहाने
उनके संग खूब छेड़ तराने
जहाँ मिला था साथ तुम्हारा
बात तुम्हारी हाथ तुम्हारा
वो पथ फिर से चहक रहे हैं
कुछ लोग फिर से बहक रहे हैं
शरद का बस अब अन्त है आया
फिर से देखो बसन्त है आया
…..बसन्तोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं
– डॉ० शरदेन्दु कुमार त्रिपाठी,
लखनऊ
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