शिशुगीत

शिशुगीत – 26

1. होली

होली जमकर सभी मनाएँ
गुझिया, मालपुए भी खाएँ
ध्यान रहे जो नहीं चाहता
भूल न उसको रंग लगाएँ

2. पिचकारी

भैया बड़ी एक ले आया
दीदी ने छोटा मँगवाया
पिचकारी मैं नहीं चलाता
गुब्बारों से काम चलाया

3. रंग बरसे

तितली को मैं आज चिढ़ाती
रंगों से इतना पुत जाती
मुझको बहुत पसंद पर्व ये
मस्ती लेकर होली आती

4. गुलाल

मुझे गुलाल अधिक भाते हैं
बिन पानी वे हट जाते हैं
गालों पर खिलते मुस्काकर
गीत बहारों के गाते हैं

5. मालपुए

मालपुए की बात निराली
सजा सभी की देता थाली
होली इसके बिना न होती
देख इसे मैं तो मतवाली

*कुमार गौरव अजीतेन्दु

शिक्षा - स्नातक, कार्यक्षेत्र - स्वतंत्र लेखन, साहित्य लिखने-पढने में रुचि, एक एकल हाइकु संकलन "मुक्त उड़ान", चार संयुक्त कविता संकलन "पावनी, त्रिसुगंधि, काव्यशाला व काव्यसुगंध" तथा एक संयुक्त लघुकथा संकलन "सृजन सागर" प्रकाशित, इसके अलावा नियमित रूप से विभिन्न प्रिंट और अंतरजाल पत्र-पत्रिकाओंपर रचनाओं का प्रकाशन