कविता

किन्नर

किन्नर

जाने कौन हूँ मैं और
जाने क्या हूँ मैं !!
हूँ औरत की परछाई, या
मर्द का साया हूँ मैं !!
हूँ अभिशाप कोई, या
कुदरत का अन्याय हूँ मैं!!
हूँ एक इंसान ही
या कोई परग्रही हूँ मैं!!!!
रहता तो इंसानो की दुनियां में हूँ
फिर भी क्यों मुझे
नहीं समझा जाता इंसान !!!
क्यों नहीं मिला दर्जा बराबरी का !!
क्यों मेरा कोई दोस्त
नहीं बनना चाहता
क्यों मुझसे कोई सीधी बात
नहीं करना चाहता
नहीं मिलता कही रोजगार मुझे
नाचने गाने के अलावा
नहीं करने देते कोई व्यापार मुझे
खता आखिर क्या है मेरी !!
फ़क्त इतनी ही कि
उस ईश्वर ने मुझे अपना रूप दिया है
अर्धनारीश्वर बना मुझे भेज दिया है
पर इसमें मेरी खता तो नहीं
मैंने तो न चाहा था ऐसा रूप
फिर क्यों मुझे समझते है कुरूप
वो ईश्वर तो भेदभाव
नहीं करता मुझसे
ये हवा तो मुझे भी
वैसे ही छूती है जैसे तुम्हें
पानी भी मुझे वैसे ही
भिगोता है जैसे तुम्हें
सूरज अपनी रौशनी भी
एकसमान ही देता है
चोट लगने पर मेरा मन भी रोता है
ख़ुशी मिलने पर झूमता है
फिर क्यों….क्यों लोग मुझे
हेय दृष्टि से देखते है !!
जब आऊं पास मैं तो
नाक मुँह सिकोड़ते हैं
कहते हैं ईश्वर की बनायी
सब चीजो में ईश्वर का वास होता है
फिर मैं तो साक्षात शिव का
अर्धनारीश्वर रूप हूँ
क्या मुझमें नहीं दीखता तुम्हें
ईश्वर का वास!!!!!

*प्रिया वच्छानी

नाम - प्रिया वच्छानी पता - उल्हासनगर , मुंबई सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने E mail - [email protected]