अर्चना
सच्चे मन से जो पुकारे,माँ माँ माँ,
भक्तों के कष्टों को हरती तुरत माँ।।
हाथ फूल माला जल अछत को लेके,
करो माँ की सेवा तन मन धन देके,
याद सच्चे मन से करो देगी दरश माँ।।
कर शंख शूल फूल चक्र गदा राजे,
तलवार धनु खल मण्डन विराजे,
भक्तों के ऊपर खाती तरस माँ।।
जाओ माँ के द्वारे लाल चुनरी चढ़ाओ,
जो भी कुछ खाओ वो मैय्या को खिलाओ,
भाव की भूखी मैय्या गिर जा चरण माँ।।
माँ को ईर्ष्या द्वेष छल कपट न भावै,
खुला दरबार चाहे जो कोई आवै,
करे फरियाद अपनी माँ के मन्दिर माँ।।
(2)
अकेले हैं चली आओ मेरी माँ देर करती क्यों।
न स्वर लय ताल है मैय्या,करूं फिर भी तेरा बन्दन।
तू आकर ज्ञान स्वर दे माँ अरे अब देर करती क्यों।।
हे!पूर्णागिरि मेरी मैय्या मेरे अरमान पूरे कर,
बनाकर पूर्ण मानवकर अरे अब देर करती क्यों।।
शिखरगीरि वास तेरा माँ भवन मे भीर भारी है,
अकिंचन को दिखाओ पथ मेरी माँ देर करती क्यों।।
हे वैष्णव विष्णु रूपातुम महामाया जगत जननी,
महाकाली स्वरूपा माँ अरे अब देर करती क्यों।
तू अपनी मोहिनी छवि को मेरे मन दरपे झलकादे।
काट बन्धन सभी माया के माँ अब देर करती क्यों।।
है जीवन जीव का तम मे महातम पथ महामाया,
जला तू ज्ञान ज्योति माँ अरे अब देर करती क्यों।।
(3)