“गीतिका”
मापनी- 2221 221 221 222
कुछ तो बात है आप के आशियाने में
सबको छाप दिये एकही शामियाने में
गुमशुम हैं लटकने खफा कहरदार लिए
आपस में मशवरा मसगूल बतियाने में।।
इक ही राग है हर मन की एक रागीनी
इक ही तो अलाव है मुराद हथियाने में।।
अहम चुनाव है अब नयी मशवरा देखें
फिर आया मजा उनके घिघियाने में।।
पूछ लिया हाल तो बीमार हो गए
लग गए अपनी थैली गठियाने में।।
कुछ तो बोझ हम भी उठाते हैं इनका
कुटिल कराल है सठ सठियाने में।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी