गीत : जब मन से उमड़े प्यार
नेह बिना तुम मिलन देह का मत करना स्वीकार
इस गंगा में तब बहना जब मन से उमड़े प्यार !!
आसमान को छूने की तो
मन में चाह भरी है
पर मैं जो कहती हूँ वो भी
बिलकुल बात खरी है
नीलगगन में उड़ना जब लो पूरे पंख पसार
इस गंगा में तब बहना जब मन से उमड़े प्यार !!
अगर स्वाद ही मिले न तो क्या
खाना खाया जाये
बेमन से जो करें समर्पण
तो आनन्द न आये
प्रेम नहीं है दुनियादारी प्रेम नहीं व्यापार
इस गंगा में तब बहना जब मन से उमड़े प्यार !!
भाव बहुत अनमोल इसे तुम
यों ही नहीं गँवाना
इसे समझनाजैसे पूजन
कर ईश्वर को पाना
रिश्ते वैसे होते जैसा होता है आधार
इस गंगा में तब बहना जब मन से उमड़े प्यार !!
— अर्चना पांडा