गीत : समर्पण भाव
अनवरत चलते रहें हम
भूल बैठे मुस्कुराना
है यही अनुरोध तुमसे
बस ख़ुशी के गीत गाना।
फर्ज की चादर तले, कुछ
मर गए अहसास कोमल
पवन के ही संग झरते
शाख के सूखे हुए दल
रच गया बरबस दिलों में
औपचारिकता निभाना
है यही अनुरोध तुमसे
बस ख़ुशी के गीत गाना
नित सुबह से शाम ढलती
दंभ,दरवाजे खड़ा है
रस विहिन इस जिंदगी में
शून्य सा बिखरा पड़ा है।
क्षुब्ध मन की पीर हरता
प्रीति का कोमल खजाना
है यही अनुरोध तुमसे
बस ख़ुशी के गीत गाना।
साँस का यह सिलसिला ही
वक़्त पीछे छोड़ता है
हर समर्पण भाव लेकिन
तार मन के जोड़ता है.
मैं कभी रूठूँ जरा सा,
तुम तनिक मुझको मनाना।
है यही अनुरोध तुमसे
बस ख़ुशी के गीत गाना।
— शशि पुरवार