बन्दना
मैय्या सरस्वती आय के विराजो कंठ,मस्तक मे बैठि मेरे ज्ञान को बढ़ाइये।
लेखनी चले तो कटे न कोई शब्द,ज्ञान इतना,बढ़ाय के स्वमहिमा दिखाइए।।
स्वेत हंसवाहिनी बीणा कर स्वेत ले,आय झनकार कर मम ज्ञान को जगाइए।
तेरी कृपा को नेत्र अब निहारते,आके सहारा दे भक्त को उठाइये।।
तूने विलम्ब किया आने मे मातु जो,तकता राह तेरा भक्त घर आइये।।
भूला है प्रेम का अर्थ ये समाज सब,सही अर्थ प्रेम का सबको को बतलाइये।।
भूल गया पाठ आज अपना समाज सब,याद पाठ पुस्तक ला फिर कराइये।।
ब्याप्त है समाज मे अशांति साम्राज्य अब,शांति के लिए स्वेत बस्त्र फहराइए।।
तेरे सहारे खड़ा ये समाज पथ ज्ञान न सही राह उसको बतलाइए।।
रहा न कोई मार्गदर्शक समाज का,मातु शीघ्र आ मार्गदर्शन कराइये।।
कार्य की ब्यस्तता से आ न पाओ मातु तो,संकट हरन हित दूत ही पठाइए।।
भटका “प्रकाश”बहु दिन तक अंधेरे मे दया दृष्टी करके माँ अब न भटकाइए।। “प्रकाशबन्धु”