छद्म सेकुलरिस्म
हरिगीतिका छंद
―――――――
रोये नहीं कश्मीर पर , रोये बड़े गुजरात पर
रोये न कैराना हुआ ,रोये बहुत अख़लाक़ पर
रोये बड़े पेलट गनो, के हो रहे उपयोग पर
रोये मगर बिलकुल नहीं , कालेधनो के योग पर
मंशा रही उनकी सदा , हम सब जनो को बांटना
बस तख़्त की खातिर हमें , वो चाहते है काटना
मत जात पातो पर बटो , कट जायगी अपनी जड़ें
लूटे गये हर बार हम , जब एक दूजे से लड़े
कहते सुना हक़ मोमिनो , का भारती पर है प्रथम
पूछो ज़रा क्या हिन्दुओ ,को चाहते करना ख़तम
रोये सदा माँ भारती , के दुश्मनों की मौत पर
रोये बड़े माँ भारती ,की आरती की ज्योत पर
रोते हुए देखा गया , उनको मरा जब इक अरी
ऐसा लगा रुदन सुना ,ज्यो आज उनकी माँ मरी
ये है बिलखते भारती , के पूत की हर जीत पर
अब क्रोध आता है बहुत ,आतंकियों से प्रीत पर
मत राह रोको सैन्य की , मिट जायगी सब हस्तियां
क्यों चाहते हो बाहरी आ कर उजाड़े बस्तियां
है देश के दुश्मन खड़े , माँ भारती के वक्ष पर
हे सैनिको अब तार दो ,इन दुश्मनों को भक्ष कर
मनोज”मोजू”