कविता

छद्म सेकुलरिस्म

हरिगीतिका छंद
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रोये नहीं कश्मीर पर , रोये बड़े गुजरात पर
रोये न कैराना हुआ ,रोये बहुत अख़लाक़ पर

रोये बड़े पेलट गनो, के हो रहे उपयोग पर
रोये मगर बिलकुल नहीं , कालेधनो के योग पर

मंशा रही उनकी सदा , हम सब जनो को बांटना
बस तख़्त की खातिर हमें , वो चाहते है काटना

मत जात पातो पर बटो , कट जायगी अपनी जड़ें
लूटे गये हर बार हम , जब एक दूजे से लड़े

कहते सुना हक़ मोमिनो , का भारती पर है प्रथम
पूछो ज़रा क्या हिन्दुओ ,को चाहते करना ख़तम

रोये सदा माँ भारती , के दुश्मनों की मौत पर
रोये बड़े माँ भारती ,की आरती की ज्योत पर

रोते हुए देखा गया , उनको मरा जब इक अरी
ऐसा लगा रुदन सुना ,ज्यो आज उनकी माँ मरी

ये है बिलखते भारती , के पूत की हर जीत पर
अब क्रोध आता है बहुत ,आतंकियों से प्रीत पर

मत राह रोको सैन्य की , मिट जायगी सब हस्तियां
क्यों चाहते हो बाहरी आ कर उजाड़े बस्तियां

है देश के दुश्मन खड़े , माँ भारती के वक्ष पर
हे सैनिको अब तार दो ,इन दुश्मनों को भक्ष कर

मनोज”मोजू”

मनोज डागा

निवासी इंदिरापुरम ,गाजियाबाद ,उ प्र, मूल निवासी , बीकानेर, राजस्थान , दिल्ली मे व्यवसाय करता हु ,व संयुक्त परिवार मे रहते हुए , दिल्ली भाजपा के संवाद प्रकोष्ठ ,का सदस्य हूँ। लिखना एक शौक के तौर पर शुरू किया है , व हिन्दुत्व व भारतीयता की अलख जगाने हेतु प्रयासरत हूँ.