भजन
हे!प्रभु तेरो नाम अधारा।।
जीवन पथिक को पथ दो स्वामी,कर दो पथ का तम निस्तारा।
भटक रहा हूँ मग दुर्गम तम,दिखता न कोई भी सहारा।
देकर ज्ञानप्रकाश की ज्योति,भरो जीवन मे उजियारा।नाम तेरो लै पार गए बहु,कोई फंसा न बीच धारा।नौका मम जग डगमग डोलै,आके दे दो सहारा।
तुम जग स्वामी अंतर्यामी,कष्ट हरो मम सारा।।
हे!प्रभु तेरो नाम अधारा।। (2) हंस सवारी पे बैठि के मैय्या कर मे पुस्तक ला,
मन मन्दिर मे मेरे मैय्या ज्ञान का दीप जला।।
दूर करो अज्ञान हृदयतम जीवन हो सुफला,
सुधा सिंधु अथाह जग जीवन हो विमला।
कर कल कंठ नवल रस स्वर नव कर बीणा माला।
स्वेत बस्त्र पद्मासन सोहे,कीजो भक्त भला।
रूप अनन्त अनादि शक्तियुक्त अर्क पुंज सुजला।
बिना ज्ञान के भटक रहा हूँ,दे दो ज्ञान कला।
अखिल ज्ञान सर्वेस्वर माता मस्तक तेज चला।
निर्मल स्वच्छ विवेक करो मम कलुषित कर्म जला।
तम तेरे बिनु जीवन जग कर ज्योति प्रकाश जला।।।
(3)
तेरी प्रकृति अनोखी,क्या रूप पा रही है।
देखे न कोई तुझको फिर भी लुभा रही है।
तेरी अनुपम छटा अनोखी कैसे बताउँ तुझको,
रवि रोशनी कमल औ चाँदनी कुमुद है।
तू है अदृश्य अगोचर अव्यक्त रूप धरी,
तू महाशक्ति जय अकिंच निर्विकारी।
तेरी प्रभु मैं विनती किस बिधि करूँ बिचारी।
हूँ दीन हीं दुर्बल मतिमंद बुद्धि धारी।
तेरे सहारे चलते पाषाण जीव सारे,
तेरी ही ज्योति बनके चमके व्योम तारे।
चम चम चमक रही है चम्पा सि बाग लगती,
देती सदा है खुशबू फूले कभी न फलती।
तेरे है रूप ब्रह्मा बिष्णु महेश भाया,
चक्कर मे सबको डाले तेरी ही योग माया।
हैं कर्म तेरे अद्भुत नग मे भी रूप धारे,
पल मे प्रकट सदा तुम कोई भक्त जब पुकारे।
हर जीव मे तुम्ही हो ,हर जीव तुमसे जाया,
जड़ चेतन तू करता पाषाण की भी काया।
सुन लो प्रभु हे! विनती न वक्त करके जाया,
दे दो प्रकाश भगवन तम पथ “प्रकाश”काया।।
(4)
अम्बे माँ,अम्बे माँ,अम्बे माँ । तेरी सिंह की सवारी, है सिंह की सवारी,है माँ मेरी माँ मेरी माँ।।
बना रूप आला,कर मे लिए हो भाला।
भृकुटी बनी कराला,ज्यों सैन्य रौंद डाला।
लेकिन भक्तों को लगती प्यारी,है सिंह की सवारी है सिंह की सवारी है माँ मेरी माँ मेरी माँ।।
छवि तेरी भोली भाली कर दूजे खंग धारवाली,
हो दैत्य हन्त काली सुर नर के पूज्यवाली।
महिमा तेरी है न्यारी,है सिंह की सवारी,है सिंह की सवारी,है माँ मेरी माँ मेरी माँ।।
कर शंख चक्र राजति है गदा कंज छाजति,
ध्याते हैं देव नरपति बसती हो मातु पर्वत।
लेकिन कन कन मे रूप धारी,है सिंह की सवारी,है सिंह की सवारी,है माँ मेरी माँ मेरी माँ।।
मेरी मातु जाय रन मे ,रिपु दल विदारे छन मे।
हो व्याप्त हर जगत मे,चलती धरा अम्बर मे ।
तेरी सिंह की सवारी,है सिंह की सवारी,है माँ मेरी माँ मेरी माँ।।
अवयव तुम्हारा चमके,रवि इंदु शक्र दमके,
हर ब्रह्म तुमसे जाया तुम आदि शक्ति माया।
तुम अर्क पुज भारी,है सिंह की सवारी,है सिंह की सवारी, है माँ मेरी माँ मेरी माँ।।
हो अकिंचन निर्विकारी ओ आदि शक्ति भारी,
मैं मातु हूँ दुःखारी आया शरण तिहारी।
दो “प्रकाश”दुःख निवारी,है सिंह की सवारी,है सिंह की सवारी,है माँ मेरी माँ मेरी माँ।।
(5)
मातु अनुसुइया का देखा चमत्कार हो,
पलनवा मा झूला झूलें।
तीन सुकुमार हो ,पलनवा मा झूला झूलें।।
आये थे लेने,परीक्षा सती की।
तीन देव धरे वेश योगी यति की।
है कोई दानी घरै,भरै पेटवा हमार हो।।
मातु अनुसुइया ने सुनी जब बानी।
द्वारे पे आई करी न आना कानी।
भोजन कराने हित, हो गयी तैयार हो।।
ब्रह्मा विष्णु शिव झट कुटिया मे पहुंचे।
शर्त को प्रत्यक्ष कर जरा नही सकुचे।
नग्न होके भोजन करो तुम तैयार हो।।
जान गयी जननी देवों की चतुराई।
पति के कमण्डल से जल ले आई।
जल से बनाय लिया,सुर सुकुमार हो।।
देख भोले तीनो देव मातु मुस्काती।
पलन डाल डाल डाल झूला झुलाती।
निरख मुख छटा को,करती दुलार हो।।
करत खोज देवी तीनो मात द्वार आयी।
करन लगी विनय सब मात यश गयी।
कहैं तीनों देवी मैय्या,दे दो भरतार हो।।
तीनो सुर बहुओं को आसन विठाया।
हाल तीनो देवो का माता ने सुनाया।
कहा ढूँढ़ो ढूँढ़ो ढूँढ़ो,जगत करतार हो।।
उठ तीनों देवियाँ पलन ढ़िग आई।
बाल बरन को देख करके सकुचाई।
व्याकुल हुईं है,तीनों देवियाँ अपार हो।।
गयी सब लिपट मातु अनुइया चरण मा।
माफ़ करो गलती मेरी भूल हुई भारी माँ।
सानी न कोई तेरी,महिमा अपार हो ।। “प्रकशबन्धु”