मुक्तक/दोहा

“फागुनी दोहा”

रंग भरी पिचकारियाँ, लिपटे अधर अबीर

गोरी गाए फागुनी, गलियाँ क़हत कबीर॥

फागुन आई हर्षिता, मद भरि गई समीर

नैना मतवाले हुए, छैला हुए अधीर॥

नाचे गाए लखि सखी, वन में ढ़ेल मयूर

लाली परसा की खिली, मीठी हुई खजूर॥

फगुनाई गाओं सखी, मीठे मदन नजीर

आज चली रसफागुनी, भरत रंग तस्वीर॥

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ