“मत्तगयंद छंद”वियोग रस प्रधान रचना
(9)प्रीत लगी जब साजन से तब नैंनन नींद सखी नहि भाए । चातक के सम राह तकूँ नित आवत रात मुझे तड़पाए । जाग कटे रतिया सगरी बिन साजन चैन जिया नहि पाए। आन मिलो सजना हमसे रजनी अब सेज सजा अकुलाए। डाॅ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”