कविता “कुंडलिया” *महातम मिश्र 23/02/2017 आओ चलें डगर बढ़ी, शीतल चाँद प्रकाश रजनी अपने पथ चली, शांत हुआ आकाश शांत हुआ आकाश, निरंतर शोर सुना के शीत ग्रीष्म आभास, सुहानी छटा सजा के गौतम अनुपम चाँद, देख शोभा सुख पाओ मंजिल पर है राह, सगे साथी मग आओ॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी