तेरा स्पर्श नही
उन हवाओं का क्या करूँ
जिनमे तेरा अर्श नही
उस बारिश का क्या करूं
जिसमे भीगने से
तेरा स्पर्श नही
क्या करूँ उस संगीत का
जिसके सुर में तेरा नाम नही
और जिसमे तेरा नाम नही
उसे सुनकर मुझे कोई हर्ष नही
कैसे कहूँ नही रहा जाता
बस कविताओं में याद कर कर के
मरा भी नही जाता
और जिया भी नही जाता
उम्मीदों में इंतज़ार कर कर के
बस बहुत हुआ अब लोट आ
न रह रह कर मुझको तरसा
जहर जुदाई का अब पिया नही जाता
बस इकतरफा प्यार कर कर के
बस लौट आ अब लौट आ
तेरे बिन हां तेरे बिन
मेरा अब कोई उत्कर्ष नही
क्या करूं, क्या करूं हाँ क्या करूं
#महेश