“त्रिपुरारी दूल्हा बने” (कुंडलिया छंद)
“त्रिपुरारी दूल्हा बने” (कुंडलिया छंद)
त्रिपुरारी दूल्हा बने,स्वागत नगरी आज।
आए हैं बारात ले, भस्मी तन पर साज।।
भस्मी तन पर साज, चले भोले मस्ताने।
नंदी देख सवार,भक्त लागे अकुलाने।।
कह “रजनी”ये बात,आज काशी भइ न्यारी।
खूब बढ़ायो मान, बसे नगरी त्रिपुरारी।।
डॉ. रजनी अग्रवाल”वाग्देवी रत्ना”