उपन्यास अंश

आजादी भाग –३५

  • अब कुछ कहने की बारी राहुल की थी ” हाँ ! तो सच ये है अंकल ! कि हमने चोरी नहीं की है । हम लोग तो उलटे आपके पास आनेवाले थे इन गाड़ी वालों की शिकायत करने के लिए …….”
    अभी राहुल ने बात पूरी भी नहीं की थी कि तभी सिपाही रामसहाय ने उसकी बात काटते हुए कहना शुरू किया ” अच्छा बच्चू ! तो अब उल्टा चोर कोतवाल को डांटे की निति पर तुम लोग चल रहे हो ! अब जबकि तुम लोग  रंगे हाथों चोरी करते हुए पकडे गए हो तो किसी पर कुछ भी इल्जाम लगाने की कोशिश कर रहे हो ? ”
    दरोगा दयाल बाबू को रामसहाय की दखलंदाजी नागवार गुजर रही थी लेकिन शराफत के मारे वह अपने मातहत को डपट भी नहीं पा रहे थे । फिर भी अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए रामसहाय से बोले ” तुम बीच में मत घुसो । मैं पुछ रहा हूँ न ? ”
    ” जी ! बेहतर है ! ” कहते हुए रामसहाय एक तरफ को हो गया ।
    दरोगा ने राहुल से आगे अपनी बात कहना शुरू रखने का इशारा किया ” हाँ ! तुम बताओ बेटे ! क्या बताना चाह रहे थे ? ”
    राहुल का आत्मविश्वास अब चरम पर था । दयाल बाबू की भलमनसाहत से वह अभिभूत था ।
    उसने आगे बताना शुरू किया ”  हाँ ! तो मैं ये बताना चाह रहा था कि हम सभी बच्चे न चोर हैं और न ही भिखारी । हम सब भले इज्जतदार घरों से हैं । इन गुंडों ने हमें पकड़ रखा है और हम लोगों को बेहोश करके इस टेम्पो में डाल कर कहीं दूसरी जगह ले जाया जा रहा था कि हम लोगों को होश आ गया । और मौका देखकर हम लोग टेम्पो से बाहर निकल रहे थे और तभी आप लोगों ने हमें देख लिया । ”
    रामसहाय से रहा नहीं गया । आखिर बोल ही पड़ा ” इन बच्चों का बिलकुल भी भरोसा नहीं करना साहब ! इस इलाके की सारी चोरियों के लिए यही लोग जिम्मेदार हैं । ये सब बहुत शातिर चोर मालूम पड़ रहे हैं । बस ! आप इन्हें थाने ले चलो । इनके खिलाफ कुछ न कुछ सुराग अवश्य मिल जायेगा । उसके बाद हमारी और आपकी तरक्की पक्की हो जाएगी । आखिर में आज यह इतना बड़ा केस हल हो ही जायेगा । बस इन्हें छोड़ना नहीं ! ”
    दयाल बाबू के होठों पर एक गहरी मुस्कान तैर गयी । मुस्कुराते हुए ही रामसहाय से बोला ” तुम कितने खुदगर्ज इंसान हो रामसहाय ! क्यूँ अपनी तरक्की की लालच में अंधे होकर इन मासूमों को फंसाना चाहते हो ? तुम जिस चोरी के इल्जाम में इन मासूमों को फंसाना चाहते हो क्या उस चोरी की किसी ने शिकायत भी की है ?  और तुम यह अच्छी तरह जानते हो कि बिना किसी शिकायत के हम किसी पर कोई मामला नहीं दर्ज कर सकते । ”
    लेकिन सिपाही रामसहाय भी कहाँ मानने वाला था ? बोल ही पड़ा ” तो इसमें कौन सी बड़ी बात है साहब ?  अभी शिकायत कर्ता मिल जायेगा । जायेगा कहाँ ? होगा यहीं ढाबे पर बैठा । अभी पता कर आता हूँ । ”
    कहते हुए रामसहाय ढाबे की तरफ बढ़ गया । दयाल बाबू ने राहुल, मनोज और बंटी को अपने पीछे आने का इशारा किया और खुद भी ढाबे की तरफ बढ़ गया । राहुल भी मनोज व बंटी के साथ दयाल बाबू के पीछे पीछे ढाबे की तरफ बढ़ गया ।
    ढाबे पर बैठे लोगों को चाय पीते व नाश्ता करते देखकर बच्चों की भूख बढ़ गयी । ढाबे के काउंटर पर करीने से सजे कई तरह के बिस्किट्स के पैकेट देखकर बच्चों के मुंह में पानी भर आया । दयाल ने बच्चों की  बेसब्री को महसूस कर लिया था । काउंटर पर   बैठे शख्स से बोला ” लालाजी ! इन बच्चों को देखो क्या चाहिए ? ये जो भी मांगें इन्हें दो और सबका हिसाब मेरे खाते में जोड़ देना । ठीक है ! ”
    दयाल की बातें सुनकर राहुल और मनोज की नज़रों में   जहाँ दयाल के लिए आदर के भाव तैर गए वहीँ बंटी तो जैसे ख़ुशी से उछल ही पड़ा । तुरंत ही मचलते हुए उसने दयाल से फरमाइश भी कर डाली ” अंकल ! वो जो कोकोनट है न वो बिस्किट मेरा फेवरिट है । पापा रोज मुझे खिलाते थे । ” जबकि राहुल और मनोज चुपचाप जाकर एक मेज के गिर्द पड़ी बेंच पर बैठ गए थे । दयाल के इशारे पर तुरंत ही कोकोनट बिस्किट के तीन पैकेट बच्चों के सामने पहुँच गए थे । बंटी तो तुरंत ही बिस्किट पर टूट पड़ा लेकिन मनोज और राहुल की नजरें सामने ही तले जा रहे समोसों को ललचाई निगाहों से परख रही थीं । उनके निगाहों का पीछा करते हुए दयाल की अनुभवी नज़रों ने बच्चों के भूख को ताड लिया था । उनके इशारे भर की देर थी कि प्लेटों में भरकर समोसे और पकौड़ियाँ बच्चों के सामने मेज पर पहुँच गयी । मनोज और राहुल ने मन ही मन इश्वर का धन्यवाद अदा किया और पेट पूजा में जुट गए । कहने की जरुरत नहीं कि तीनों ही सामने पड़े प्लेट में रखी वस्तुओं पर टूट पड़े थे । और नतीजा तो वही होना था । कुछ ही देर में उनके सामने के प्लेट खाली हो चुके थे  । दरोगा के और पूछने पर तीनों के मुंह से कोई बोल नहीं निकला था अलबत्ता एक दुसरे का मुंह देखते ही रहे । उनकी भूख दरोगा दयाल से छिपी न रह सकी थी और उनहोंने बच्चों को और खिलाने के लिए काउंटर पर इशारा कर दिया था ।
    चाय की चुस्की लेते हुए दरोगा दयाल बच्चों की हर गतिविधि पर ध्यान दे रहे थे । उनकी हर भाव भंगिमा का बारीकी से विश्लेषण कर रहे थे । बच्चे अपना काम करने में मशगुल थे और दयाल अपने काम को बखूबी अंजाम दे रहे थे । नाश्ता ख़त्म करते करते दयाल ने बच्चों की हर हरकत पर नजर रखते हुए बच्चों के बारे में पुख्ता राय कायम कर ली थी कि बच्चे सच्चे थे और सही बोल रहे थे । बंटी की बातों ने दयाल को खासा प्रभावित किया था और दयाल को यह मानने पर मजबूर कर दिया था कि बच्चे वाकई संभ्रांत घरों से ताल्लुक रखने वाले हैं और किसी तरह से अपराधियों के चंगुल में फंस गए थे ।
    तभी दयाल के दिमाग में बिजली सी कौंधी ‘ यदि ये बच्चे वाकई किसी अपराधी गिरोह के चंगुल में फंसे हुए थे तो वो टेम्पो जरुर अपराधियों से सम्बन्ध रखता होगा । उसके चालक से पूछताछ करने से ही खुलासा हो जायेगा कि उस टेम्पो में क्या लदा था और अगर ये बच्चे सही कह रहे हैं तो वह इन बच्चों को इस तरह बेहोश करके टेम्पो में लादकर कहाँ ले जा रहा था ?’
    यह ख्याल आते ही दयाल ने चाय की चुस्की ले रहे रामसहाय को आदेश दिया ” रामसहाय जी ! अरे देखो ! वो जिस गाड़ी से ये बच्चे कुछ चुरा रहे थे उसके चालक वगैरह कहाँ हैं ? आखिर उनका बयान भी तो लेना होगा । ” दयाल ने जानबूझ कर रामसहाय से अपने मन की बात छिपा ली थी ।
    रामसहाय जल्दी से चाय की चुस्कियां लेकर चाय ख़त्म करते ही बोल पड़ा ” जी साहब जी ! ” और हाथ में पकड़ा डंडा फटकारते हुए कमाल और मुनीर द्वारा लाये गए टेम्पो की तरफ बढ़ गया ।

 

क्रमशः

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।