उसकी कहानी भाग – ५
अबकी बार वो आया मेरा बड़ा भाई बनकर । मुझे याद आया कि मैं अपने बड़े भाई साहब जो की एक हृदय रोग विशेषज्ञ हैं को अपनी हालात बताना ही भूल गया । मैने उन्हें फ़ोन किया । उन्हें विस्तार से सब बताया । उन्होंने बड़े ध्यान से सब सुना । सुनकर कहा मैं तेरे पास आ रहा हूँ कल तक । उन्होंने मुझसे कुछ प्रश्न पूछे तू कौन कौन सी दवाईयां खा रहा है ? कब से खा रहा है ? क्या तेरा सीटी स्कैन हुआ ? तूने खून और लिया की नहीं ? मैने कहा कि मैं दर्द के लिए पिछले ७ साल से गाबापेंटीन नाम कि दवा खा रहा हूँ । उन्होंने कहा की सबसे पहले अभी तू अस्पताल जाके एक यूनिट खून और चढ़ा ले । इसके बाद उन्होंने कहा की मेरा एक कैंसर विशेषज्ञ मित्र है मैं उससे भी बात करूंगा । उन्होंने कहा कि तू अपने कैंसर वाले डॉक्टर से कल का अपॉइंटमेंट ले के रख ले हम दोनों इकठ्ठे उसके पास चलेंगे । लगभग ६ घंटों बाद उनका मुझे फ़ोन आया कि मेरे कैंसर विशेषज्ञ मित्र से मेरी बात हो गयी है, मैंने गूगल में भी सर्च किया है । तू दूसरा काम यह कर की गाबापेंटीन खाना बंद कर दे , दर्द के लिए आईब्रु प्रोफेन खा ले । मैंने ऐसा ही किया ।
इधर
दूसरे दिन वह मेरे पास पहुंचे । उन्होंने गूगल सर्च वाला पेज मुझे पकड़ा दिया । उसमें “गाबापेंटीन के साइड एफ्फेक्ट्स” में अन्य एफ्फेक्ट्स के अतिरिक्त लिखा था कि कभी कभी लंबे समय तक इसके सेवन से आंतरिक खून स्त्राव होने लगता है । उन्होंने कहा कि मेरे रोगियों को भी कभी कभी किसी दवा के लंबे समय तक खाने से रक्त स्त्राव हो जाता है तो मैं उनकी दवा बदल देता हूँ। तूने अच्छा किया कि गाबापेंटीन बंद कर दी । वह मुझे लेकर डॉक्टर के पास गए । रास्ते में हम बात करते जा रहे थे । मेरे भाई साहब ने कहा कि तेरी कोई अंतिम इच्छा हो तो बता दे । मैंने कहा कि मैं अपनी मृत्यू के बाद कोई आडम्बर नहीं चाहता । बस मेरे अंतिम संस्कार में मेरे परिवार की मदद कर देना । मेरे बाद मैं कोई पूजा नहीं चाहता । जिस समय मेरी आत्मा उस लोक में जा रही होगी उस समय मुझे दिल से चाहने वाले सिर्फ मेरे लिए प्रार्थना करें कि आत्मा सही राह पर जा सके । लेखक पद्म संभव की पुस्तक “तिब्बतियन बुक ऑफ़ डेड” में बताया गया है कि जब आत्मा शरीर छोड़ती है उस समय आत्मा के लिए प्रार्थना बहुत उपयोगी होती है । आत्मा को बहुत कुछ भ्र्म होता है । प्रार्थना इस बात की होनी चाहिए कि आत्मा का भ्र्म दूर हो उसे सच्ची राह दिखाई पड़े । इससे मुक्ति कि संभावना अधिक हो जाती है ।
उधर
मेरी श्रीमती जी को यहाँ कि घटनाओं कि कोई खबर नहीं थी । मेरी श्रीमती जी मौन मौन और ध्यान कर रही थी । अचानक उसे बहुत अधिक बेचैनी होने लगी । उसने अपने गुरु, मिशन के संस्थापक बाबूजी महाराज से प्रार्थना की, कि ” बाबूजी मेरे पति आद्यात्मिक मार्ग पर मेरी पूरी पूरी सहायता करते हैं उनको मैं आपकी शरण में छोड़ कर आई हूँ उनकी देखभाल अब आपकी जिम्मेवारी है ” । इससे उसे शांति मिली । सुबह जब वो सो कर उठी किसी मनुष्य कि छाया ने उससे कहा “मैंने अपना काम कर दिया है अब मैं जा रहा हूँ “।
इधर
डॉक्टर ने मेरे भाई से कहा कि मुझे अफ़सोस है अब कुछ नहीं हो सकता । मेरे भाई ने डॉक्टर से कहा कि इसे इम्यून ( रोग से लड़ने कि क्षमता ) के लिए इंजेक्शन लगा दीजिए । भाई ने डॉक्टर से कहा कि जब तक आप इंजेक्शन का आर्डर करेंगे तब तक इसका ब्लड प्लेटलेट काउंट कर दीजिये । डॉक्टर ने मेरा ब्लड, प्लेटलेट काउंट के लिए भेज दिया । हम बैठे आद्यात्मिक चर्चा करने लगे । गुरमैल भाई जी कि तरह (उसने मेरे भाई साहब के मुहँ से कहलवाया) मेरे भाई साहब कहने लगे मैं इतना धार्मिक तो नहीं , पर तेरे साथ हुई घटनाएं बड़ा चमत्कार हैं ।
उनके इतना कहते ही चमत्कार हो गया । मेरी ब्लड प्लेटलेट्स कि रिपोर्ट आ गयी थी । मेरा प्लेटलेट काउंट ११० आया था याने कोई रक्त स्त्राव नहीं । मेरा डॉक्टर भी हैरान था अभी तो इंजेक्शन आया नहीं था । उसने कहा कि अब इंजेक्शन कि जरूरत नहीं आप घर जा सकते हैं । मेरे भाई ने डॉक्टर को “गाबापेंटीन के साइड इफेक्ट्स” वाला पन्ना पकड़ा दिया ।
हम ख़ुशी ख़ुशी घर पहुंचे । कहाँ तो मौत और कहाँ नई जिंदगी ।
फिर मान बैठा था की मेरा अंतिम समय आ पहुंचा है । मैं तो कहता था की जैसी मालिक की मर्जी फिर यह क्या ?
मैंने पूरी घटनाओं का मनन किया । मैंने “उससे” कहा कहीं तुममें भी कोई कमी है मुझे ठीक क्यों नहीं बताते की कहाँ हो कौन हो इसलिए विश्वास पूरी तरह नहीं होता की आप ही हो । मेने अपनी गलतियों के लिए उससे क्षमा माँगी । मैंने “उससे” एक गुजारिश की ” अबकी बार साफ़ साफ़ सामने आना ” । वह तो हर जगह विद्यमान है सब सुनता है मुझे लगा वो मुस्कराया ।
मैं सदैव सोचता की उसने मुझ पर कितना उपकार किया । मैं उसे कौन सी गुरु दक्षिणा दूं । मन में ख़याल आया क्यों ना उसने मेरे साथ जो किया सब को बताऊँ । पर बताऊँ कैसे । उस पर छोड़ दिया जैसी मालिक की मर्जी ।