उसकी कहानी (अंतिम) भाग – ६
अबकी बार वो आया मेरी बहन बनकर ।
मैंने उससे प्रार्थना की थी मुझे गुरु दक्षिणा देनी है रास्ता मुझे नहीं पता था ।अब उसने अपनी लीला मुझे दिखानी शुरू की । मुझे संदेह की गुंजाइश ना रहे इसलिए उसने अपना जो रूप चुना उसका नाम था लीला । सारा इंतजाम उसी ने किया । बीच बीच में नवभारत टाइम्स पढता । उसमें अपने कमेंट देता । एक सुप्रसिद्ध लेखिका लीला जी ने नवभारत में मेरे कमैंट्स देखे । मुझे ईमेल किया ।
प्रिय रविंद्र भाई जी,
नमस्कार,
भाई, आज आपके दो कामेंट्स आए, दोनों ही गज़ब ढा गए और हमें यह पत्र लिखने की प्रेरणा मिली । भाई, हमने अपने ब्लॉग्स में और नभाटा में कई जगह आपके कामेंट्स देखे हैं. इनसे हमें पता चला-
1.आप जिज्ञासु प्रवृत्ति के हैं.
2.आप में ज्ञान को सही जगह पर उद्धरित करने का हुनर है.
3.आप बहुत अच्छा लिख सकते हैं.
4.आप ज्ञान को बराबर वर्द्धित करने और बांटने में विश्वास रखते हैं.
5.आपके विचार परिपक्व हैं.
6.आपके पास नए आइडियाज़ हैं.
भाई, अगर आप ब्लॉग लिखना शुरु करेंगे, तो बहुत कामयाब होंगे, ऐसा हमारा विश्वास है । अगर आपको पहले एक बानगी देखनी हो, तो आप हमें एक छोटा-बड़ा ब्लॉग, कविता, कहानी, लेख लिख भेजिए । हम अपने ब्लॉग में उसको स्थान देंगे, फिर आपका जैसे मन करे. जल्दी नहीं है, आराम से सोच-समझकर निर्णय लीजिए । 25 जनवरी से कुछ दिन के लिए हम ब्लॉग पर कम आ पाएंगे । सवा साल बाद ऑस्ट्रेलिया से दिल्ली जाना है, घर भे सेट करना होगा ।
हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं ।
लीला तिवानी
सिलसिला शुरू हो गया । मैंने लिखना शुरू किया । एक दो तीन चार लेख लिखे । पसंद किये गए । हौसला बड़ा । उसकी लीला अपरम्पार है । उसकी कहानी लिखनी शुरू की, पूरी लिख दी अब तक की कहानी । गुरु दक्षिणा उसे भेंट है । दिल पर जैसे एक बोझ था उत्तर गया । मेरी बहन के रूप उसकी लीला मैं जान गया हूँ ।
अब “वो” मेरे साथ ही मेरे घर में रहता है । खाना खाने के पहले उसे खिलाता हूँ । बीच बीच में उसकी राय ले लेता हूँ । मुझे उसे कुछ कहने की जरूरत नहीं पड़ती वह खुद ही मेरी मुश्किलें आसान कर देता है । पहले मैं उसे आप कह कर बुलाता था । एक दूरी सी लगती थी । एक दिन पड़ोसी के घर से रेडियो पर मेहदी हसन की ग़ज़ल सुनाई पडी ” रफ्ता रफ्ता वो मेरी हस्ती का सामां हो गए पहले जाँ फिर जाने जाँ फिर जाने जाना हो गए । आप तो नज़दीक से नज़दीकतर आते गए पहले दिल फिर दिलरुबा फिर दिल के मेहमाँ हो गए । प्यार जब हद से बड़ा सारे तकल्लुफ़ मिट गए आप से फिर तुम हुए फिर तू का उम्दा हो गए । उस दिन से उसे तू कह कर बुलाता हूँ ।
मेरे साथ ही वो सोता है सुबह मेरे साथ ही उठता है । उसे प्रणाम करके दिनचर्या शुरू करता हूँ । मुझ पर उसे बहुत मेहनत करनी पडी । अब उसी की मर्जी चलेगी । कई बार देखता हूँ वो चिड़ियों के बीच जाकर चूं चूं करता है कभी हवा के झोंकों के साथ फूलों में झूमता है कभी हाथ फैलाकर मेरी नातिन के अंदर से मुझे उठाने को कहता है कभी मेरी नातिन के अंदर से अपनी बाहें मेरे गले में डाल देता है । अब मैं और धोखा नहीं खाने वाला अब मैं उसे पहचान गया हूँ ।
मेरे द्वारा लिखी उसकी कहानी तो समाप्त हो गई पर मेरे ऊपर वह कितने उपकार और कब तक करेगा कह नहीं सकता उसी की मर्जी चलेगी । उसकी कहानी इस जगत की उत्पत्ती के पहले से शुरू है और यह जगत अंत हो जाएगा फिर भी उसकी कहानी चलती रहेगी हमारे जैसे आते जाते रहेंगे पर वो बना ही रहेगा । उसकी कहानी चलती रहेगी युगों युगों तक ।