कहानी – अंततः
मृणाल जल्दी- जल्दी काम निबटा रही थी। बेटी के खराब स्वास्थ्य को देखकर उसका मन बहुत अशांत था। अवनि की छुट्टियाँ समाप्त हो रही थीं चार दिन बाद उसे वापस पुणे लौटना था। वहाँ चली जाएगी तो कौन उसका ध्यान रखेगा। इस वक़्त शहर में डेंगू का प्रकोप था और पूरी सावधानी के बावजूद भी अवनि उसकी चपेट में आ गई थी। कभी उसे काढ़ा बनाकर देती , कभी जूस तो कभी कोई और पथ्य। फिर ये चीजें खिलाने का जिम्मा भी मृणाल का ही था। पापा की बिगाड़ी , बचपन की नखरीली अवनि ,बहुत मान मनौव्वल के बाद ही कुछ खाने को तैयार होती। पुणे जाते ही उसे अपने एम बी ए की पढ़ाई में जुट जाना होगा। द्वितीय सत्र समाप्त होने वाला था। पढ़ाई का तनाव था, ऐसे में ये बीमारी ! वहाँ कौन उसकी फ़िक्र करेगा ? कौन उसे पथ्य देगा ?
हे भगवान, मेरी बच्ची को जल्दी अच्छा कर दे, वरना उसके रिज़ल्ट पर बहुत फर्क पड़ जाएगा। उसकी सारी मेहनत बेकार हो जाएगी। बदले में मुझे बीमार कर दे। मृणाल सोच रही थी। इधर कई दिनों से उसका खुद का स्वास्थ्य भी अच्छी हालत में नही था। भूख खत्म हो चुकी थी, ज़रा सा कुछ खाते ही पेट में दर्द महसूस होने लगता था। कमजोरी इतनी लगने लगी थी कि ज़रा सा काम करते ही लेट जाने का मन करता। कई दिनों से सोच रही थी कि डॉक्टर के पास जाए, पर गृहस्थी की चक्की में बंधी वह अपने लिए समय नही निकाल पा रही थी।
अरुण को तो जैसे घर से कोई मतलब ही नही था। सुघड़ गृहणी के जिम्मे गृहस्थी की जिम्मेदारी सौंपकर वे बिलकुल निश्चिन्त थे। मृणाल ने घर कुछ इस तरह सम्हाला था कि उन्हें किसी बात की फ़िक्र नही थी। अरुण की एकाउंटेंसी की फर्म अच्छी खासी चलती थी। हर वक़्त उसमे व्यस्त, उससे जो समय बचता वो क्रिकेट मैच के हवाले कर देते। बच्चे क्या कर रहे हैं, घर में क्या है क्या नही, कौन आया कौन गया, राशन, बिजली का बिल, मैडिकल, बैंक हर जिम्मेदारी मृणाल के सर।
कभी कभी मृणाल खीज जाती पर कहे किससे? कोई हो भी तो सुनने वाला। धीर गम्भीर पति से कुछ कहना आसान नही था। वैसे तो शांत ही रहते ,पर जब उन्हें क्रोध आता तो रौद्र रूप धारण कर लेता। उनसे कभी मन की बात वह नही कह सकी।बल्कि थोड़ा डरती ही थी। सुन्दर, विदुषी, मीठे स्वर की स्वामिनी मृणाल को जीवन में एक अभाव हमेशा खलता था। पति में कोई ऐसी बुरी आदत नही थी जिससे उसे शिकायत होती। पर उनका रुखा सूखा नीरस स्वभाव उसे असंख्य बार रुला चुका था। बच्चे अब बड़े हो चुके थे तो जीवन में और भी खालीपन आ चुका था। बेटा अमन मुम्बई में फैशन डिजाइनिंगका काम करता था।
आजकल मृणाल का तन और मन हमेशा थका सा रहने लगा था। जीवन से अरुचि हो गई थी। शरीर इतना निढाल रहने लगा था कि बिस्तर से उठने का मन नही करता पर बहुत ही साहस संजोकर, मन को समेटकर वह उठती और गृहकार्य निबटाती। आजकल तो खाना बनाना भी भारी लगने लगा था। पर अगर कुछ न बनाओ तो अरुण भूखे ही रहते थे, बाहर खाना उन्हें ज़रा भी पसन्द नही था, और बना हुआ भी सिर्फ मृणाल के हाथ का चाहिए होता था। कोई और बनाता तो एक दो कौर खाकर ही उठ जाते। झख मारकर उसे उठना होता था। फिर जबसे बेटी आयी हुई थी तो उसके मनपसन्द पकवान भी खिलाने थे। ले जाने के लिए भी कितना कुछ बनाना था, लड्डू, मठरी, गाजर का हलवा।
अवनि को गाजर चुकन्दर का जूस देना था, जिसे पीने के लिए वह ढेर सारे नखरे करने वाली थी। आज तो मृणाल को खड़े रहना भी मुश्किल लग रहा था। कदमो को घसीटते हुए वह पुत्री के कक्ष की ओर चल दी। दरवाजे तक ही पहुँची थी कि कक्ष गोल गोल घूमता नज़र आने लगा। खुद को सम्हालना मुश्किल लगने लगा। गिलास हाथ से छूटा और जूस बिखर गया। उसका सर दरवाजे से टकराया। आवाज़ सुनकर अवनि दौड़कर आयी और माँ को सम्हाला
” माँ क्या हो गया आपको ? पापा . . . पापा ” वह तेजी से चीखी।
” क्या हुआ ?” अरुण ने आकर पूछा।
” देखिये न माँ को कितना तेज बुख़ार है, यहाँ आयीं तो चक्कर आ गया इन्हें “
” ओह, बहुत ही लापरवाह है तेरी माँ, ऐसा कर तू क्रोसिन दे दे अवनि, बुख़ार उतर जाएगा ” उन्होंने अभी भी बात को गम्भीरता से नही लिया।
” आप कितनी गैर जिम्मेदारी की बात कर रहे हैं पापा , माँ को डॉक्टर की ज़रूरत है ” अवनि पिता के रवैये से हतप्रभ रह गई।
” अरे तेरी माँ को कुछ नही होगा, देखना अभी थोड़ी देर में तेरे लिए जूस बनाती नज़र आएगी “
” आप भी क़माल कर रहे हैं पापा , चेहरा देखा है आपने माँ का, कैसा पीला पड़ा हुआ है, गाड़ी निकालिये और डॉक्टर के पास चलिये ” जवाब में मृणाल ने कुछ कहना चाहा।
” आप तो चुप ही रहिये माँ , क्या हालत कर ली है आपने अपनी ” उसने झिड़की दी।
” ठीक है मैं डॉक्टर के पास लेकर जाता हूँ, तू अपने जाने की तैयारी कर “
” आपने सोच भी कैसे लिया पापा कि मैं माँ को इस हालत में छोड़कर जाऊँगी “
” पर बेटा ,तेरा रिज़ल्ट ख़राब हो सकता है, माँ को तो ज़रा सा बुखार है, ठीक हो जाएगी “
” दिक्कत यही है कि मैं आपके जैसी पत्थरदिल नही बन सकती, जब तक मेरी माँ ठीक नही हो जाती मैं कुछ और सोच भी नही सकती “
आखिर अरुण को गाड़ी निकालकर डॉक्टर के पास ले जाना ही पड़ा। मृणाल तब तक अर्ध बेहोशी की हालत में ही थी ।
अस्पताल में पहुँचे तो मुआयने के समय डॉक्टर के चेहरे पर गम्भीरता के चिन्ह दिख रहे थे। परेशानी भरे स्वर में डॉक्टर ने पूछा
” इनकी कबसे ये हालत है ?”
” ये हालत ! मतलब ? क्या हुआ है ?”
” देखिये अभी तो मैं कुछ भी कहने की स्थिति में नही हूँ। कुछ टैस्ट लिखे हैं पहले ये करवाने होंगे, तभी कुछ कहा जा सकता है । वैसे इन्हें फ़ीवर कबसे है ? “
” आज ही हुआ है ” अरुण ने अनिश्चय की स्थिति में कहा।
” ये सम्भव नही है, एक दिन के फ़ीवर में ये हालत नही हो सकती। इससे पहले से रहा होगा “
” वैसे अब कुछ थकी सी तो दिखती है “
” कुछ नहीं, इन्होंने अपने शरीर के साथ खूब अत्याचार किया है। हैरानी की बात कि आपको ख़बर ही नही है “
” मैं कुछ समझा नही डॉक्टर “
” ये बहुत क्रिटिकल कंडीशन में हैं, इन्हें एडमिट करना होगा “
” एडमिट ?” अरुण के आश्चर्य का ठिकाना न रहा।
” जी “
सुनकर वह सकते में आ गए, तुरन्त एडमिट करवाया गया। मृणाल बेहोशी की हालत में ही थी। उन्होंने पानी पिलाना चाहा तो देखकर सिहर उठे, उसके गाल भी चिपके हुए थे। मुँह में ऊँगली डालकर स्थान बनाया और पानी डाला पर जल की बूँदें अंदर न जा सकीं और बाहर निकल पड़ी। अब पहली बार उन्होंने ध्यान से पत्नी के चेहरे को देखा। एकदम निस्तेज पीला चेहरा, आँखों के नीचे काले घेरे, क्षीण शरीर, जैसे किसी ने सारी शक्ति निचोड़ ली हो। ये क्या हो गया मृणाल को ! पहली बार उन्हें अहसास हुआ कि स्थिति कितनी विकट है।
रिपोर्ट आने के बाद डॉक्टर ने बताया कि उसे पीलिया, टाइफाइड और भी न जाने क्या क्या कॉम्प्लीकेशंस हो गई हैं। बहुत दिनों से उपेक्षा के कारण ये सभी रोग गम्भीर रूप धारण कर चुके हैं।
” आज की रात बहुत भारी है इन पर, दुआ कीजिये कि सही सलामत निकल जाए ” डॉक्टर का गम्भीर स्वर गूंजा।
अरुण को लगा जैसे उनके पैरों तले जमीन निकल गई हो।
” नहीं, ऐसा मत कहिये डॉक्टर, मृणाल को कुछ नहीं हो सकता, उसे कैसे कुछ हो सकता है ?”
” आप अच्छे खासे पढ़े लिखे हैं पांडे जी, फिर भी इनकी बीमारी को इस हद तक नेगलेक्ट किया आपने ?”
” मुझे पता ही नहीं चला कि कब हो गया ये सब ” वे अपना सर पकड़कर बैठ गए।
” पापा आप बहुत खुदगर्ज़ हैं, आपने माँ की कभी देखभाल नही की। और मैंने भी अपनी उलझन में ध्यान ही नही दिया की माँ ठीक नहीं। ” अवनि का स्वर अवरुद्ध हो गया।
” हम सब बहुत बुरे हैं, किसी को उनकी परवाह नही। बेचारी हर वक़्त काम में लगी रहती हैं, किसी ने कभी उनके लिए कुछ नही सोचा। “
” उसने कभी कुछ कहा ही नहीं। मुझे कैसे पता लगता ?”
” आप तो कुछ कहिये ही मत, जब मैंने आपसे उन्हें डॉक्टर के पास ले चलने को कहा था आपने तब भी टालने की कोशिश की थी,ये कहकर की क्रोसिन दे दो बुख़ार उतर जाएगा।” वह बिफ़र पड़ी। ” अगर माँ को कुछ हुआ तो मैं आपको कभी माफ नही करूँगी ” वह फूट फूटकर रो पड़ी। ग्लानि से अरुण का भी चेहरा स्याह पड़ गया था।
माँ के सर पर हाथ फेरते हुए अवनि के आँसू थमने का नाम नही ले रहे थे। उसे माँ के साथ गुज़ारे लम्हे याद आ रहे थे। कैसे उनलोगों की छोटी छोटी इच्छाओं को पूरा करने के लिए माँ दिन रात लगी रहती थी। विश्वविद्यालय में संगीत की व्याख्याता मृणाल ने नौकरी सिर्फ इसलिए छोड़ दी थी कि अरुण को उसका नौकरी करना पसंद नही था। उनका कहना था कि जब वो भरपूर कमा लेते हैं तो उसे धक्के खाने की क्या ज़रूरत। संगीत मृणाल की आत्मा में रचा बसा था । जब गाने बैठती थी तो लोग मंत्रमुग्ध होकर सुनते रह जाते थे। वह कई बार आकाशवाणी पर भी अपने गाने का कार्यक्रम दे चुकी थी। पर ससुराल में ऐतराज़ किया गया तो उसने घर की ख़ुशी के लिए वह भी त्याग दिया।
महिलाओं में बैठकर बेमतलब की गप्पो में उसका मन कभी नहीं रमा, इसलिए कोई न कोई काम निकालकर वह बैठ जाती। बच्चों को भी अच्छी शिक्षा और संस्कार देने में उसने कोई कोताही नही बरती। हर जगह वह प्रशंसा की पात्र थी। सारी कॉलोनी में यही कहा जाता था कि पांडे जी की बहू जैसा कोई नही हो सकता। इतनी पढ़ी लिखी और योग्य है पर मजाल है कि कभी किसी को इस बात का ज़रा भी अहसास करवाए। बोलती है तो जैसे फूल झरते हैं। यह सब सुनकर बच्चो और अरुण का सर गर्व से तन जाता।
ऐसा नही कि अरुण को उससे प्रेम न हो पर हर कदम पर साथ साथ कदमताल करती हुई पत्नी को भी कोई ज़रूरत हो सकती है ये उन्होंने सोचा ही न था। उन्होने कल्पना भी न की थी कि उसे भी कभी कुछ हो सकता है। लगता था जैसे वह यूँ ही चिरयुवा रहकर हमेशा सबकी आवश्यकताओ का ध्यान रखती रहेगी।
जब चाहे किसी को भी खाने पर निमंत्रित कर लिया, फिर घर में सामान है या नही इसकी फ़िक्र में वह हलकान होती रहे। दिन भर अपना काम करके जब घर आते तो उम्मीद करते कि वह उनकी सेवा में लग जाए। देर रात तक क्रिकेट मैच देखते तो कई बार उन्हें कॉफी और स्नैक्स की ज़रूरत पड़ती तो उससे फरमाइश करते और वह बिना शिकन लाए उठ जाती।
याद आया कि एक दिन उसे तेज बुखार था और उसने खाना नही बनाया था। बाहर कुछ खा आने को बोला तो दूध पीकर सोने चल दिए। हारकर वह गिरते पड़ते उठी और जल्दी से उनके लिए खाना बनाया। एक बार किसी सम्बन्धी के देहाँत होने के कारण उसे चार पाँच दिन को बाहर जाना पड़ गया। जाने से पहले वह खाना बनाने वाली का इंतज़ाम कर गई थी। पर लौटी तो देखा उन्होंने सिर्फ जैसे बनाने वाली पर अहसान करते हुए मुँह झूठा ही किया था। उसके आने के बाद बोले कि तुम कहीं मत जाया करो, सारा घर अस्त व्यस्त हो जाता है। लोग उसे बुला बुलाकर थक जाते पर उसके पास एक दिन का भी अवकाश नही था।
आज ये सब बातें याद करके उन्हें बहुत ग्लानि हो रही थी। स्वयं पर शर्म आ रही थी। एक सेविका भी अवकाश लेती थी, परन्तु पत्नी नामधारी प्राणी के लिए साँस रहते अवकाश की कोई व्यवस्था नही थी। वह कैसे इतने निष्ठुर हो सकते हैं।
” मुझे आपसे शिकायत है, आपने कभी मुझे कुछ नही दिलाया ” शुरू में कई बार उसने शिकायत की थी।
” तुम भी हद करती हो मृणाल, जो चाहे खरीदो, मैंने कभी रोका है तुम्हे ” वह बिफ़र पड़े थे ” अरे घर की मालकिन हो तुम “
” मालकिन हूँ या बंधुआ मजदूर ? जिसके सिर्फ कर्त्तव्य हैं, अधिकार कुछ नहीं। मेरा भी मन करता है कि कभी बिना माँगे मेरे लिए कोई कुछ करे। कभी आप मुझे कोई सरप्राइज़ दें “
” यार ये बेकार के चोंचले मुझे नही आते, क्या अधिकार नही है तुम्हे ? जो चाहे करो, जहाँ चाहे जाओ। मैंने कभी रोका है तुम्हे ?”
” रोकेंगे तो वो सारी ड्यूटी कैसे बजाऊँगी जो करती हूँ “
” देखो कमाना मेरा काम है, जिसे अच्छे से कर रहा हूँ मैं, तुमसे तो नही कहता ,कि कमाकर लाओ। अब घर का मोर्चा तो तुम्हे ही सम्हालना पड़ेगा “
” मैं कब घर की जिम्मेदारियों से पीछे भागी हूँ, पर मेरा भी तो मन करता है कि कोई मेरी फ़िक्र करे, मेरे लिए कुछ करे, मुझे कुछ खास अहसास करवाए “
” अगर तुम चाहती हो कि मैं मजनू बनकर दिन रात तुम्हारे पीछे चक्कर लगाऊँ तो ये मेरे वश की बात नही। बी मेच्योर मृणाल, ये टीन एजर जैसी हरक़तें अब शोभा नही देतीं “
” आप कभी मेरे मन को नही समझेंगे ” वह नाराज़ होकर चली गई थी।
अपने असंवेदनशील व्यवहार को याद करके वह बेचैनी से सारी रात चहलकदमी करते रहे। काश की उन्होंने उसके मन को समझा होता। काश कभी उसकी इच्छा अनिच्छा को समझा होता, तो आज ये हालात न होते। बरसों से उसने कोई शिकायत करना छोड़ दिया था। फायदा भी क्या था। शिकायत वहाँ की जाए जहाँ कोई फरियाद सुनने बैठा हो। जहाँ कोई ध्यान ही न दे वहाँ व्यर्थ ही सर फोड़ने से क्या फायदा। बच्चे अपनी माँ को बहुत चाहते थे। उनके लिए वह दुनिया की सबसे अच्छी माँ थी।
वह पत्नी के बिना घर की कल्पना करने लगे। अगर मृणाल न रही तो क्या करेंगे वह। एक एक छोटी से छोटी बात पर तो आश्रित थे वह उसपर। उन्हें बड़ा गुमान था खुदपर, की बहुत अच्छा कमाते हैं वह, परिवार की प्रत्येक आवश्यकता को पूरी करने में सक्षम। अक्सर न चाहते हुए भी ये ख्याल आ जाता था कि वह आश्रित है उनकी, इसलिए उसे उनके मिजाज़ के अनुसार कार्य करना चाहिए। पर जब उसके बिना जीवन की कल्पना की तो सिहर उठे। सच्चाई ये थी कि वे स्वयं आश्रित थे उसपर एक अक्षम शिशु की तरह। उनका एक क्षण भी गुज़ारा न था उसके बिना।
तभी उसकी हालत बिगड़ने लगी, अस्पताल में हलचल मच गई। नर्स ने जल्दी से डॉक्टर को बुलाया और एक अफरा तफरी का माहौल बन गया।
” शी इज़ सिंकिंग, आपलोग बाहर जाइये ” मुआयने के बाद डॉक्टर ने कहा। सभी कमरे से बाहर निकल आये।
अवनि के चेहरे पर तनाव के भाव थे। फ्लाइट पकड़कर बेटा भी आ चुका था। बच्चों से नज़र चुराते हुए अरुण डबडबाई ऑंखें लिए बैठे थे। उन्हें भली प्रकार अहसास था कि अगर मृणाल को कुछ हुआ तो दोनों बच्चों की दृष्टि में वह अपराधी साबित हो जाएंगे। वह हमेशा के लिए उनकी नज़र से गिर जाएंगे। इससे भी बढ़कर प्रश्न ये कि वे स्वयं कैसे जियेंगे। एक एक पल भारी गुज़र रहा था। उन्हें दम घुटता सा महसूस हो रहा था। उसके न रहने पर कौन उनकी परवाह करेगा । छी, अब भी वह अपने लिए ही सोच रहे हैं। अपनी सोच पर वह लज्जित हो उठे। सदा का नास्तिक मन बारम्बार प्रभु से प्रार्थना कर उठा।
” हे ईश्वर, मेरी मृणाल को जीवन दे दे, मेरे अपराधों का दंड मुझे दे, उस बेचारी ने किसी का क्या बिगाड़ा है। मैंने बहुत अन्याय किया है उसके साथ, बस एक मौका दे दे मुझे, अपनी गलती सुधारना चाहता हूँ। मैं उसे अब बहुत सम्हालकर रखूँगा, उसकी हर ख्वाहिश पूरी करूँगा ” उनक चेहरा आँसुओ से तर हो गया था। उनके परिवार के सभी सदस्य उपस्थित थे पर कोई उन्हें हमदर्दी नही जता रहा था। हर एक की निगाह में वह सबसे बड़े अपराधी थे। जी चाह रहा था कि कोई आकर उन्हें तसल्ली दे, कहे की फ़िक्र मत करो, सब ठीक हो जाएगा। पर कोई नहीं था पास। अब जाकर अहसास हुआ कि पत्नी का उनके जीवन में क्या महत्व था। वही थी जो उनका मान रखती थी।
स्वतः उनके कदम अस्पताल परिसर में स्थित मंदिर की ओर बढ़ चले। वहाँ स्थापित देवी की प्रतिमा की ओर देखा तो लगा कि देवमूर्ति उन्हें आग्नेय दृष्टि से देख रही है और कह रही है कि जिसने अपना सारा जीवन तुम्हे अर्पण कर दिया उसे क्या प्रतिफल दिया तुमने ?
” क्षमा देवी माँ, अज्ञानी समझकर मुझे क्षमा कर दो, बस एक मौका दे दे माँ , मुझे अपनी गलती सुधारने का। मृणाल को जीवन दे दे। मैं अब उसे अपनी आँख की पुतली की तरह सम्हालकर रखूँगा, उसकी बहुत देखभाल करूँगा। “
” सॉरी, हम उन्हें बचा नही सके, शी इज़ नो मोर “
डॉक्टर ने कहा। उनके पैरों तले ज़मीन निकल गई।
” आप क़ातिल हैं माँ के , मैं आपको कभी माफ़ नही करेंगे ” अमन घृणा से उन्हें देख रहा था।
” चले जाइए आप यहाँ से, जब जीते जी माँ की परवाह नही कि तो अब क्या कर रहे हैं। जाकर अपनी फर्म में बैठिये, वरना कितने क्लाइंट निकल जाएंगे। नही तो क्रिकेट मैच देखिये। माँ के लिए अब भी कुछ करने की ज़रूरत नही। उनका अंतिम संस्कार भी हम निबटा देंगे ” अवनि सिसक रही थी। वे बेदम से गिर पड़े। वहाँ उपस्थित सभी मित्र और सम्बन्धी उन्हें हेय दृष्टि से देख रहे थे। सबकी निगाहों से गिरकर कैसे जियेंगे वह।
” काश मुझे एक मौका मिल जाता, बेशक वह कई दिन बिस्तर पर पड़ी रहती। मैं उसकी खूब सेवा करके अपने बुरे बर्ताव का प्रायश्चित कर पाता। “
तभी घण्टी बजने के स्वर से वह जैसे जाग पड़े, आस पास देखा तो सन्तोष की साँस ली। शुक्र है कि ये उनके मन का डर था।
” देवी माँ, मृणाल को जीवन दो ” वह ज़ार जार रो रहे थे।” मुझे एक मौका दे दो माँ,अपनी भूल सुधारने का “
” पापा ” पीछे से अमन की आवाज़ आयी तो उन्होंने पलटकर देखा
” कबसे आपको ढूंढ रहा था, चलिये माँ अब खतरे से बाहर हैं ” भावावेश में वह बेटे से लिपटकर रो पड़े। उसने तसल्ली देने के लिए उनकी पीठ पर हाथ फ़ेरा और फिर उन्हें लेकर माँ के पास चल दिया।
अंदर प्रवेश किया तो देखा अवनि माँ का सर सहला रही थी
” मुझे माफ़ कर दो मृणाल, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई ” उसका हाथ पकड़कर वह रो पड़े ” तुम हमेशा मेरे साथ रहना, मैं अब कभी तुम्हे शिकायत का मौका नही दूँगा। तुम्हारा बहुत खयाल रखूँगा। “
— ज्योत्स्ना