शर्मीली धूप
मेरे आंगन नाच रही है, कुंदन सी चमकीली धूप
मन में बैरन आग लगाए, कैसी यह बर्फीली धूप
जमुना तट पर रोज नहाने, आती है सखियों के संग
गोरी गोरी अलबेली सी, पागल सी यह शर्मीली धूप
चैन कहां आराम कहां है, अखियन में है नीर कहां
रात अंधेरे उठ जाती हैं, साजन की मतवाली धूप
बिजली चमके जोर पवन का, निर्मोही घनघोर घटा
सोच रही हूं कब आएगी, सपनों की रखवाली धूप
गोरी अपना घुंघट ताने, यूं जाती है काली कोस
पेड़ों के उस छोर से जैसे, निकली हो शर्मीली धूप
खेतों में हल जोत के आए, ताक रहे हैं नीला गगन
बस्ती बस्ती सामान लाना, रूठ के जाने वाली धूप
अब के बरस क्यों बदला बदला, मौसम का है लगता रूप
कोमल कोमल फूलों पर है, नीली पीली काली धूप
— मोनिका अग्रवाल