गीतिका/ग़ज़ल

शर्मीली धूप

मेरे आंगन नाच रही है, कुंदन सी चमकीली धूप
मन में बैरन आग लगाए, कैसी यह बर्फीली धूप
जमुना तट पर रोज नहाने, आती है सखियों के संग
गोरी गोरी अलबेली सी, पागल सी  यह शर्मीली धूप
चैन कहां आराम कहां है, अखियन में है नीर कहां
रात अंधेरे उठ जाती हैं, साजन की मतवाली धूप
बिजली चमके जोर पवन का, निर्मोही घनघोर घटा
सोच रही हूं कब आएगी, सपनों की रखवाली धूप
गोरी अपना घुंघट ताने, यूं जाती है काली कोस
पेड़ों के उस छोर से जैसे, निकली हो शर्मीली धूप
खेतों में हल जोत के आए, ताक रहे हैं नीला गगन
बस्ती बस्ती सामान लाना, रूठ के जाने वाली धूप
अब के बरस क्यों बदला बदला, मौसम का है लगता रूप
कोमल कोमल फूलों पर है, नीली पीली काली धूप

— मोनिका अग्रवाल

मोनिका अग्रवाल

मुझे अपने जीवन के अनुभवों को कलमबद्ध करने का जुनून सा है जो मेरे हौंसलों को उड़ान देता है.... मैंने कुछ वर्ष पूर्व टी वी व सिनेमाहाल के लिए कुछ विज्ञापन करे हैं और गृहशोभा के योगा विशेषांक में फोटो शूट में भी काम करा है।मैं कंप्यूटर से स्नातक हूं। मेरी कविताएँ वर्तमान अंकुर, हमारा पूर्वांचल ,लोकजंग, हमारा मैट्रो, गिरिराज,पंजाब केसरी,दैनिकजागरण,मेरठ से प्रकाशित सुजाता मैग्जीन आदि में प्रकाशित हुई हैं। इसके अलावा वेब पत्रिका "हस्ताक्षर", "अनुभव","खुश्बू मेरे देश की" आदि में भी मेरी कविताओं को स्थान मिला है । साथ ही अमर उजाला, रूपायन,गृहशोभा , सरिता, मेरी सखी, फेमिना आदि मेरी कुछ कहानी ,लेख और रचनाओं को भी जगह मिली है। पता- कुमार कुंज जी एम डी रोड मुरादाबाद पिन -244001 9568741931 [email protected]