कविता – कोशिश
अपनी
जिन्दगी को
शिद्दत के साथ जीने की
मेरी हमेशा होती है
पुरजोर कोशिश
मकसद होता है
हर लम्हे को जीना
अपने वजूद की सुनना
अपने ज़ज्बातों को समझना
पर जाने क्यों ऐसा होता है
बेकार जाती है….
मेरी हर कोशिश
कुछ नहीं होता हासिल
दूर ही रह जाती है मंजिल
अन्दर ही अन्दर घुटता हूँ
सवाल करता हूँ खुद से
मै अक्सर तन्हाई में
आता है जबाब जेहन से
सन्नाटे भी देते हैं आवाज़
सुना भी जा सकता है जिसे
बस जरुरत होती है
एक अदद कोशिश की
दमदार कोशिश की…
समझ लेता हूँ इशारा
कोशिश करता हूँ पाने की
एक बार फिर मंजिल….
— राजेश सिन्हा