“चित्र लेखा”
मंदिर मंदिर मन फिरे, प्रेम पिपासे होंठ
बिना प्रेम मन मानवा, सूखे अदरख सोंठ
सूखे अदरख सोंठ, सत्व गुण तत्व पिरोए
रसना चखे स्वाद, नैन लग झर झर रोए
ले ले गौतम ज्ञान, सजा ले मन के अंदर
पूर्ण कहाँ इंसान, कहाँ बिन प्रेमी मंदिर॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी