इस्लामी आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में भारत-इजरायल संबंधों का महत्व
इस वर्ष भारत और इजरायल के राजनयिक संबंधों का रजत जयंती वर्ष है ! आज जबकि समूची मानवता के तथा शांति और प्रगति के सबसे बड़े खतरे के रूप में इस्लामी आतंकवाद दिखाई दे रहा है, तब अपने इस साझा शत्रु का सामना करने के लिए हिंदू और यहूदियों के रिश्तों को बढ़ावा देना आवश्यक प्रतीत होता है ।
इस परिप्रेक्ष में यह महत्वपूर्ण है कि भारत और इजरायल के राजनयिक संबंधों की 25 वीं वर्षगांठ के अवसर पर भारत में इसराइल के राजदूत डैनियल कार्मोन ने आतंकवाद के मुद्दे पर भारत के प्रति अपने समर्थन को दोहराते हुए कहा कि दुनिया में कोई भी आतंक का औचित्य सिद्ध नहीं कर सकता । खूनी जिहाद की आड़ में पनपने वाला यह आतंकवाद वस्तुतः दोनों देशों की शांति और प्रगति को नष्ट करने की साजिश और भारत तथा इसराइल पर सीधा आक्रमण ही है ।
कार्मोन ने इस बात पर संतोष जताया कि आतंकवाद को लेकर वैश्विक चेतना बढ़ रही है तथा दुनिया को “काफिर” मानने वाले ‘आईएसआईएस’ और ‘जिहाद’ की क्रूरता के खिलाफ समूचा विश्व एकजुट होता जा रहा है।
स्मरणीय है कि इस साल जून महीना में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इसराइल का दौरा किये जाने की संभावना है । कार्मोन ने इसका भी उल्लेख करते हुए कहा कि यह यात्रा अत्याधिक महत्वपूर्ण है तथा इसका उपयोग साझा रणनीति बनाने के लिए किया जाएगा ।
मोदी की यह प्रस्तावित इसराइल यात्रा स्पष्टतः निर्दयता और परोक्ष युद्ध के मूल कारण जेहादी आतंकवाद का मुकाबला करने के प्रयास के रूप में देखी जा रही है, तथा इससे हिंदुओं और यहूदियों के बीच संबंधों को और मजबूती मिलेगी । दोनों ही देश लम्बे समय से अपने-अपने देशों में इस्लामी आतंकवाद और जेहादी तत्वों के खतरे का सामना कर रहे हैं । कट्टरपंथी इस्लाम के विभिन्न एजेंट हमेशा से हिंदुओं और यहूदियों को अपना दुश्मन नंबर एक मानकर नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते रहे हैं। इस परिप्रेक्ष में यरूशलेम में होने वाली मोदी-नेतनयाहू की भेंट वर्तमान समय में कुछ ज्यादा ही महत्वपूर्ण है।
यह भी उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस यहूदी राष्ट्र की यात्रा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री होंगे । अब देखना यह है कि इस यात्रा का उपयोग भारत के हित में कैसे होगा । मुख्यतः पानी, नवाचार और शैक्षणिक तंत्र की महत्वपूर्ण तकनीक प्राप्त करना भी इस यात्रा का अहम उद्देश्य होगा, क्योंकि इजराईल की इन विषयों पर महारत के सभी कायल हैं ।
कार्मोन के अनुसार इसराइल अपनी अर्थव्यवस्था की सीमाओं के बावजूद इन विषयों पर भारत सरकार का सहयोग करने को तत्पर है । क्योंकि हम भारत के साथ अपने संबंधों को अत्यंत महत्व देते हैं ! उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि कैसे इज़राइल भारत की रक्षा एवं सिंचाई प्रणाली में तथा विनिर्माण क्षेत्र में योगदान दे सकता है ।
स्मरणीय है कि भारत की स्वतंत्रता के लगभग साथ ही इजराईल भी 14 मई 1948 को अस्तित्व में आया तथा 11 मई 1949 को उसे मान्यता मिली ! यह भी उल्लेखनीय है कि अपने जन्म के साथ ही दोनों देश जिहाद और कट्टरपंथी इस्लाम से जूझ रहे हैं ।
यह भी हैरत की बात है कि इतना साम्य होने के बाद भी भारत सरकार ने हिचकिचाहट के साथ 17 सितंबर 1950 को इजराईल को मान्यता तो दी किन्तु नई दिल्ली में उसका दूतावास 1992 में प्रारम्भ हुआ और तभी इजराईल के साथ भारत के राजनयिक सम्बन्ध स्थापित हुए ! यह भी तब जबकि भारत और इजराईल का सम्बन्ध सदियों पुराना है, क्योंकि भारत ही वह देश था जहाँ पीड़ित और विस्थापित यहूदियों को आश्रय मिला था ! यही कारण है कि यहूदी आज भी भारत को अपना दूसरा घर मानते हैं।
— उपानंद ब्रह्मचारी