स्वास्थ्य

नायक नहीं खलनायक हूँ मैं – ट्रांस फैट

ट्रांस फैट या ट्रांस-अनसेचुरेटेड फैटी एसिड मानव-निर्मित, टॉक्सिक, अखाद्य, और कृत्रिम फैट है। यह एक मृत और क्षतिग्रस्त अनसेचुरेटेड फैट है, जिसे सस्ते तेलों का आंशिक हाइड्रोजिनेशन करके फेक्ट्री में बनाया जाता है। लेकिन इनके सेवन से हृदय रोग, कैंसर, डायबिटीज आदि रोगों का जोखम बहुत बढ़ जाता है। प्राकृतिक तेलों और जीव-वसा में प्रायः ट्रांस फैट नहीं होते। हम इसे वनस्पति (वेजीटेबल शोर्टनिंग) या डालडा के नाम से जानते हैं। यह देखने में घी और मख्खन की तरह दिखता है, इसकी शैल्फ लाइफ बहुत ज्यादा होती है यानि इसमें बने व्यंजन में लंबे समय तक दुर्गंध नहीं आती और इसको बनाने में लागत भी बहुत कम आती है। इसलिए यह बेकरी, हलवाई और प्रोसेस्‍डफूड निर्माताओं का पसंदीदा फैट है। इसका प्रयोग बेकरी उत्पाद, मिटाइयां, नमकीन, समोसे, आलू टिक्‍की, छोले-भटूरे, फास्ट फूड, पैकेटबंद खाद्य पदार्थ आदि बनाने में धड़ल्ले से किया जाता है। सिर्फ प्रोसेस्‍डफूड में ही ट्रांसफैट नहीं होते, बल्कि घरों में इस्‍तेमाल होने वाले तेल और वनस्‍पति घी में भी जबरदस्‍त ट्रांस फैट होता है।

फैटी एसिड मूलतः एक हाइड्रो-कार्बन की लड़ होती है, जो अनसेचुरेटेड (जिसमें डबल बाँड होते है) या सेचुरेटेड (जिसमें कोई डबल बाँड नहीं होते) हो सकते हैं। अनसेचुरेटेड फैटी एसिड की लड़ से एक ही तरफ के दो हाइड्रोजन अलग होते हैं, और एक डबल-बांड बनता है। यहाँ लड़ कमजोर पड़ जाती है और मुड़ जाती है। मुड़ने से फैटी एसिड की भौतिक और रासायनिक गुण प्रभावित होते हैं। ये सामान्य तापक्रम पर तरल बने रहते हैं। इसे सिस विन्यास कहते हैं।   

सिस विन्यास के विपरीत ट्रांस फैट में विपरीत दिशा के हाइड्रोजन अलग होते हैं अर्थात एक ऊपर की तरफ का तो दूसरा नीचे की तरफ का। फलस्वरूप फैटी एसिड की लड़ सीधी रहती है और आपस में घनिष्टता से जमी रहती है, इसलिए ये सामान्य तापक्रम पर संतृप्त वसा अम्ल  की तरह ठोस रहते हैं। यह असामान्य और अप्राकृतिक विन्यास है। 

हाइड्रोजिनेशन की प्रक्रिया में केटेलिस्ट निकल धातु की उपस्थिति में तेल को तेज तापक्रम पर गर्म करके भारी दबाव से हाइड्रोजन प्रवाहित की जाती है। इससे तेल ठोस होने लगता है। पूर्ण हाइड्रोजिनेशन करने पर बहुत सख्त और मोम जैसा फैट तैयार होता है। इतना सख्त फैट तलने या बेक करने के लिए उपयुक्त नहीं होता, इसलिए निर्माता हाइड्रोजिनेशन प्रक्रिया को बीच में ही रोक देते हैं और तेल का आंशिक हाइड्रोजिनेशन ही करते हैं। यह बिलकुल बटर की तरह लगता है, सही तापक्रम पर पिघलता है और बेकिंग या तलने के लिए एकदम उपयुक्त होता है। लेकिन आंशिक हाइड्रोजिनेशन की प्रक्रिया में कुछ ट्रांस डबल बाँड बन जाते हैं। यहीं से सारी समस्या शुरू होती है। ट्रांस फैट्स का सेवन दिल की धमनियों को अवरुद्ध करता है, हार्ट अटेक का कारक बनता है, कई बीमारियों को दावत देता है और हमारे शरीर को क्रोनिक इन्फ्लेमेशन की भट्टी में झोंक देता है। 

कुछ स्थितियों में ट्रांस फैट प्राकृतिक फैट्स में बन सकते हैं। जैसे मांस और दुग्ध उत्पादों में विद्यमान वेक्सिनिल और कोंजूगेटेड लिनोलिक एसिड में थोडे से ट्रांस फैट बन जाते हैं, लेकिन ये हमारे शरीर को नुकसान नहीं पहुँचाते। कनाडा में हुए शोध के अनुसार बीफ और डेयरी उत्पाद में विद्यमान वेक्सिनिल एसिड एल.डी.एल. कॉलेस्टेरोल और ट्रायग्लीसराइड को कम करते हैं। 

मानव इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदी – ट्रांस फैट का आतंक

मानव इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदी और लाखों-करोडों निर्दोष लोगों के कत्ल की इस घिनौनी कहानी का बीज लगभग एक सदी पहले बोया गया, जब पॉल सेबेटियर को हाइड्रोजिनेशन की तकनीक विकसित करने के उपलक्ष में नोबल पुरस्कार दिया गया। सेबेटियर ने सिर्फ गैस को हाइड्रोजिनेट करने का विज्ञान बनाया, इससे प्रेरित होकर जर्मनी के रसायनशास्त्री विल्हेम नोरमन ने 1901 में तेल को हाइड्रोजिनेट करने का तरीका बना लिया और 1902 में इसका पेटेंट भी हासिल कर लिया। उस दौर में विलियम प्रोक्टर नाम का एक छोटा सा व्यवसायी साबुन बनाता था और उसका बहनोई जॉर्ज गेम्बल मोमबत्तियां बनाकर बेचता था। यूरोप के साबुन निर्माता जैतून के तेल से उम्दा साबुन बनाते थे, इसलिए प्रोक्टर के सूअर की चर्बी से बने साबुन की बिक्री कम होती जा रही थी। दूसरी तरफ थोमस एडीसन ने अमेरिका को अपने विद्युत बल्ब की रोशनी से जगमगा दिया था और बेचारे गेम्बल की मोमबत्तियां भी नहीं बिक पा रही थी। वक्त की नज़ाकत को समझते हुए दोनों साले-बहनोइयों ने हाथ मिलाया और सिनसिनाटी, ओहियो में प्रोक्टर एंड गेम्बल नाम से एक कंपनी बनाई। उन्होंने आनन-फानन में कॉटन सीड के कुछ फार्म खरीदे, नोरमन से हाइड्रोजिनेशन की तकनीक हासिल की और 1911 में कॉटन सीड से क्रिस्को (CRYStalized Cottonseed Oil) के नाम से दुनिया का पहला हाइड्रोजिनेटेड फैट बनाना शुरू कर दिया। बाद में जेनेटिकली मोडीफाइड सोयबीन और सेचुरेटेड पाम ऑयल से क्रिस्को बनने लगा।

लेकिन अमेरिका के लोग क्रिस्को को अपनाने में हिचक रहे थे। इसलिए प्रोक्टर एंड गेम्बल ने क्रिस्को का खूब प्रचार किया। भ्रामक और झूँठे विज्ञापन तैयार किए गए। क्रिस्को को स्वास्थ्यप्रद, साफ, सस्ता, सुपाच्य, औप लार्ड (सूअर की चर्बी से बना फैट) से ज्यादा आधुनिक बतलाया जाने लगा। क्रिस्को में खाना पकाने वाली स्त्रियों को अच्छी पत्नि और मां की संज्ञा दी जाने लगी। उनके घर में अब लार्ड की दुर्गंध नहीं थी और उनके बच्चे चरित्रवान बन रहे थे। प्रोक्टर एंड गेम्बल ने एक ही वाक्य से अपने दोनों प्रतिद्वंदियों लार्ड और बटर को हाशिए पर डाल दिया। यहूदियों को आकर्षित करने के लिए तो खासतौर पर लिखा गया कि यहूदी 4000 सालों से क्रिस्कों की प्रतीक्षा कर रहे थे। 

प्रोक्टर एंड गेम्बल ने क्रिस्को की मार्केटिंग में कोई कमी नहीं छोड़ी। पानी की तरह पैसा बहाया गया। क्रिस्को की शैल्फ लाइफ ज्यादा थी तथा बेकिंग और तलने के लिए बटर का सस्ता और बढ़िया विकल्प था। इसलिए फास्ट फूड, बेकरी और सभी खाद्य उत्पाद बनाने वाली सभी कंपनियां क्रिस्को का प्रयोग करने लगी। शुरूआत में गृहणियां इसे अपनाने से बच रही थी। उन्हें बटर को छोड़कर क्रिस्कों को अपनाना उचित नहीं लग रहा था। इसलिए गृहणियों को लुभाने के लिए प्रोक्टर एंड गेम्बल ने रंगीन कुक-बुक्स बनवाई, जिनमें सभी व्यंजन बनाने में क्रिस्को के प्रयोग की हिदायत दी गई। जगह-जगह वर्क-शॉप किए जाते, क्रिस्को के पैकेट और कुक-बुक्स मुफ्त में बंटवाई जाती। इस तरह धीरे-धीरे  पूरी दुनिया को यह घातक फैट खिलाया जाने लगा। हो सकता है तब प्रोक्टर एंड गेम्बल को भी पता नहीं हो कि यह ट्रांस फैट मानव जाति का सबसे बड़ा शत्रु साबित होगा। हमारे देश में इसे सबसे पहले डालडा के नाम से बेचा गया।

वक्त बीतता गया और ट्रांस फैट ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया। लोग बीमार रहने लगे और चिरकारी प्रदाह (chronic inflammation) के शिकार होने लगे। हृदय रोग, कॉलेस्टेरोल, टाइप-2 डायबिटीज़ और आर्थराइटिस आदि रोगों का आघटन एकदम से बढ़ने लगा। प्रोक्टर एंड गेम्बल नहीं चाहती थी कि इसके लिए क्रिस्को को जिम्मेदार माना जाए। इसलिए उन्होंने गुप-चुप तरीके से डॉ. फ्रेड मेटसन की मदद ली।  डॉ. मेटसन प्रोक्टर एंड गेम्बल के हितों के लिए काम करते थे। इन्होंने सरकार की अधूरी लिपिड रिसर्च के क्लिनिकल ट्रायल्स की रिपोर्ट को तोड़-मरोड़ कर जनता के सामने पेश किया, जिसमें यह दर्शाया गया कि हार्ट अटेक और डायबिटीज़ सेचुरेटेड फैट खाने से हो रहे हैं, न कि हाइड्रोजिनेटेड फैट खाने से। डॉ. मेटसन ने एफ.डी.ए. और अमेरिकन हार्ट ऐसोसिएशन के अधिकारियों को खूब पैसा खिलाया। बस फिर क्या था, अमेरिकन हार्ट ऐसोसिएशन भी बटर और सेचुर्टेड को ही इन बीमारियों कारण बताने लगा और हाइड्रोजिनेटेड फैट को हृदय-हितैषी साबित करने में जुट गया। 

लेकिन सच्चाई बिलकुल विपरीत थी। ट्रांस फैट के कारण हृदय रोग, टाइप-2 डायबिटीज़, कैंसर और अन्य क्रोनिक बीमारियां महामारी का रूप ले चुकी थी।  जबकि क्रिस्को से पहले इन रोगों का इंसीडेंस बहुत कम था। एक तरफ तो प्रोक्टर एंड गेम्बल अपनी सफलता के जश्न मनाता रहा, एफ.डी.ए. को मलाई खिलाता रहा. वहं दूसरी तरफ हजारों-लाखों निर्दोष लोग बीमार होते रहे, मरते रहे। मानव जाति पर एक बहुत बड़ा अपराध घटित होता रहा। लगभग एक सदी तक मीडिया, एफ.डी.ए. और अमेरिकन हार्ट ऐसोसिएशन खामोश बने रहे, सब कुछ देखते रहे। जैसे कोई चाहता ही नहीं था कि लोगों को सच्चाई से अवगत करवाया जाए। चिकित्सक और अध्यापक भी ट्रांस फैट की सही जानकारी नहीं दे रहे थे।

बहुत जरूरी है आप ट्रांस फैट के विज्ञान को समझें

हमारे स्वास्थ्य के लिए ट्रांस फैट क्यों इतना घातक है? प्राकृतिक और आवश्यक वसा अम्ल (EFAs) और इन खराब ट्रांस फैट्स की कार्य-प्रणाली में क्या अंतर है? इन सारी बातों को गहराई से समझने के लिए आपको डॉ. जॉहाना बडविग द्वारा किए गए शोध को जानना जरूरी है। डॉ. बडविग  जर्मनी के फेडरल इंस्टिट्यूट ऑफ फैट्स एंड ड्रग्सविभाग में चीफ एक्सपर्ट थीं। उन्हें ओमेगा-3 लेडी के नाम से जाना जाता है। डॉ. बडविग  ने पहली बार ओमेगा-3 फैट (अल्फा-लिनेलोनिक एसिड) की संरचना और कार्य-प्रणाली का अध्ययन किया और सिद्ध किया कि स्वस्थ और निरोग शरीर के लिए अल्फा-लिनेलोनिक एसिड की भूमिका सबसे अहम है। उन्होंने यह भी साबित किया कि ट्रांस फैट मनुष्य का सबसे बड़ा दुष्मन है। आज भी ओमेगा-3 फैट्स पर रिसर्च जारी है, लेकिन बडविग की शोध के बारे में चर्चा नहीं होती। यह हम सबके लिए दुर्भाग्य की बात है। पता नहीं क्यों मीडिया और अनुसंधानकर्ता बडविग के विज्ञान पर क्यों खामोश हो जाते हैं।

1949 में डॉ. बडविग ने फैट को पहचानने के लिए पेपर क्रोमेटोग्राफी तकनीक विकसित की। इस तकनीक द्वारा उन्होंने पहली बार अनसेचुरेटेड और वाइटल आवश्यक वसा अम्ल (EFAs) सिस अल्फा-लिनेलोनिक एसिड और सिस लिनोलिक एसिड को पृथक किया, और संरचना का विस्तृत अध्ययन किया। सिस विन्यास में एक ही तरफ के हाइड्रोजन अलग होते हैं और डबल बाँड बनता है। यहाँ चेन कमजोर पड़ जाने के कारण मुड़ जाती है। सबसे खास बात यह है कि इस मोड़ में नेगेटिनली चार्ज्ड ढेर सारे ऊर्जावान इलेक्ट्रोन्स इकट्ठे हो जाते हैं। ये इलेक्ट्रोन्स हल्के और स्वच्छंद होने के कारण ऊपर उठकर बादल की तरह हुए दिखाई देते हैं, इसलिए इन्हें पाई- इलेक्ट्रोन्स या इलेक्ट्रोन क्लाउड की संज्ञा दी जाती है।  पाई-इलेक्ट्रोन्स का एक इलेक्ट्रोमेगनेटिक फील्ड बनता है, जो ऑक्सीजन को आकर्षित करता है और कोशिका की भित्ति में प्रोटीन के साथ बंधन बनाकर अवस्थित रखता है। ये पाई-इलेक्ट्रोन्स शरीर में ऊर्जा या जीवन-ऊर्जा या आत्मा के प्रवाह के लिए बहुत जरूरी माने गए हैं। कोशिका की भित्ति में अवस्थित पाई-इलेक्ट्रोन्स रिज़ोनेंस के द्वारा सूर्य के इलेक्ट्रोन्स को आकर्षित और संचित करते हैं। क्वांटम फिजिक्स की गणना के अनुसार सूर्य के इलेक्ट्रोन्स का सबसे अधिक संचय मानुष (“human”) करता है। मानुष हमेशा स्वस्थ जीवन जीता है और भविष्य की तरफ अग्रसर रहता है। अमानुष “anti-human” की भी परिकल्पना की गई है। मानुष के विपरीत अमानुष में पाई-इलेक्ट्रोन्स बहुत कम होते हैं, वह हमेशा भूतकाल की तरफ बढ़ता है। उसकी जीवन क्रियाएं और सोच भी शिथिल रहती है, उसमें ऊर्जा और ताकत नहीं होती क्योंकि उसमें सूर्य के इलेक्ट्रोन्स के साथ स्पंदन करते पाई-इलेक्ट्रोन्स अनुपस्थित रहते हैं। ट्रांस फैट में पाई-इलेक्ट्रोन्स अनुपस्थित होने के कारण मनुष्य रोग, गर्त, और मृत्यु की तरफ बढ़ता है। बडविग ने हमेशा इन कातिल ट्रांस फैट्स को मनुष्य का सबसे बड़ा दुष्मन बताया और सबूतों के साथ इसको प्रतिबंधित करने की सलाह दी। लेकिन किसीने ध्यान नहीं दिया अन्यथा आज दुनिया का स्वरूप कुछ और ही होता।

मैंने गर्म और उबलते तेल में ट्रांस फैट के कणों को देखा है। इनमें अनसेचुर्टेड डबल बाँड भी थे, परंतु ऊर्जावान पाई-इलेक्ट्रोन्स नदारत थे और ये हमारे स्वास्थ्य के लिए घातक सिद्ध हुए। – डॉ. जॉहाना बडविग 

ट्रांस फैट के खतरे

ट्रांस फैट  में ऊर्जावान पाई-इलेक्ट्रोन्स नहीं होने से कोशिका की  भित्तियां अस्वस्थ और कठोर होने लगती हैं, ऑक्सीजन को

The trans fats cause chronic inflammation and dysfunction in our body on a cellular level. These have been linked to:

§  Cancer: They interfere with enzymes your body uses to fight cancer.

§  Diabetes: They interfere with the insulin receptors in your cell membranes.

§  Decreased immune function: They reduce your immune response.

§  Problems with reproduction: They reduce the production of sex hormones.

§  Obesity

§  Arthritis

§  Heart disease: Trans fats can cause blocking of your heart arteries.

§  Trans fat is also known to increase blood levels of low density lipoprotein (LDL), or “bad” cholesterol, while lowering levels of high density lipoprotein (HDL), or “good” cholesterol.

§  Trans fats even interfere with your body’s use of beneficial omega-3 fats, and have been linked to an increase in asthma. 

कहां कहां हो सरता है ट्रांस फैट –

1.    बाजार में मिलने वाले सभी तरह के बिस्किट्स, चाकलेट्स, कैडी, केक, पेस्ट्री, ब्रेड, पिज्ज़ा, बर्गर तथा सभी बेकरी उत्पादों में भरपूर ट्रांस फैट होता है।

2.    बाजार में उपलब्ध समोसे. कचौड़ी, चाट-पकौड़े, छोले-भटूरे सभी तरह के नमकीन और मिठाइयों में भरपूर ट्रांस फैट होता है।

3.    सभी स्नेक-फूड जैसे आलू के चिप्स, फ्रैंच फ्राइज़, इंस्टेंट नूडल्स आदि में भरपूर ट्रांस फैट होता है।  

4.    वनस्पति और आंशिक हाइड्रोजिनेटेड रिफाइंड तेल में भरपूर ट्रांस फैट होता है।  

5.    रसोई में अनस्चुरेटेड तेल को गर्म करने पर भी ट्रांस फैट बनते है। इसलिए समझदार ग्रहणियां तलने के लिए सेचुरेटेड फैट का प्रयोग करती हैं।

आखिरकार एफ.डी.ए. को U-टर्न लेना ही पड़ा

ट्रांस फैट को प्रतिबंधित करने के लिए समय-समय पर कई अनुसंधानकर्ताओं ने  एफ.डी.ए. पर दबाव डाला है। कई संस्थाओं ने एफ.डी.ए. से कानूनी लड़ाइयां लड़ी है।  दुनिया भर में ट्रास फैट को  प्रतिबंधित करने की आवाज उठने लगी थी। लेकिन एफ.डी.ए. कुंभकर्ण की नींद सोता रहा।  एक सदी की लंबी नींद के बाद अब एफ.डी.ए. जागा है। एफ.डी.ए. ने अब मान लिया है कि ट्रांस फैट का सेवन मनुष्य के लिए बहुत घातक है। एफ.डी.ए. नें अब खुलकर स्वीकार कर लिया है कि किसी भी मात्रा में  ट्रांस फैट का सेवन हमारे लिए सुरक्षित नहीं है और इसे “generally recognized as safe” श्रेणी से हटा दिया है। जबकि कुछ ही समय पहले तक एफ.डी.ए. ट्रांस फैट को मनुष्य के लिए सुरक्षित  बतलाता रहा और हार्ट अटेक, डायबिटीज, आर्थराइटिस के बढ़ते आघटन के लिए सेचुरेटेड फैट को जिम्मेदार मानता रहा था।   

ट्रांस फैट को प्रतिबंधित करने में डेनमार्क सबसे आगे रहा है। डेनमार्क ने मार्च, 2003 में  हर उस खाद्य-पदार्थ की बिक्री पर पाबंदी लगा दी है, जिसमे 2 प्रतिशत से अधिक ट्रांस फैट हो। इस कानून के बनने से लोगों के आहार में ट्रांस फैट की मात्रा घटकर  1 ग्राम प्रति दिन हो गई है। बाद में कनाडा और स्विटज़रलैंड ने भी इसी तरह के कानून बनाए।

5 दिसंबर, 2006 में  न्यूयॉर्क ते बोर्ड ऑफ हैल्थ नें शहर के सारे रेस्टॉरेंट्स में ट्रांस फैट को प्रतिबंधित करने का निर्णय लिया, जिसे जून, 2008 से लागू किया गया।

2013 में एफ.डी.ए. ने सभी खाद्य-पदार्थों से ट्रांस फैट्स को हटाने की घोशणा की। जून, 2015 में  एफ.डी.ए. ने आखिरी चेतावनी जारी कर दी है कि तीन साल के अंदर हर खाद्य-पदार्थ से ट्रांस फैट पूरी तरह हटा लिया जाए। एफ.डी.ए. कहता है कि इससे खाद्य उद्योग पर अगले बीस वर्षों में 6.2 बिलियन डॉलर का खर्चा आएगा। खाद्य उद्योग को नए तौर-तरीके और तकनीक विकसित करनी होगी। यह डॉ. बडविग और प्रोफेसर कमेरो समेत उन सभी लोगों, संस्थाओं और अनुसंधानकर्ताओं की बहुत बड़ी जीत है जो ट्रांस फैट को प्रतिबंधित करवाना चाहते थे। उत्सब मनाने का समय है। स्वर्ग में बैठी डॉ. बडविग भी आज मुस्कुरा रही होंगी। इलिनॉइस यूनीवर्सिटी के 100 वर्षीय प्रोफेसर फ्रेड कमेरो लंबे समय से ट्रांस फैट को प्रतिबंधित करवाने के लिए प्रयासरत थे। 2009 में इन्होंने एफ.डी.ए. के खिलाफ एक पिटीशन भी दायर किया था। 

— डाॅ ओ पी वर्मा

डॉ. ओ.पी. वर्मा

नाम – डॉ. ओ. पी. वर्मा पिता का नाम- श्री प्रभुलाल वर्मा जन्म तिथि -10 अक्टूबर, 1950 शैक्षणिक योग्यता : – एम.बी.बी.एस. मार्च 1973 मेडीकल कालेज R.N.T. 1. सेकण्डरी स्कूल उदयपुर 1966 राज. बोर्ड में छठी रेंक 2. हायर सेकण्डरी स्कूल परीक्षा 1967 राज. बोर्ड में द्वितीय रेंक 3. एम.आर.एस.एच. आक्सफोर्ड विश्वविध्यालय इंगलेन्ड 1884 गतिविधिया और विशेष उपलब्धियाँ :- · मार्च 1976 से अक्टूबर 10 तक राजकीय सेवा में चिकित्सा अधिकारी के पद पर कार्य किया। · 1976 में प्राथमिक स्वास्थ केंद्र के प्रभारी रहे। परिवार नियोजन में बहुत कार्य किया। पूरे कोटा जिला के सबसे ज्यादा पुरूष नसबंदी में आपरेशन किये और पुरूस्कार प्राप्त किया। · अल्प शिक्षण कोटा में ड्राइंग, पेन्टिंग, फोटोग्राफी, कविताएँ, लेखन आदि में निरंतर पुरूस्कार प्राप्त किये। · मै हमेशा अपनी क्लास, स्कूल या कालेज में पढाई में सबसे आगे ही रहा और हमेशा पुरूस्कार प्राप्त किये। · 2005 में भास्कर में Good Governance Program में ट्युटर के पद पर कार्य किया जो पूरे वर्ष भर चला। · पिछले पांच वर्षो से अलसी चेतना यात्रा नामक संस्था की स्थापना की। आयुवर्धक, आरोग्यवर्धक चमत्कारी दिव्य भोजन अलसी और केंसररोधी बुडविग आहार की जागरूकता के लिए कार्य किया। कई वर्कशाप और सेमीनार आयोजित किये। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अलसी अन्य स्वास्थवर्धक लेख प्रकाशित किये। रेडियो व टेलीविजन पर कार्यक्रम कर प्रस्तुत किये। · संस्था की ओर से मुफ्त वितरण हेतु अलसी महिमा नामक पुस्तक प्रकाशित की। · 2010 में अंत में अलसी का अलग जगाने के उदेश्य सें रथ यात्राएं आयोजित की जिनमे राजस्थान, मध्य प्रदेश और सभी बड़े-बड़े शहरों में प्रोग्राम, और सेमीनार किये। सन् 1981 से 1993 तक विदेश में रहा। लीबिया ब्रिटेन में कार्य किया और मिस्र, माल्टा और दुबई की यात्राएं की। मोबाइल नंबर - 9460816360 ईमेल - [email protected]