कविता — मेरा देश !
सच में हमारा देश, साँपों का देश है ??
छूपे हुए थे सालों-साल, ये बिलों में ।
कहाँ नहीं हैं, निकल रहे हर जिलों में ।।
मधुर मोहनी बीन बजी ,जब मोदी की ।
निकल रहे हैं एक-एक कर टीलों से ।।
समझ नहीं आ रही, कहां तक भागेंगे ।
हमको एकीन है कि अब, युवा जागेंगे ।।
चारों तरफ है जयकार, अपने मोदी की।
पकड-पकड कर आयेंगे, सब मीलों से ।।
गहन चिकित्सा जारी है, इस बिमारी की ।
हमें तो बस डर है, कांग्रेस महामारी की।।
कोई नहीं बचेगा, भरोसा हमको मोदी से ।
हम तो पूरा हिसाब करेंगे, काले-पीलों से ।।
रावन कंस अभी तक, छिपकर बैठे थे ।
आसमान तक अकड लिये सब ऐंठे थे।।
राम-कृष्ण की धरती, फिर से जागी है ।
राक्षस अब मरेंगे सब, मोदी तीरों से ।।
— हृदय जौनपुरी