लघुकथा

शहीद की बेटी

सुनील के सीमा पर शहीद होने की खबर सुनकर पुरे गाँव में मातम छा गया था । उसकी पत्नी सीमा का रो रो कर बुरा हाल हो गया था । अगले दिन उसका गाँव छावनी में तब्दील हो चुका था । बड़े सैनिक अफसरों के साथ ही छोटे बड़े नेताओं के आने का दौर शुरू हो चुका था ।
तिरंगे में लिपटे अपने पति के शव को देखकर सीमा बेकाबू हो गयी थी । कई बड़े नेताओं ने उसे धीरज बंधाया था । सबसे आखिर में पहुंचे एक बड़े नेता ने उसे धीरज बंधाते हुए उससे उसकी कोई ख्वाहिश पुछी और कहा वह उसे पुरी करने की भरसक कोशिश करेंगे । रोते रोते बेहाल हो चुकी सीमा एक पल के लिए रुकी और फिर अपनी तीन साल की बेटी पिंकी की तरफ इशारा करते हुए धीरे से बोली ” साहब ! मैं चाहती हूँ कि बड़ी होने के बाद आप मेरी बेटी पिंकी को सेना में दाखिल करवाने में मदद कर देना ताकि कम से कम मेरी बेटी को तो अपने बाप के गुनाहगारों से बदला लेने और देशसेवा का मौका मिले । “

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।