कविता – होली का रंग
होली का रंग बदरंग हो गया है
जमाने में सब कुछ तंग हो गया है
मलता है रंग कोई डालता गुलाल है
चारों ओर देखों हो रहा अब धमाल है
पहले का मौसम अब भंग हो गया है
होली का रंग………
कहीं दौड़ विस्की का कहीं पर रम है
वर्षों का बैर याद आता हर दम है
मिलते हैं हाथ दिल तंग हो गया है
होली का रंग………
नहीं भाईचारा रहा बचा नहीं प्यार है
चारों ओर देखो हो रहा तकरार है
जीवन का रंग बे-ढंग हो गया है
होली का रंग………
होली को जानो मानो रहने दो होली
नफरत को छोड़ बोलो प्यार की बोली
लाल बिहारी का लाल अब रंग हो गया है
होली का रंग………
— लाल बिहारी लाल