लघुकथा

पढ़ाई

मेट्रो तेजी से रिठाला की तरफ बढ़ी जा रही थी । राहुल और रामलाल भी एक कोच में बैठे हुए थे । एक स्टेशन पर कुछ हम उम्र दोस्तों का समूह कोच में घुसा और सभी  रामलाल के सामने की खाली कुर्सियों पर बैठ गए ।  चेतन के जन्मदिन के अवसर पर जमा अपने  मित्रों से राहुल  स्कूल के दिनों के बाद अचानक मिल गया था । उसके सभी मित्र अच्छी नौकरियों में थे । अशोक ने राहुल का हालचाल पूछने के बाद उसके बारे में और जानना चाहा ” हाँ ! तो स्कूल के बाद तो हम मिले ही नहीं । अच्छा ! ये बता पढ़ाई पुरी की या नहीं ? ”
राहुल ने उदास होते हुए बताया ” दसवीं के नतीजे आने के अगले ही दिन मेरे पिताजी एक सड़क दुर्घटना के शिकार होकर अपंग हो गए । मज़बूरी वश मुझे पढ़ाई का विचार त्याग कर पिताजी के व्यापार को ही संभालना पड़ा । अब तुम लोगों के सामने तो मैं एक तरह से अनपढ़ ही हुं । ” फिर सभी आपस में बातें करने लगे ।
बातों बातों में ही शास्त्री नगर आ गया । एक वृद्धा झुकी हुयी कमर लिए कोच में चढ़ी । सभी सीटों पर लोग बैठे हुए थे । वरिष्ठ नागरिकों के लिए आरक्षित सीटों पर भी कुछ वृद्ध बैठे हुए थे । सभी यात्री अपने आप में व्यस्त उस महिला की तरफ से उदासीन थे । पुरे कोच में नजर डालकर वह वृद्ध महिला असहाय सी एक सिट की पुश्त को पकडे खड़े होने जा रही थी कि अचानक ध्यान आते ही राहुल अपनी सिट से उठते हुए उस महिला को इशारा करते हुए बोला ” माँ जी ! आइये ! यहाँ बैठ जाइये ! ” उस महिला को बैठाकर राहुल स्वयं उनके बगल में खड़ा होकर अपने दोस्तों से बतियाने लगा ।
रामलाल से रहा नहीं गया । राहुल से मुखातिब होते हुए बोले ” बेटा ! तुम अनपढ़ नहीं हो ! सचमुच पढ़ाई तो तुमने ही की है । “

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।